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गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता एवं सरकारी उदासीनता ने किसानों को खेती से विमुख बनाया क्योंकि खेती से उनका जीवन-यापन बमुश्किल ही होता था, ऐसे में सूखे में भी होने वाली जौ की खेती लोगों के लिए सहारा बनी।
सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के जनपद महोबा का विकासखंड कबरई मुख्यतः उबड़-खाबड़ एवं ऊसर भूमि वाला क्षेत्र है, जहां लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेती होने के बावजूद सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता व सरकारी उदासीनता के कारण वे खेती से अपना जीवन-यापन करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इसी विकास खंड का एक गांव है- बम्हौर गुसाई। इस गांव के भौगोलिक परिस्थिति की बात करें तो गांव के पास ही राहुलदेव वर्मन तालाब स्थित है एवं गांव से उत्तर दिशा में गांव से सटे एक नाला निकला हुआ है, जिसके कारण ज़मीन काफी उबड़-खाबड़ व ढालूदार है। कहीं-कहीं तो ढलान 1 मीटर से 1.25 मीटर तक है। ऐसी स्थिति में यहां पर पानी होने के बाद भी उसका लाभ नहीं मिलता।
विगत 6-7 वर्षों से अनेकानेक प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों के चलते सूखा और फिर सुखाड़ की स्थिति ने इस क्षेत्र को और बदहाल किया। गांव में 25 निजी कुआं बोर हैं, जो पूर्णतया सूख चुके हैं। विडम्बना ही है कि सरकार द्वारा संरक्षित तालाब राहुलदेव बर्मन सरकारी उदासीनता के कारण पूरे तौर पर सूख चुका है, जिससे गांव के हैंडपम्पों, कुओं का जलस्तर और भी नीचे जा चुका है। पिछले 4 वर्षों से लागातर सूखा पड़ने के कारण कृषिगत भूमि परती पड़ी हुई है। नाले व पुरानी टूटी-फूटी बंधियों पर लगे पेड़-पौधे पानी न मिलने के कारण सूख चुके हैं। चारा की अनुपलब्धता के कारण पालतू व दुधारू पशुओं को लोगों ने खुला छोड़ दिया है। खाद्यान्न संकट का असर महिलाओं, बच्चों सभी के ऊपर पड़ने लगा है। ऐसे समय में रेलवे विभाग द्वारा जनवरी महीने में रेलवे लाइन बिछाने के लिए 30x30x20 मीटर के गड्ढे खोदे गए, जिसमें से पानी निकल आया। इससे उत्साहित होकर लोगों ने आपदा स्थिति से निपटने हेतु ऐसी खेती को तलाशा जो कम पानी और असमय बुवाई के बाद भी हो जाए और इसी परिप्रेक्ष्य में जौ की खेती प्रारम्भ की।
खेत की तैयारी
जनवरी महीने में खेत की एक सिंचाई करने के बाद दो जुताई ट्रैक्टर से की गई।
जौ की देशी प्रजाति का प्रयोग करते हैं।
एक एकड़ खेत हेतु 40 किग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है।
सामान्यतः यह रबी की फसल होने के कारण इसका समय भी नवंबर मध्य से दिसम्बर प्रथम सप्ताह तक हो होता है, परंतु जनवरी माह में भी इसकी बुवाई करने पर उपज पर कोई विशेष असर नहीं पड़ता है। इसकी बुवाई छिटकवा विधि से करते हैं।
यह एक ऐसी खेती है, जो सिंचाई की सुविधा न हो तो भी हो जाती है। सिर्फ बुवाई से पहले एक बार पलेवा होना जरूरी है।
देर से बुवाई का एक फायदा यह भी हुआ कि इसमें कोई खर-पतवार नहीं लगा और न ही उनके नियंत्रण पर कोई अतिरिक्त खर्च करना पड़ा।
जौ की फसल अवधि 110 दिन की होती है। अप्रैल के अंतिम सप्ताह से इसकी कटाई शुरू हो जाती है।
