टूटी नहर से चिंतित किसान

Submitted by Shivendra on Mon, 08/22/2022 - 12:05
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चरखा फीचर

टूटी नहर,फोटो साभार- हरीश कुमार

हम सब इस बात से भली भांति परिचित हैं कि भारत एक क़ृषि प्रधान देश है. जहां लगभग 60 से 70 प्रतिशत लोग क़ृषि पर निर्भर हैं. देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक बड़ा हिस्सा है. लेकिन उन्नत कृषि के लिए सबसे ज़रूरी पानी है. जिसकी कमी से इस क्षेत्र को सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. यही कारण है कि आज़ादी के बाद भी सभी सरकारों ने इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया है. हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए नहरें बनवाई गईं और जहां पहले से निर्मित थी उसका पुनरुद्धार किया गया. लेकिन बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण पिछले कुछ दशकों में सरकार का ध्यान इस क्षेत्र से पहले की अपेक्षा कम होती जा रही है. जिसके कारण कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है. 

राज्य और जिला स्तर पर कृषि विभाग की उदासीनता के कारण नहरों के विकास जैसी अहम परियोजना बर्बादी का शिकार होती जा रही हैं. जिसका खामियाज़ा कृषि और किसानों को हो रहा है. देश के ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां नहरों के उचित रखरखाव नहीं होने के कारण सूख चुके हैं और उससे किसानों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. जम्मू संभाग के सीमावर्ती जिला पुंछ स्थित झूलास गांव भी इसका एक उदाहरण है. पुंछ मुख्यालय से लगभग 9 किमी की दूरी पर बसे इस गांव की आबादी लगभग पांच हज़ार से अधिक है. जहां अधिकतर लोग खेती किसानी पर निर्भर हैं. यहां की सबसे बड़ी समस्या गर्मियों के दौरान पानी की कमी के कारण खेतों का सूख जाना है. हालांकि इन किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए विभाग ने करीब से बहने वाली पुलस्त नदी से नहर को जोड़ा है, परंतु जो नहर इस ज़मीन तक पानी पहुंचाती है, वह जगह जगह से टूट चुकी है. जिसके पानी नहर में नहीं टिक पाता है जो किसानों के लिए समस्या का कारण बनी हुई है. 

इस संबंध में झूलास गांव के चौकीदार मुंशी राम का कहना है कि यह ज़मीन जिस में पानी की कमी के कारण धान जैसी अहम फसल नहीं हो पाती है, वह दस से पंद्रह हज़ार कनाल है, जो डरादूलियां से सलोतरी गांव तक फैली हुई है. इन खेतों में नहर के माध्यम से ही सिंचाई संभव थी. जिससे किसान धान और अन्य फसलें उगा पाते थे. लेकिन पिछले 8 सालों से नहर की मरम्मत नहीं होने के कारण इसमें पानी नहीं आ रहा है, जिससे किसानों ने धान उगाना बंद कर दिया है. वहीं कुछ किसानों ने पूरी तरह से खेती बंद ही कर दी है. उन्होंने बताया कि ज़मीन खाली देख कुछ लोगों ने खेतों पर अवैध कब्ज़ा करके घर बनाना शुरू कर दिया है. जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा चलाए गए 'बैक टू विलेज' प्रोग्राम के लिए आए अधिकारियों के समक्ष भी इस समस्या को रखा गया, लेकिन अभी तक इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है.

