स्वच्छ भारत अभियान - चुनौतियां और समाधान (Essay on Swachh Bharat Abhiyan promises and challenges in Hindi)

Submitted by birendrakrgupta on Thu, 10/09/2014 - 13:46
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योजना, अक्टूबर 2014

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर, 2014 को गांधी जयंती के अवसर पर हो रही है। इस अभियान का लक्ष्य 2019 में गांधीजी की 150वीं जयंती तक पूरे देश को शौचालय सुविधा से युक्त और खुले में शौच की प्रवृत्ति से मुक्त करना है। इस क्रम में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘शहरी क्षेत्रों के लिए स्वच्छ भारत मिशन’ कार्यक्रम को 24 सितम्बर को स्वीकृति भी दे दी। मिशन के तहत कुल 4041 सांविधिक नगरों में 5 वर्षों तक चलने वाले इस कार्यक्रम की अनुमानित लागत 62,009 करोड़ रुपये होगी। जिसमें केंद्रीय सहायता 14,623 करोड़ रुपये की होगी।गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू हो रहे स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य 2019 तक भारत को खुले में शौच की प्रवृत्ति से मुक्त बनाना है। यह उद्देश्य व्यक्तिगत, सामूहिक और सामुदायिक शौचालय के निर्माण के माध्यम से हासिल किया जाना है। ग्राम पंचायत के जरिये ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के साथ गांवों को साफ रखे जाने की योजना है। मांग के आधार पर सभी घरों को नलों के साथ जोड़कर सभी गांवों में पानी पाइपलाइन 2019 तक बिछाये जाने हैं। इस लक्ष्य को सभी मंत्रालयों तथा केंद्रीय एवं राज्य की योजनाओं के बीच सहयोग और तालमेल, सीएसआर एवं द्विपक्षीय/बहुपक्षीय सहायता के साथ सभी तरह के नवीन एवं अभिनव उपायों के वित्तपोषण के माध्यम से हासिल किया जाना है।

भारत में 1.21 अरब लोग रहते हैं और दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा यहां निवास करता है। देश में 1980 के दशक की शुरुआत में स्वच्छता आवृत्ति क्षेत्र एक प्रतिशत जितना कम था। 2011 की जनगणना के हिसाब से, 16.78 करोड़ घरों की लगभग 72.2 प्रतिशत भारतीय जनसंख्या 6,38,000 गांव में रहती है। इनमें से सिर्फ 5.48 करोड़ ग्रमीण घरों में शौचालय है जिसका मतलब है कि देश के 67.3 प्रतिशत घरों की पहुंच अब भी स्वच्छता सुविधा तक नहीं हो पाई है। राज्यों के माध्यम से पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय से कराए गए आधारभूत सर्वेक्षण 2012-13 के अनुसार पाया गया है कि 40.35 प्रतिशत ग्रामीण घरों में शौचालय हैं।

चुनौतियां


गांवों में लगभग 59 करोड़ व्यक्ति खुले में शौच करते हैं। जनसंख्या के बड़े हिस्से की मानसिकता खुले में शौच करने की है और इसे बदलने की आवश्यकता है। उनमें से कई पहले से ही शौचालय होने पर भी खुले में शौच करना पसंद करते हैं। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती आबादी के इस बड़े हिस्से में शौचालय के इस्तेमाल को लेकर उनके व्यवहार में बदलाव लाने की है। मनरेगा और निर्मल भारत अभियान के बीच तालमेल की समस्या जैसे मुद्दे, शौचालय के उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता, निष्क्रिय/बेकार हो चुके शौचालय पहले से निर्मित शौचालयों का क्या किया जाए जैसे मुद्दों के साथ ग्रामीण स्वच्छता के कार्यान्वयन के लिए क्षेत्रीय स्तरीय कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या के बारे में भी गंभीरता से सोचा जाना है।

बढ़ते कदम


बदल रही मानसिकता बहुत महत्वपूर्ण है। चूंकि अधिकतर आईईसी (सूचना, शिक्षा एवं संचार) कोष राज्यों के पास हैं, इसलिए राज्य सरकारों को छात्रों, आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, चिकित्सकों, शिक्षकों, प्रखंड संयोजकों आदि के माध्यम से अंतर्व्यक्ति संचार (आईपीसी) पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके लिए इन्हें घर-दर-घर भी संपर्क करना होगा। लघु फिल्मों की सीडी, टेलीविजन, रेडियो, डिजिटल सिनेमा, पंफलेट के उपयोग भी करने होंगे।