एक एकड़ में लगभग 6 कुन्तल उपज होती है।
परिचय
सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के जनपद महोबा का विकासखंड कबरई मुख्यतः उबड़-खाबड़ एवं ऊसर भूमि वाला क्षेत्र है, जहां लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेती होने के बावजूद सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता व सरकारी उदासीनता के कारण वे खेती से अपना जीवन-यापन करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इसी विकास खंड का एक गांव है- बम्हौर गुसाई। इस गांव के भौगोलिक परिस्थिति की बात करें तो गांव के पास ही राहुलदेव वर्मन तालाब स्थित है एवं गांव से उत्तर दिशा में गांव से सटे एक नाला निकला हुआ है, जिसके कारण ज़मीन काफी उबड़-खाबड़ व ढालूदार है। कहीं-कहीं तो ढलान 1 मीटर से 1.25 मीटर तक है। ऐसी स्थिति में यहां पर पानी होने के बाद भी उसका लाभ नहीं मिलता।
विगत 6-7 वर्षों से अनेकानेक प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों के चलते सूखा और फिर सुखाड़ की स्थिति ने इस क्षेत्र को और बदहाल किया। गांव में 25 निजी कुआं बोर हैं, जो पूर्णतया सूख चुके हैं। विडम्बना ही है कि सरकार द्वारा संरक्षित तालाब राहुलदेव बर्मन सरकारी उदासीनता के कारण पूरे तौर पर सूख चुका है, जिससे गांव के हैंडपम्पों, कुओं का जलस्तर और भी नीचे जा चुका है। पिछले 4 वर्षों से लागातर सूखा पड़ने के कारण कृषिगत भूमि परती पड़ी हुई है। नाले व पुरानी टूटी-फूटी बंधियों पर लगे पेड़-पौधे पानी न मिलने के कारण सूख चुके हैं। चारा की अनुपलब्धता के कारण पालतू व दुधारू पशुओं को लोगों ने खुला छोड़ दिया है। खाद्यान्न संकट का असर महिलाओं, बच्चों सभी के ऊपर पड़ने लगा है। ऐसे समय में रेलवे विभाग द्वारा जनवरी महीने में रेलवे लाइन बिछाने के लिए 30x30x20 मीटर के गड्ढे खोदे गए, जिसमें से पानी निकल आया। इससे उत्साहित होकर लोगों ने आपदा स्थिति से निपटने हेतु ऐसी खेती को तलाशा जो कम पानी और असमय बुवाई के बाद भी हो जाए और इसी परिप्रेक्ष्य में जौ की खेती प्रारम्भ की।
प्रक्रिया
खेत की तैयारी
जनवरी महीने में खेत की एक सिंचाई करने के बाद दो जुताई ट्रैक्टर से की गई।
बीज की प्रजाति
जौ की देशी प्रजाति का प्रयोग करते हैं।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत हेतु 40 किग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है।
बुआई का समय व विधि
सामान्यतः यह रबी की फसल होने के कारण इसका समय भी नवंबर मध्य से दिसम्बर प्रथम सप्ताह तक हो होता है, परंतु जनवरी माह में भी इसकी बुवाई करने पर उपज पर कोई विशेष असर नहीं पड़ता है। इसकी बुवाई छिटकवा विधि से करते हैं।
सिंचाई
यह एक ऐसी खेती है, जो सिंचाई की सुविधा न हो तो भी हो जाती है। सिर्फ बुवाई से पहले एक बार पलेवा होना जरूरी है।
खर-पतवार नियंत्रण
देर से बुवाई का एक फायदा यह भी हुआ कि इसमें कोई खर-पतवार नहीं लगा और न ही उनके नियंत्रण पर कोई अतिरिक्त खर्च करना पड़ा।
कटाई का समय
जौ की फसल अवधि 110 दिन की होती है। अप्रैल के अंतिम सप्ताह से इसकी कटाई शुरू हो जाती है।
उपज
एक एकड़ में लगभग 6 कुन्तल उपज होती है।