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अमर उजाला, 18 दिसम्बर, 2018
देहरादूनः प्रदेश सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के दावे तो कर रही है। लेकिन हकीकत यह है कि सुविधाओं के अभाव और मुनाफा न होने के कारण किसान खेती छोड़ कर आजाविका के लिये अन्य साधनों की तलाश में पलायन कर रहे हैं यही वजह है कि राज्य के गठन के बाद 18 सालों के भीतर प्रदेश में कृषि का 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल घट गया है और 3.18 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर हो गई है। किसानों को सिंचाई, मार्केटिंग व उत्पाद का उचित मूल्य दिलाए बिना पहाड़ों में दोगुनी आय करना सरकार के लिये किसी चुनौती से कम नहीं है।
प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र का 54 प्रतिशत भूमि पर्वतीय क्षेत्रों में है। बिखरी और सीढ़ीनुमा खेतों में खेती करने में किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। पैदावार से लागत का खर्चा भी नहीं निकल पाता है। फसलों के लिये न तो सिंचाई सुविधा है और न ही मार्केटिंग सिस्टम विकसित हो पाया है। साथ ही जंगली जानवर भी किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक कृषि का अधिकांश सिंचित क्षेत्र मैदानी जिलों में है। प्रदेश में 3.30 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। जिसमें 86.88 प्रतिशत मैदानी क्षेत्र में शामिल है।
सिंचाई की सुविधा न होने पर बारिश पर निर्भर हैं किसान
पर्वतीय क्षेत्र में मात्र 13.11 प्रतिशत क्षेत्र में मौजूदा समय में सिंचाई की सुविधा है। बारिश पर भी पर्वतीय क्षेत्र के किसान निर्भर हैं। समय पर बारिश नहीं हुई तो फसल बर्बाद हो जाती है। वहीं, सूखे व अतिवृष्टि से हर साल किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। वर्ष 2014-15 में रवि सीजन में तीन लाख 75 हजार हेक्टेयर भूमि पर फसलों पर 513.69 करोड़ का नुकसान हुआ था। जबकि वर्ष 2015-16 में सूखा पड़ने से एक लाख नौ हजार हेक्टेयर कृषि भूमि पर 95.79 करोड़ का नुकसान हुआ गत वर्ष खरीफ फसलों को 11 हजार हेक्टेयर भूमि पर 4.21 करोड़ का नुकसान आंका गया। इन हालात में किसान खेती छोड़ कर रोजगार के लिये पलायन कर रहे हैं।
दोगुनी आय की योजनाएँ तो बनीं लेकिन धरातल पर नहीं उतरीं
किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से केन्द्र व प्रदेश सरकार की वित्तीय सहायता से कृषि व बागवानी को बढ़ावा देने की योजनाएँ तो बनाई गईं, लेकिन अभी तक उक्त योजनाएँ किसानों तक नहीं पहुँची हैं। पलायन के कारण खाली हो चुके गाँव, जंगली जानवरों का आतंक, गैर सिंचित कृषि क्षेत्र, मार्केटिंग का अभाव समेत अन्य तमाम समस्याओं के कारण पहाड़ों में दोगुनी आय के लक्ष्य तक पहुँचना सरकार के लिये आसान नहीं है।
केन्द्र व प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प लिया है। इसके लिये सरकार ने एकीकृत आदर्श कृषि गाँव योजना (आईएमए विलेज), क्लस्टर आधारित ऑर्गेनिक, ऐरोमेटिक (सगन्ध पौध), फ्लोरीकल्चर, फूड प्रोसेसिंग, कलेक्शन सेंटर, कोल्ड स्टोर, विपणन के लिये फल-सब्जी मंडी खोलने, सूक्ष्म सिंचाई योजना समेत अन्य योजनाएँ तैयार की हैं, लेकिन अभी तक ये योजनाएँ धरातल पर नजर नहीं आ रही हैं।
हाल यह है कि आईएमए विलेज की योजना प्रदेश में लागू नहीं हो पाई है और न ही ब्लॉक स्तर पर योजना के लिये गाँवों का चयन हो पाया है। वहीं, कलेक्शन सेंटर, कोल्ड स्टोर, नई मंडियाँ भी पर्वतीय क्षेत्रों में नहीं खुल पाई हैं। नई कृषि तकनीक को अपनाने के लिये कृषि मंत्री व अधिकारियों ने रूस, इजराइल समेत कई देशों का दौरा भी किया। मगर इसका कोई भी फायदा नहीं मिल पाया है। पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी किसानों को न सिंचाई की सुविधा मिल रही है और न ही उत्पादों के बेचने की उचित व्यवस्था ही हो पाई।
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