सुरक्षित स्वच्छता व्यवहार के प्रति अपनी मानसिकता में बदलाव लाने के लिए स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों/सिनेमा की हस्तियों की भी इस अभियान में भागीदारी जरूरी है। पाइप जल आपूर्ति एवं घरों में शौचालय के लिए जिला स्तरीय सामेकित डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट्स) के जरिए एकदम निचले स्तर की योजना में पानी और स्वच्छता दोनों को एक साथ शामिल करना होगा। इसके लिए राज्य स्तरीय योजना स्वीकृति समिति की मंजूरी लेनी होती है। माइक्रोफाइनेंस एवं बैंकों के माध्यम से एपीएल परिवारों के लिए इस तरह के शौचालयों का पुनर्निर्माण भी कराया जा सकता है।

यदि हम अपने घरों के पीछे सफाई नहीं रख सकते तो स्वराज की बात बेईमानी होगी।
हर किसी को स्वयं अपना सफाईकर्मी होना चाहिए : महात्मा गांधी
वर्तमान में अनावश्यक दोहराव और भ्रम से बचने के लिए राज्य स्तर पर पेयजल की आपूर्ति और स्वच्छता विभागों के विलय के माध्यम से प्रशासनिक आधारभूत ढांचे के सशक्तीकरण की योजना है। प्रखंड संयोजक एवं स्वच्छता दूत अब अनुबंध के आधार पर भर्ती किए जा रहे हैं एवं लोगों के प्रोत्साहन सूचना के प्रसार के लिए एनजीओ, स्व सहायता समूह, स्कूली छात्र, स्थानीय महिला समूह आदि के जरिए अंतर्वैंयक्तिक संचार के नए तरीकों का पता लगाया जा सकता है। मिशन के भीतर कंपनी अधिनियम के अंतर्गत एक कंपनी के रूप में एसपीवी (विशिष्ट उद्देश्य वाहन) स्थापित किये जाने की योजना है। सीएसआर कोष, सरकारी एवं गैर सरकारी कोषों के अलावे एक बाहरी स्रोत होगा एवं सीएसआर परियोजना को लागू करेगा। यह केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दिये गए जल एवं स्वच्छता के लिए विशिष्टता प्राप्त पीएमसी के रूप में भी काम करेगा। यह राजस्व स्रोतों, सामुदायिक शौचालयों, सामुदायिक जल उपचार संयंत्रों आदि मामलों में भी कार्रवाई करेगा। जल एवं स्वच्छता के लिए कई जिलों में काम करने वाली बहु ग्रामीण पाइपलाइन परियोजनाओं के लिए राज्यों द्वारा जिला डीपीआर की तैयारी के लिए पीएमसी (प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट) की जरूरत पड़ने पर नौकरियों पर भी रख सकेगा। केंद्र/राज्यों द्वारा भुगतान के आधार पर एक पीएमसी के रूप में आईईसी/आईपीसी गतिविधियों को भी अपने हाथ में ले सकता है। आधारभूत सर्वेक्षण 2013 में, राज्यों ने बताया है कि देश में निम्नलिखित स्वच्छता सेवा उपलब्ध कराने की अवश्यकता है :

घटक

संख्या

भारत में कुल घरों की संख्या

17.13 करोड़

आईएचएचएल

11.11 करोड़*

विद्यालय में शौचालय

56,928

आंगनवाड़ी शौचालय

1,07,695

सामुदायिक स्वच्छता परिसर

1,14,315

*(इनमें से केवल 8,84,39,786 ही पात्र# श्रेणी के अंतर्गत है)


योजना के लिए शेष परिवार :

कुल परिवार जिनके लिए आधारभूत सर्वेक्षण में शौचालय की आवश्यकता दिखाई गई है

11.11 करोड़

(-) अपात्र एपीएल

0.88 करोड़

(-) निष्क्रिय

1.39 करोड़

#शुद्ध बीपीएल पात्र एवं एपीएल पात्र

8.84 करोड़


इस प्रकार स्वच्छ भारत/निर्मल भारत अभियान योजना के अंतर्गत अगले पांच सालों में 2019 तक प्रतिवर्ष 177 लाख की दर से 8.84 करोड़ परिवारों को प्रोत्साहन दिया जाना है। इस समय परिवारों में शौचालय की वृद्धि दर 3 प्रतिशत है जिसे स्वच्छ भारत के जरिये 2019 तक तीन गुणा से ज्यादा बढ़ाकर 10 प्रतिशत तक की उपलब्धि पर ले जाना है। इस समय 14,000 शौचालय प्रतिदिन बनाये जा रहे हैं। इस योजना में शौचालय निर्माण दर 48,000 तक प्रतिदिन करना है। नाबार्ड/सिडबी के सहयोग से 2.27 करोड़ शौचालय (एपीएल श्रेणी के अंतर्गत) और बनाये जाने हैं। इसे अनुनय ‘विनय, सामूहिक दबाव के इस्तेमाल से सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) एवं अंतर्वैंयक्तिक संचार (आईपीसी) उपायों के माध्यम से अंजाम देना है।

