बर्ड विलेज के रूप में जाने जाने वाला उदयपुर जिले के मेनार को राजस्थान की नई आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है। इससे मेवाड़ के ग्रामीण क्षेत्र को रामसर स्थल का दर्जा मिलने का मार्ग प्रशस्त होगा। गाँव की दो झीलें ब्रह्मा और धंध में हर साल सर्दियों के मौसम में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है। इसी वजह से गांव का नाम बर्ड विलेज पड़ा।
राज्य सरकार के वन विभाग द्वारा मेनार को आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है, जो तलछट और पोषक तत्वों के भंडारण में इसकी भूमिका देखेगी और स्थानीय अधिकारियों को ब्रह्मा और धंध झीलों को संरक्षित रखने में सक्षम बनाएगी। इसके साथ ही जलीय पौधों की वनस्पति बढ़ाने और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए दोनो झीलों को मजबूत किया जाएगा।
1971 के अंतरराष्ट्रीय रामसर सम्मेलन के तहत राजस्थान में रामसर स्थलों के रूप में दो आर्द्रभूमियों को मान्यता मिली हुई हैं जिसमेँ भरतपुर जिले का केवलादेव घाना और जयपुर में सांभर साल्ट लेक शामिल है । ऐसे में क्षेत्र के पर्यावरण प्रेमियों को मेनार को भी रामसर स्थल के रूप में घोषित होने की काफी उम्मीदें हैं।
उदयपुर से लगभग 45 किमी दूर मेनार में ग्रामीणों ने पिछले चार वर्षों के दौरान पक्षियों के लिए एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया है, जिसमें गश्त, घायल पक्षियों की देख- रेख और अवैध शिकार के किसी भी प्रयास की पुलिसरिपोर्ट करने जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। वही मेनार के सरपंच प्रमोद कुमार ढोली का कहना है कि पक्षी मित्र (पक्षियों के मित्र) के रूप में जाने-जानेवाले स्वयंसेवको ने झीलों को पक्षियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल के रूप में विकसित किया है।
सर्दियों में इन दोनों झीलों में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियां निवास करती हैं। इनमें ग्रेटर फ्लेमिंगो, व्हाइट-टेल्ड लैपविंग, पेलिकन, मार्श हैरियर, बार हेडेड गूज, कॉमन टील, ग्रीनशैंक, पिंटेल, वैग्टेल, ग्रीन सैंडपाइपर और रेड-वॉटल्ड लैपविंग शामिल हैं। वही मध्य एशिया, यूरोप और मंगोलिया से प्रवासी पक्षियों के आने के बाद ही यहॉ बड़ी तादाद में पक्षी प्रेमी और पर्यटक इन्हें देखने आते हैं।
सरपंच प्रमोद कुमार ढोली आगे कहते है कि जलकुंभी से छुटकारा पाने के लिए ग्रामीणों ने झीलों के पानी का उपयोग करना बंद कर दिया है और जलकुंभी से छुटकारा पाने के लिए नियमित रूप से निराई-गुड़ाई ( फसल के पौधों के साथ घास-फूस के आलावा विभिन्न प्रकार के पौधे उगना और उनको खेतों से हटाना) शुरू कर दी है, इसके आलावा पंचायत की और से जलाशयों में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है. “क्योंकि गर्मियों में जब जल स्तर गिरता है, तो हम मछलियों और पक्षियों को बचाने के लिए झीलों को टैंकरो से पानी से भर देते हैं। वही अब पक्षी मित्रों द्वारा इन जलाशयों के आस-पास जगहों में भी चारागाहों को विकसित करना शुरू कर दिया है।
हाल ही में विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर मेनार का दौरा करने वाली वल्लभनगर की विधायक प्रीति शक्तावत ने कहा कि गांव में झीलों को वन विभाग के अधिकारियों की देखरेख में विकसित किया जाएगा साथ ही झीलों से गुजरने वाली हाईटेंशन बिजली लाइन और सीवर लाइन को भी शीघ्र ही स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
जिला प्रशासन ने झीलों के व्यवस्थित विकास के लिए एक प्रबंधन योजना भी तैयार करने के साथ मेनार को जल्द से जल्द एक आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित करने के लिए एक कार्य योजना चलाई जा रही है। क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र का बचाव करने वाली ताजे पानी की झीलों को आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 के तहत संरक्षित किया जाएगा।
मेवाड़ के तत्कालीन शासकों के एक समृद्ध इतिहास के लिए विख्यात मेनार, अब ग्रामीणों की संरक्षण पहल के कारण राज्य भी पक्षी देखने वालों के रडार पर आ गया है। स्थानीय स्वयंसेवक उमेश मेनारिया ने कहा कि झीलों का ये वातावरण पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन करने और उनके प्रवास मार्गों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के लिए एक बड़ा आकर्षण केंद्र बन रहा है ।