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उत्तर प्रदेश सरकार ने सौ बड़े तालाबों को एक-साथ उड़ाही के लिये चयनित किये। पचास तालाबों का चयन महोबा से किया गया। अट्ठारह तालाबों का बांदा से किया गया। शेष 32 तालाबों का चयन बुन्देलखण्ड के अन्य जिलों से किया गया। महोबा के चरखारी के पाँच से ज्यादा तालाबों की उड़ाही बहुत सुन्दर तरीके से की गई। महोबा के लगभग सभी जगह की रिपोर्टें बताती हैं कि लगभग हर जगह अच्छी तरह उड़ाही की गई है और उनमें पानी आने-जाने के रास्तों पर भी काम किया गया है। उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में लगभग हर गाँव में औसतन 4-5 तालाब हैं। पूरे बुन्देलखण्ड में पचास हजार से ज्यादा तालाब फैले हुए हैं। चन्देल-बुन्देला राजाओं और गौड़ राजाओं के साथ ही समाज के बनाए तालाब ही बुन्देला धरती की जीवनरेखा रहे हैं। और ज्यादातर बड़े तालाबों की उम्र 400-1000 साल हो चुकी है।
उम्र का एक लम्बा पड़ाव पार कर चुके तालाब अब हमारी उपेक्षा और बदनीयती के शिकार हैं। तालाबों को कब्जेदारी-पट्टेदारी से खतरा तो है ही, पर सबसे बड़ा घाव तो हमारी उदासीनता का है। हमने जाना ही नहीं कि कब आगोर से तालाबों में पानी आने के रास्ते बन्द हो गए और कब हमारी उपेक्षा की गाद ने तालाबों को पूर दिया। इन सबके बावजूद 15 से 50 पीढ़ी तक इन्होंने बुन्देलखण्ड को पानी पिलाया है और आने वाली पीढ़ियों को भी पानी पिलाते रहेंगे, अगर अच्छे मन से तालाबों पर काम करते जाएँ। तो बुन्देलखण्ड के खुशियों के सागर कभी हमारा साथ न छोड़ेंगे।
एक बड़ी बहस तालाबों पर
महोबा के दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ हैं संदीप रिछारिया। तालाबों के सन्दर्भ में लगातार सोचते रहते हैं और पत्रकारिता के जरिए बदलाव की भी कोशिश करते रहते हैं। तालाबों के मुद्दों को बारीकी और संजीदगी से उठाने की कोशिश करते रहते हैं। उन्होंने अपने स्थानीय संस्करण में बहुत पहले सितम्बर 15 से ही तालाबों के मुद्दों को काफी बड़ी जगह देना शुरू कर दिया था। वे कहते हैं कि हमारे लगातार कोशिश के बाद जागरण के सभी संस्करणों का मुद्दा बन सका।
दैनिक जागरण ने तालाबों के पुनर्जीवन को लेकर ‘तलाश तालाबों की’ नाम से समाचारीय अभियान की शुरुआत की। इस अभियान को शुरू करने में जागरण के एसोशिएट एडिटर विष्णु त्रिपाठी जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बहरहाल दैनिक जागरण के अभियान की वजह से देश के एक बड़े तबके का ध्यान गया। अभियान के मई से ही शुरू होते ही दस राज्यों में बारह हजार से ज्यादा तालाबों पर कुछ-न-कुछ बदलाव की कोशिश हुई।
दस राज्यों में शुरू हुए जागरण के अभियान का मकसद तालाबों का पुनर्जीवन और सुन्दरीकरण रहा। मई माह के पहले हफ्ते से शुरू तलाश तालाबों के अभियान में उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर के साथ-साथ दिल्ली को भी शामिल किया गया था। अभियान की वजह से सैकड़ों तालाबों की वापसी हुई है।