क्रियान्वयन प्रणाली


ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के क्षेत्र में क्रियान्वयन प्रणाली को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जायेंगे-

1. जल एवं स्वच्छता पर राज्यों के साथ एक सहमति ज्ञापन होगा जिसमें राज्य 2019 तक स्वच्छ भारत के लिए प्रतिबद्ध होंगे। राज्य 2015 तक जल एवं स्वच्छता के बीच अंतर्विनिमय कोष के साथ जल एवं स्वच्छता दोनों के कार्यान्वयन के लिए राज्यस्तरीय एक एकीकृत संरचना का निर्माण करेंगे।
2. केंद्रीय कोष से अतिरिक्त खर्च से बचने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अपनायी गई नीति, ‘समय पर काम, की अवधारणा को राज्यों के साथ मिलकर अंजाम दिया जाएगा।
3. जल एवं स्वच्छता दोनों के पूर्ण रूप में जिलों के एफआर (फिल्ड रिपोर्ट)/डीपीआर के आधार पर कोष को परियोजना आधार पर निर्गत किया जाएगा।
4. केंद्रीय स्तर पर एक एसपीवी (स्थापित किया जा सकता है) एक पीएमसी के रूप में कार्य करेगा और यह सीएसआर का वित्तपोषण करेगा और पीपीपी परियोजनाओं के अंतर्गत सामुदायिक शौचालयों, जल शुद्धिकरण की प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जा सकेगा।
5. एसपीवी भी प्रभावी ढंग से आईईसी/आईपीसी गतिविधियों को लागू करेगा। नाबार्ड, सिडबी जैसी एजेंसियों के जरिये उन घरों के शौचालय के लिए लघु ऋण तंत्र को प्रभावी बनायेगा, जिन्हें या तो प्रोत्साहन की जरूरत नहीं है या शायद स्नान करने की जगह के साथ जिन्हें बेहतर शौचालय के निर्माण की आवश्यकता है।
6. प्रखंड स्तरीय स्वच्छता संयोजक कार्यकर्ताओं की प्रणाली को विकसित किये जाने की जरूरत है, जो ग्राम पंचायतों के मुख्य सहयोगी होंगे और जो सूचनाओं एवं स्वच्छता गतिविधियों के सशक्तीकरण में मददगार साबित होंगे।
7. देशभर की प्रत्येक ग्राम पंचायतों के लिए स्वच्छता दूत की पहचान करनी होगी, जिन्हें स्वच्छता के कौशल से लैस करना होगा और उन्हें उनके प्रदर्शन पर प्रोत्साहन राशि दी जायेगी।
8. घर के स्तर पर मंत्रालय की एमआईएस के माध्यम से गहन निगरानी रखी जायेगी। प्रतिपुष्टि के लिए केंद्र एवं राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावे सरपंचों से भी संवाद करने की जरूरत है।
9. निर्मित शौचालयों के वास्तविक उपयोग के आधार पर जुटाये गए आंकड़ों पर केंद्रित करते हुए वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण किया जाएगा।

निर्मल भारत पुरस्कार स्थगित कर दिया जाएगा और पंचायतों राज्य संस्थाओं- ग्राम पंचायत, प्रखंड पंचायत एवं जिला पंचायत एंव व्यक्तियों, अधिकारियों, संस्थाओं एवं एनजीओ के सर्वोत्तम प्रयासों को पुरस्कृत करने के लिए व्यापक आधार पर स्वच्छ भारत पुरस्कार योजना शुरू की जायेगी।

तालमेल


घरों में शौचालय निर्माण के लिए मनरेगा, आईएवाई, सीएससी निर्माण के लिए बीआरजीएफ और विद्यालय एवं आंगनवाड़ी शौचालयों के निर्माण तथा सामुदायिक स्वच्छता परिसर के विकास के लिए जिम्मेदार एमडब्लूसीडी के साथ मिलकर एक सम्मिलन बिंदु का पता लगाया जा सकता है।

