लेखक
तिथि : 25-26 फरवरी, 2016
समय : प्रातः 9.30 बजे से सायं 5 बजे तक।
स्थान : इण्डियन ग्रासलैंड एंड फॉडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झाँसी
आयोजक : जन जल जोड़ो अभियान
बुन्देलखण्ड में नई लूट का जो नया दौर आया है, उससे पर्यावरण और विकास की कुछ नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। गौर कीजिए कि आत्महत्या के सबसे ज्यादा आँकड़े उन्हीं जिलों के हैं, जहाँ सबसे ज्यादा खनन है और वन व चारे का संकट भी सबसे ज्यादा है। इन चुनौतियों पर चिन्तन इसलिये भी जरूरी है; चूँकि एक समय आई पी एस अधिकारी नरेन्द्र ने इन्हीं चुनौतियों को चुनौती देने की कोशिश की थी; बदले में उन्हें मौत दे दी गई। जन जल जोड़ो अभियान के संयोजक संजय सिंह द्वारा प्रेषित आमंत्रण पत्र में बुन्देलखण्ड संकट के जिक्र के साथ यह चिन्ता व्यक्त की गई है कि पहले से संकटग्रस्त इलाकों में पानी की कमी, वनों का विध्वंस और कृषि की अनिश्चितता का दौर जारी है। तीन साला अकाल, गैर मौसमी बारिश और ओलावृष्टि के कारण फसलें नष्ट हुईं हैं। ग्रामीण आबादी की आजीविका संकट में पड़ गई है; लिहाजा, आत्महत्या और पलायन के मामले बढ़े हैं। खेत बिना बोए रह गए हैं। पानी का संकट इतना गहरा है कि पेयजल की उपलब्धता भी अब संकट के दायरे में आ गई है।
जो कुछ किया गया, वह अपर्याप्त है। निस्सन्देह, समस्या का ऐसा समाधान हासिल करने की जरूरत है, जिससे बुन्देलखण्ड की पारिस्थितिकी के साथ-साथ स्थानीय आबादी की आजीविका व सम्मान का दीर्घकालिक हासिल सम्भव हो सके। स्पष्ट किया गया है कि जन जल जोड़ो अभियान द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का मुख्य मन्तव्य तत्काल राहत के कदमों की समीक्षा के साथ-साथ, बुन्देलखण्ड की खोई पारिस्थितिकी और ग्रामीण आर्थिकी को वापस हासिल करने के कदम तय करना है।
कार्यशाला पूर्व ग्रामयात्रा
आमंत्रण में यह भी जिक्र है कि जन-जल जोड़ो अभियान के प्रमुख जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी द्वारा 25 फरवरी को कार्यशाला से पूर्व कुछ गाँवों की एक यात्रा तय की गई है। विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के जरिए हालात और सम्भावनाओं को समझने के लिहाज से यह यात्रा होगी।
क्यों सटीक समय?
मेरी निजी राय में निश्चित रूप से यह सटीक समय है राजनैतिक खतरे के आने का भी और खतरे से बचने का भी; क्योंकि स्वराज अभियान की रिपोर्ट, सूखाग्रस्त राज्यों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और अब 2017 में उत्तर प्रदेश की चुनावी आहट के चलते, बुन्देलखण्ड का सूखा संकट एक बार फिर चर्चा में है। चुनावी बिसात बिछने लगी है, अलग-अलग मुखौटा लेकर राजनैतिक कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं।
कांग्रेस-भाजपा बुन्देलखण्ड को सदन के भीतर मुद्दा बनाने में जुट गए हैं, तो उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी नीत सरकार ने बुन्देलखण्ड के हिस्से का बजट ही नहीं बढ़ाया, बल्कि वहाँ अनाज, दाल, तेल के आवंटन तथा बिजली बिल आदि में छूट का मन बना लिया है।
हो सकता है कि अगले कुछ महीनों में बुन्देलखण्ड के लिये किसी अन्य पैकेज... अन्य दर्जे को लेकर फिर माँग बुलन्द की जाये या फिर अलग राज्य व राजनीति के नारे गढ़े और मढ़े जाएँ, किन्तु क्या इनसे बुन्देलखण्ड की प्रकृति का कुछ भला होगा? वे वोट साधने आ रहे हैं, बुन्देलखण्ड को पारिस्थितिकी साधनी है। उसे राजनीति से बचना है। लोकनीति तय करनी है। कैसे करें? मेरे जैसे प्राकृतिक सरोकारी के लिये इस समय का विचारणीय प्रश्न यही है और शायद जन-जल जोड़ो अभियान की बुन्देलखण्ड कार्यशाला का भी।
समझने-समझाने का सटीक समय
मेरी राय में यह सटीक समय है, यह समझने का भी कि पलायन और आत्महत्याओं के शोर जब-जब बुन्देलखण्ड से बाहर गया, बुन्देलखण्ड में पैकेज आये, भ्रष्टाचार आया, नया विकास आया, किन्तु सूखा और प्राकृतिक समृद्धि नहीं लौटी। क्यों?