जागरण के लगभग डेढ़ महीने के अभियान में प्रतिदिन पानी-पर्यावरण पर लिखी गई कालजयी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ से एक अंश नियमित उद्धृत किया जाता रहा है। उद्धृत अंश का अगर आर्थिकी व विज्ञापन जोड़ें तो सभी संस्करणों के हिसाब से न्यूनतम तीस हजार रुपया प्रतिदिन के हिसाब से विज्ञापन की जगह थी। पूरा हिसाब लगाएँ तो 13-14 लाख रुपए के बजट से जो काम होता वह काम अपने आप हुआ।
अपना तालाब अभियान
अपना तालाब अभियान के संयोजक पुष्पेंद्र भाई लगातार महोबा-बांदा हाईवे से लगा गाँव रेवई और उसके आस-पास के गाँवों में तालाब बनवाने में लगे हुए हैं। रेवई में पन्द्रह तालाब किसानों के बन चुके हैं और एक सार्वजनिक तालाब पर काम चल रहा है। रेवई के ही नजदीक के गाँव कहरा में बारह से ज्यादा तालाब बन चुके हैं। उसी के नजदीक सुनैचा में एक बड़े सार्वजनिक तालाब पर काम चल रहा है।
सार्वजनिक तालाबों के उड़ाही का काम नोएडा से गए ‘धर्मपाल-सत्यपाल फाउंडेशन’ के लोग खुद कर रहे हैं। इसी के साथ राज्यसभा के पूर्व अधिकारी वीसी विरमानी ने महोबा के कुलपहाड़ ग्रामीण गाँव में दो तालाब अपने साधनों से बनवाए।
समाजवादी जल संचयन अभियान
उत्तर प्रदेश सरकार ने सौ बड़े तालाबों को एक-साथ उड़ाही के लिये चयनित किये। पचास तालाबों का चयन महोबा से किया गया। अट्ठारह तालाबों का बांदा से किया गया। शेष 32 तालाबों का चयन बुन्देलखण्ड के अन्य जिलों से किया गया। महोबा के चरखारी के पाँच से ज्यादा तालाबों की उड़ाही बहुत सुन्दर तरीके से की गई। महोबा के लगभग सभी जगह की रिपोर्टें बताती हैं कि लगभग हर जगह अच्छी तरह उड़ाही की गई है और उनमें पानी आने-जाने के रास्तों पर भी काम किया गया है।
जल बिरादरी के कर्ताधर्ता राजेन्द्र सिंह ने लगातार उत्तर प्रदेश शासन से सम्पर्क बनाए रखा और तालाबों के लिये प्रदेश शासन को समझाने की भी लगातार कोशिश करते रहे। प्रदेश शासन द्वारा सौ तालाबों के उड़ाही के निर्णय में राजेन्द्र सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय रही।
कोशिशें जो भी हो रही हैं, उनके स्वागत हैं। समाज-सरकार दोनों को ही तालाब के काम को सम्भालना है। दोनों की साझी पहल से ही चार हजार से ज्यादा बड़े, बीस हजार के करीब मध्यम आकार के और पच्चीस हजार से ज्यादा छोटे तालाबों को बचाया जा सकता है। पर धरती के ताल-तलैया ठीक होने से पहले हमारेे मन के ताल बजने लगें, यह ज्यादा जरूरी है। अल्पवर्षा से आये सूखा की वजह से पलायन और आत्महत्या ने बुन्देलखण्ड को बेसुरा और बेताल कर दिया है। ऐसे में बुन्देलखण्ड की धरती के सुर-ताल बनाए रखने के लिये ताल-तलैया बचाने होंगे और, और बनाने होंगे।
सम्पर्क पते -
संदीप रिछारिया
ब्यूरो प्रमुख, दैनिक जागरण
आल्हा चौक, महोबा,
उत्तर प्रदेश -210427
फोन - 9918964564, 9452170564
विष्णु त्रिपाठी
एसोसिएट एडिटर
राष्ट्रीय संस्करण - दैनिक जागरण
D-210, सेक्टर- 63, नोएडा
फोन - 0120 391 5800