1. घरों में शौचालयों के लिए पानी की आपूर्ति करने वाली परियोजना एनआरडीडब्लूपी के जरिये विद्यालय एवं आंगनबाड़ी शौचालयों के निर्माण तथा सामुदायिक स्वच्छता परिसर के लिए जल आपूर्ति को भी सुनिश्चित किया जाएगा। (अगर आवश्यकता हुई तो दो क्षेत्रों में धन एवं कार्यकर्ताओं की अदल-बदल लागू की जाएगी।)
2. राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण योजना के माध्यम से पंचायती राज मंत्रालय के साथ अपनी स्वच्छता परयोजना गतिविधि, जो ग्राम पंचायतों के लिए सबसे उच्च प्राथमिकता वाली होगी।
3. जल आपूर्ति योजनाओं के साथ सीएससी एवं एसएलडब्लूएम (ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन) और खासकर विद्यालयों, आंगनवाडि़यों में स्वच्छता सुविधा के निर्माण के लिए सांसद/विधायक विकास कोष का दोहन और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ अन्य कंपनियों से हासिल सीएसआर कोष के सम्मिलन को आगे बढ़ाना।
4. इसके अलावा, राज्य स्तरीय राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन (एसडब्लूएसएम) एवं जिला स्तरीय डीडब्लूएसएम को सीएसआर फंड के दोहन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
5. एकीकृत महिला स्वच्छता परिसर के निर्माण के लिए एम/ओ डब्लूसीडी का सम्मिलन तथा शौचालयों एवं पीने के लिए पानी उपलब्ध कराना।

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान के लिए आवश्यक धन

क्रमांक

घटक

कुल राशि*

अभ्युक्ति

1.

व्यक्तिगत शौचालय

4,165

दो वर्षों में पूर्ण

2.

सामुदायिक शौचालय

655

-तथैव-

3.

सार्वजनिक शौचालय

0

पीपीपी के जरिए

4.

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

7,366

दूसरे व तीसरे वर्ष में 90 प्रतिशत कवरेज

5.

जनजागृति

1,828

6.

क्षमता निर्माण आदि मद

14,625


*(रु. करोड़ में) स्रोत : www.pib.nic.in


सामुदायिक नेतृत्व में संपूर्ण स्वच्छता (सीएलटीएस) सामुदायिक नेतृत्व में संपूर्ण स्वच्छता (सीएलटीएस) पूरी तरह से खुले में शौच (ओडी) को खत्म करने के लिए समुदायों के बीच एकजुटता कायम करने की एक अभिनव पद्धति है। समुदायों को अपने स्वयं के मूल्यांकन का संचालन करनें के लिए मदद किया जाता है एवं खुले में शौच (ओडी) के विश्लेषण करने तथा खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करने के लिए उनके स्वयं की कार्रवाई में भी मदद की जाती है। सामुदायिक नेतृत्व में स्वच्छता के हृदय पर यह एक झूठी पहचान की तरह चस्पा हैं जिनके न तो उपयोग की गारंटी है और न ही उन्नत स्वच्छता एवं स्वास्थ्य रक्षा जैसे परिणाम देती है। सामुदायिक नेतृत्व में पूर्ण स्वच्छता व्यावहारिक बदलाव पर अपना ध्यान पर केंद्रित करती है, जिसमें वास्तविक और स्थायी सुधार की जरूरत है- हार्डवेयर के बजाय समुदाय को एकजुट करने में निवेश एवं व्यक्तियों के लिए शौचालय निर्माण की बजाय खुले में शौच मुक्त गांव के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना।

यहां तक कि एक अल्पसंख्यक के रूप में उनके बीच जागरूकता बढ़ाकर उन्हें इस बात के लिए आगाह करना कि खुले में शौच करना किसी रोग के खतरे की आहट है, सामुदायिक नेतृत्व में संपूर्ण स्वच्छता समुदाय को अपनी इच्छा में बदलाव के लिए उन्हें आग्रही बनाती है, कार्रवाई के लिए प्रेरित करती है और अभिनव प्रयोग, परस्पर सहयोग एवं उचित स्थानीय समाधान के लिए उन्हें प्रोत्साहन देती है, इस प्रकार अधिक से अधिक स्वामित्व और स्थिरता के लिए अग्रणी भूमिका निभाती है। इस दृष्टिकोण को व्यक्तिगत प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं है और राज्य के साथ अधिक से अधिक चर्चा किये जाने की जरूरत है। हालांकि कुछ प्रारंभिक प्रखंड अनुदान पंचायत के लिए भी विचारणीय है यह भी एक पुरस्कार से कम नहीं है अगर एक बार में पूरा गांव खुले में शौच करने से मुक्त हो जाता है।

(स्रोतः जल संसाधन एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों के लिए जारी परामर्श का मसविदा)