वहीं गांव के एक किसान दीन मुहम्मद का कहना है कि जब नहर से पानी आता था तो किसान धान की बुवाई किया करते थे, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होती थी, लेकिन अब पानी की कमी के बाद मक्का जैसी सूखी फसलें बोई जाती हैं, जिसमें बहुत अधिक लाभ नहीं मिलता है. एक अन्य किसान रोशन लाल के अनुसार नहर से न केवल फसलों की अच्छी सिंचाई हो जाती थी बल्कि गर्मी के दिनों में पशुओं के लिए भी पर्याप्त पानी उपलब्ध हो जाता था. लेकिन नहर के रखरखाव के लिए ज़िम्मेदार ठेकेदार द्वारा इसकी उचित देखभाल नहीं करने से इसमें जगह जगह दरारें आ चुकी हैं, जिससे पानी ठहर नहीं पाता है. इसके अलावा जागरूकता की कमी के कारण स्थानीय नागरिकों द्वारा इसमें कूड़ा फेंकने से भी यह लगभग ब्लॉक हो चुका है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की उदासीनता का लाभ ठेकेदार उठा रहे हैं और इस पर खर्च किये जाने वाले पैसे का उचित इस्तेमाल नहीं किया गया. उन्होंने बताया कि इस समस्या के सिलसिले में स्थानीय किसान कई बार उपायुक्त से मिल कर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है.

स्थानीय नागरिक केतन बाली के अनुसार यह नहर काफी पुरानी है. जिससे किसानों को धान की फसल के लिए सिंचाई में फायदा हुआ करता था. लेकिन पिछले कई सालों से इसकी मरम्मत नहीं होने के कारण यह लगभग जर्जर हो चुका है. कई जगहों से यह पूरी तरह से टूट चुका है. बिना पुनरुद्धार के इसमें पानी को छोड़ना घाटे का सौदा होगा. सिंचाई के लिए पानी की कमी के कारण किसानों ने जब फसलें उगाना छोड़ दिया है तो खाली पड़े खेतों पर लोगों ने अवैध रूप से घर बनाना शुरू कर दिया है. जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है. उन्होंने बताया कि नहर के बंद होने से करीब ढ़ाई हज़ार परिवार प्रभावित हो रहे हैं. 

गांव के सरपंच परसा राम भी इस नहर को किसानों के साथ साथ ग्रामीण जनजीवन के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं. उन्होंने बताया कि इस नहर से जहां किसान खेतों की सिंचाई किया करते थे, वहीं ग्रामीण भी अपनी दैनिक दिनचर्या पूरी करने के लिए इसी नहर के पानी पर निर्भर रहते थे. नहर के कारण गर्मी के दिनों में पशुओं के लिए पानी आसानी से उपलब्ध हो जाता था. लेकिन पिछले आठ सालों से नहर में पानी नहीं होने के कारण किसान और स्थानीय ग्रामीण सभी परेशान हैं. उन्होंने बताया कि इस नहर की लंबाई लगभग एक हज़ार मीटर है. जिससे एक बड़े भूभाग पर बसे किसान और स्थानीय नागरिक अपनी ज़रूरतें पूरी किया करते थे. जो अब पूरी तरह से बंद हो चुकी है. इसका घाटा किसानों को सबसे अधिक हो रहा है. उन्हें अब खेतों में सिंचाई के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ रही है, जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए महंगा साबित हो रहा है. यही कारण है कि कई किसान अब धान की फसल उगाना बंद कर चुके हैं. जो उनकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हुआ करती थी. 

बहरहाल, विभाग इस नहर के पुनरुद्धार पर तक़रीबन चार करोड़ रूपए खर्च करने का प्लान बना रहा है. हालांकि अभी तक इसकी मंज़ूरी नहीं मिली है. लेकिन अधिकारी बार बार जल्द हल निकालने का आश्वासन दे रहे हैं. बहरहाल अब देखना यह है कि विभाग कब इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए नहर की मरम्मत का काम शुरू करवाता है? वैसे भी बारिश का मौसम अपने चरम पर है, खेत खलियानों को भरपूर पानी उपलब्ध हो चुका है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार भी मरम्मत की योजना कागज़ों तक सीमित रहेगी या धरातल पर बदलाव नज़र आएगा? क्या झूलास गांव के किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होगा या फिर पिछले आठ सालों की तरह इस बार भी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जायेगा? (चरखा फीचर)