ठहरे हुए पानी की सच्चाई

Submitted by Hindi on Tue, 10/07/2014 - 15:49
Source
साक्ष्य मैग्जीन 2002
बहते दरिया की लहरों से हर चेहरा पामाल हुआ
सूरज ने किरणों को खोया चांद की कश्ती डूब गई
रिश्ते टूटे, नक्शे बिगड़े, बेताबी में रंग उड़े
पंख-पखेरू, पेड़ पहाड़ी सब ही उथल-पुथल
साहिल की रेतें आखिर कौन चुराकर भाग गया
नील गगन के आंगन में क्यों लहरों का तूफान उठा
तह के अंदर-अंदर जाने ये कैसा हैजान उठा
पानी ठहरे तो हम देखें क्या-क्या मोती गर्क हुए
झूठ का ये सैलाब थमे तो लम्हा भर को हम भी
साकित पानी की सच्चाई में सरमाए को जांचें
लहरें थककर सो जाएं तो धीरे-धीरे उठें
सारी चीजें अपनी जगह पे देख के खुश हो जाएं
उर्दू कविता