Source
गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011

संदर्भ
बागवानी न सिर्फ आजीविका की दृष्टि से वरन् पर्यावरण सुधार की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। बुंदेलखंड प्राकृतिक संपदा से भरपूर क्षेत्र रहा है, परंतु जल और ज़मीन की तरह ही यहां पर जंगल का भी खूब दुरुपयोग हुआ और ख़ामियाज़ा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। हालात यह है कि जब कहीं पर पानी की अधिकता के कारण खेती नहीं हो पा रही है, तो कहीं पर पानी की कमी के चलते लोग खेती नहीं कर पाते हैं।
ऐसे समय में बागवानी कार्य को शुरू करना, उसे प्रोत्साहन देना एक ऐसा कार्य है, जो परिवार की आजीविका चलाने में तो सक्षम है ही, उससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में भी सफलता मिलेगी। शायद यही सोच हरसिंगपुर वासियों की है, जिसके चलते उन्होंने बागवानी को अपनी खेती का प्रमुख अंग बना लिया है। इस प्रकार वे इस प्रक्रिया के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से भी परोक्ष रूप से निपट रहे हैं।
प्रक्रिया
खेत का चयन
ऐसे खेत का चयन किया गया, जो गांव के किनारे हों, जहां पर पौधों को फलने-फूलने का पर्याप्त स्थान व वातावरण मिले।
पौधों का चयन
बागवानी लगाने हेतु ऐसे पौधों का चयन किया गया, जो फलदार व छायादार दोनों हो, जिससे खाने व बेचने के लिए फल भी आसानी से मिलता रहे।
बागवानी हेतु पौध
बाग में देशी आम, अमरूद, आंवला, कटहल, करौंदा, नीबू, बेर, केला, अनार, बेल के पौधे लगाए गए।
खेत की क्षेत्रफल व पौधों की संख्या
100 डिसमिल क्षेत्रफल में लगभग 120 पौधे लगते हैं।
अंतः खेती

खाद
देशी खाद का प्रयोग करते हैं जिससे एक तो इनकी लागत कम होती है, क्योंकि खाद ये घर पर ही बना लेते हैं। दूसरे ज़मीन में नमी भी बनी रहती है।
सिचाई
पौधे लगाने के बाद शुरुआती दौर में पेड़ों की सिंचाई करनी पड़ती है। सब्जियों के लिए नमी की आवश्यकता होती है।
उपज
प्राप्त उपज को निम्न तरीके से देख सकते हैं-
फलदार वृक्षों से प्राप्त फल
सब्जियों से प्राप्त उपज
मौसमी विश्लेषण
फलदार वृक्षों से प्राप्त होने वाले फलों की अवधि को जानने के लिए किए गए मौसमी विश्लेषण के आधार पर निकला कि-
