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अमर उजाला, 24 जून, 2018

स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 में शीर्ष-50 में आने का लक्ष्य उत्तराखण्ड के किसी भी शहर के लिये पहले दिन से बेहद कठिन था। नगर निकायों ने फिर भी जमकर मेहनत की। सरकार ने भी 75 लाख का इनाम घोषित किया, लेकिन टॉप-50 का सपना हकीकत न बन सका, इसके बावजूद, जिस तरह से उत्तराखण्ड के नगर निकायों ने अपनी रैकिंग में जबर्दस्त सुधार किया है, उसने सरकार को मुस्कराने का मौका दे दिया है।
इस बार के सर्वेक्षण में अपने निकायों की बढ़ी हुई संख्या के साथ उत्तराखण्ड शामिल हुआ। पिछली बार सिर्फ सात नगर निकायों ने इसमें भाग लिया था। मगर इस बार 87 नगर निकायों ने भागीदारी की। नौ छावनी परिषद अलग से इस सर्वेक्षण में शामिल थे। रुड़की से पहले दिन से ही बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी। इस निकाय ने इसे साबित भी कर दिया।
हालांकि छोटे और मंझोले नगर निकायों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी। इसके पीछे तर्क ये थे कि छोटा आकार होने के कारण वहाँ सफाई व्यवस्था का प्रबन्धन अपेक्षाकृत आसान रहेगा, लेकिन वह बहुत निखरकर सामने नहीं आ पाये। देशभर के 3541 शहरों से उन्हे चुनौती मिली। इस हिसाब से बड़े शहरों का अपनी रैकिंग में सुधार आने वाले दिनों के लिये आश्वस्त करने वाला जरूर रहा है।
व्यवस्थाएँ सुधारी तो रैकिंग में 57 का सुधार
सर्वेक्षण के दौरान बेहतर अंक हासिल करने के लिये नगर निगम की ओर से भी प्रयास किये गये। इन्हीं प्रयासों के चलते दून की रैकिंग में 57 अंकों का सुधार हुआ है नगर निगम ने सर्वेक्षण के दौरान सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिये भी प्रयास किये। आम जन की भागीदारी बढ़ाने के लिये सार्वजनिक शौचालयों में फीडबैक मशीनें लगवाई गईं। निगम क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त करने के लिये भी प्रयास किये गये। जन जागरुकता और जन सहभागिता के लिये स्कूल, कॉलेज, अस्पतालों व रेस्त्रां में अभियान चलाया गया, जिससे अंकों में फायदा मिला। इसका सीधा असर रैकिंग पर भी पड़ा है।
पहले चरण में इनके आधार पर हुआ था मूल्याकंन (1400 अंक)
1. ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) के प्रतिदिन उठान व परिवहन से सम्बन्धित।
2. सॉलिड वेस्ट की प्रोसेसिंग और मैनेजमेंट (निस्तारण) से सम्बन्धित गतिविधियाँ।
3. खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) व स्वच्छता की गतिविधियाँ।
4. आईईईसी और व्यवहार परिवर्तन। क्षमता विकास और नये प्रयोगों से जुड़े कार्य।
दूसरे चरण में इनके आधार पर दिये अंक (1200)
1. क्या निकाय के तहत आवासीय परिसर मलिन बस्तियाँ, पुराना शहर, गैर योजनागत क्षेत्र या योजना क्षेत्र साफ हैं?
2. क्या निकाय क्षेत्र में सामुदायिक शौचालय महिलाओं, बच्चों व दिव्यागों के अनुकूल हैं?
3. क्या सार्वजनिक शौचालयों में प्रकाश व्यवस्था है या वह हवादार और पानी युक्त हैं?
4. क्या सार्वजनिक शौचालयों में सीवर के सुरक्षित निस्तारण के इन्तजाम हैं?
5. खुले में शौच तो नहीं हो रहा?
6. सार्वजनिक शौचालय परिसरों में आईईसी सामग्री होर्डिंग लगे हैं?
(इस चरण में छह सेक्टर की व्यवस्थाओं का स्थलीय निरीक्षण किया गया। इनके आधार पर टीम ने मूल्यांकन कर अंक दिये।)
तीसरे चरण में ली गई जनता की राय (1000 अंक)
1. क्या आप जानते हैं कि आपका शहर स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 में प्रतिभाग कर रहा है?
2.क्या आप अपने क्षेत्र को पिछले साल से स्वच्छ पाते हैं?
3. क्या आप नगर निगम के डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने की सुविधा से सन्तुष्ट हैं?
4. क्या पिछले साल की तुलना में सार्वजनिक शौचालयों और मूत्रालयों की संख्या बढ़ने से खुले में शौच व मूत्र त्याग की प्रवृत्ति में कमी आई है?
5.क्या अब सार्वजनिक, सामुदायिक शौचालय पहले से ज्यादा साफ और सुलभ हैं?
(इस चरण में जनता से सवाल पूछे गये, जिसके आधार पर अंक दिये गये छह सेक्टर/कार्य को लेकर जनता की प्रतिक्रिया पूछी गई। इसके अलावा 400 अंकों का बँटवारा स्वच्छता एप को डाउनलोड करने वालों की संख्या के आधार पर होना था।)
कैंटों का धमाका, बढ़ाया सम्मान
स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 में छावनी परिषदों को भी नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों के साथ प्रतिस्पर्धा में शामिल किया गया था। हालांकि राज्य सरकार का नियंत्रण सिर्फ नगर निगम, पालिका और पंचायतों पर ही होता है। कैंट सीधे तौर पर रक्षा मंत्रालय के अधीन होते हैं। मगर केन्द्र सरकार ने सर्वेक्षण की जो व्यवस्था दी थी, उसमें सम्बन्धित राज्य में आने वाले निकायों और कैंट का सर्वेक्षण एक साथ कराया गया। राज्य सरकार भले ही किसी भी निकाय के टॉप-50 में न आने से थोड़ा मायूस हो सकती हो, लेकिन उत्तराखण्ड के पास गौरव महसूस करने के लिये अल्मोड़ा और रानीखेत समेत अन्य कैंट के बेहतर प्रदर्शन का आधार जरूर मौजूद है।
इन व्यवस्थाओं पर हुआ मूल्यांकन
घर-घर से कूड़ा उठान व्यवस्था, कूड़ेदानों की संख्या (जैविक और अजैविक अलग-अलग), कूड़े की ढुलाई की व्यवस्था, कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था, सार्वजनिक शौचालयों की संख्या व उनकी स्थिति।
नेगेटिव मार्किंग की व्यवस्था थी लागू
स्वच्छ सर्वेक्षण के दौरान नेगेटिव मार्किंग की व्यवस्था भी की गई थी। दस्तावेज और वास्तविक स्थिति में अन्तर पाये जाने पर नकारात्मक अंक देने की व्यवस्था की गई थी। कोई भी शहर गलत जानकारी न दे, इसके लिये यह प्रावधान जोड़ा गया था।
सात राज्यों की एक लाख से कम आबादी वाली पालिकाओं में मुनिकीरेती दूसरे नम्बर पर
स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 में उत्तर भारत के सात राज्यों में मुनिकीरेती नगर पालिका को दूसरा स्थान मिला है। इसके साथ ही उत्तराखण्ड के चार शहरों ने शीर्ष-20 में जगह बनाई है। प्रदेश के 14 नगर पालिकाओं ने शीर्ष-100 में जगह बनाई है। उत्तर भारत के राज्यों में उत्तराखण्ड के अलावा हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एंड कश्मीर, पंजाब और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।