हुआ यूँ कि इलाके के कष्ट व लाचारी देखने के नाम पर बुद्धिजीवियों की जो भीड़ यहाँ आई, उसने यहाँ की बेशकीमती प्राकृतिक विरासत का पता दुनिया के बाज़ार को बता दिया। ताजा चित्र यह है कि जमीन हड़पो अभियान वालों की निगाहें यहाँ गड़ गई हैं और उन्हें मदद करने काली सड़क और रेल की पटरियाँ पहुँचने लगी है। चिन्ता इस बात की है कि राज्य बने बगैर ही बुन्देलखण्ड में नई लूट का जो नया दौर आया है, उससे पर्यावरण और विकास की कुछ नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। गौर कीजिए कि आत्महत्या के सबसे ज्यादा आँकड़े उन्हीं जिलों के हैं, जहाँ सबसे ज्यादा खनन है और वन व चारे का संकट भी सबसे ज्यादा है। इन चुनौतियों पर चिन्तन इसलिये भी जरूरी है; चूँकि एक समय आई पी एस अधिकारी नरेन्द्र ने इन्हीं चुनौतियों को चुनौती देने की कोशिश की थी; बदले में उन्हें मौत दे दी गई।
केन्द्रीय जलमंत्री सुश्री उमाजी को भले ही न सुनाई दे, किन्तु केन और बेतवा..दोनों नदियों के नदी जोड़ से आने वाली बर्बादी व अशान्ति की धमक सुनाई देनी यहाँ शुरू हो गई है; बावजूद इसके भारत सरकार की जलमंत्री सुश्री उमा भारती जी ने ऐलान कर दिया है कि नदी जोड़ से ही जल और खाद्य सुरक्षा सम्भव है। उलटबाँसी देखिए कि जिस बुन्देलखण्ड में पानी को लेकर हायतौबा है, उसी बुन्देलखण्ड का भूजल खींचने के लिये ‘रेलनीर संयंत्र’ को भी लालच आया। जलमंत्री और रेलमंत्री को जनसन्देश देने का भी यही सटीक समय है।
भूगोल समझे बगैर दिये गए सुझावों और की गई ऐसी सरकारी कवायदों का नतीजा यह है कि बुन्देलखण्ड के कुएँ और छोटे तालाबों के हलक आज फिर सूखे हैं। नहरों में पहले ही धूल उड़ रही है। इससे बुन्देलखण्ड में सिंचाई और पेयजल का नया संकट खड़ा हो रहा है। महोबा में निजी तालाबों की अच्छी पहल हुई है। उनसे सीखने का भी यही सटीक समय है और बेसमझी की कवायदों को आईना दिखाने का भी सटीक समय यही है; वर्ष 2017 से पहले का चुनाव समय।
जन योजना बनाने और लागू कराने का सटीक समय
मेरा मानना है कि पर्यटन और तीर्थ के फर्क को समझते हुए बुन्देलखण्ड की समृद्धि का मॅाडल एक समृद्ध प्राकृतिक-सांस्कृतिक-तीर्थ व परम्परागत वनक्षेत्र के रूप में ही हो सकता है। जरूरी है कि आजीविका और सुविधाओं के सपने की पूर्ति के लिये खेती पर पूर्ण निर्भरता को कम किया जाये। जरूरी है कि बुन्देली गाँवों को स्थानीय कौशल आधारित कुटीर-घरेलू उद्योगों का घर बनाया जाये, न कि कचरा उद्योगों और कंक्रीटी नाश का घर। ‘कौशल भारत, कुशल भारत’ इस काम को कैसे आगे बढ़ा सकता है; जाँचना चाहिए।
यह मेरी नासमझी भी हो सकती है। बुन्देलखण्ड के लोग मुझसे बेहतर समझ रखते हैं। बुन्देलखण्ड, रणबाँकुरे आल्हा-ऊदल और वीरांगना लक्ष्मीबाई की धरती है। अतः यह सटीक समय है कि बुन्देलखण्ड के लोग एकजुट हों। वे खुद तय करें कि उन्हें कैसा विकास चाहिए? बुन्देलखण्ड विकास की लोक योजना बनाएँ। जनप्रतिनिधियों और सरकारों को विवश करें कि वे बुन्देलखण्ड के लोगों की बनाई योजना के आधार पर बुन्देलखण्ड के विकास कार्य सुनिश्चित करें।