प्रकृति एक रस नहीं। इसमें भाँति-भाँति की प्रजातियाँ हैं। पृथ्वी का सृजन ही विविधता से भरा हुआ है। यही जैव विविधता जीवन का आधार है। 22 मई को अन्तरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाएगा। यानी धरती पर पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की प्रजातियों के संरक्षण के संकल्प का दिन। लेकिन वर्तमान हालात भयावह हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 2011 से 2020 तक को जैव विविधता का दशक घोषित किया है। कन्वेंशन ऑफ बायो डायवर्सिटी की अन्तिम दो वर्षीय बैठक 2020 में होगी। अभी हमारे पास कुछ समय है, चेतने का। विकास और औद्योगीकरण के बीच जैव विविधता की सार-सम्भाल का…
संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो होगा संकट
जैव विविधता अथवा जैविक विविधता जीवों के बीच पाई जाने वाली विभिन्नता है जोकि प्रजातियों के बीच और उनकी पारिस्थितिक तन्त्रों की विविधता को भी समाहित करती है। जैव-विविधता का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैव-विविधता के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन असम्भव है। जैव-विविधता भोजन, कपड़ा, लकड़ी, ईंधन तथा चारा आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। पृथ्वी का जैविक धन जैव-विविधता लगभग 400 करोड़ वर्षों के विकास की देन है। इसमें निरन्तर क्षति ने मनुष्य के अस्तित्व के लिये गम्भीर खतरा पैदा किया है। विकासशील देशों में जैव-विविधता क्षरण चिन्ता का विषय है। एशिया, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका के देश जैव-विविधता सम्पन्न हैं जहाँ तमाम प्रकार के पौधों तथा जानवरों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। विडम्बना यह है कि अशिक्षा, गरीबी, वैज्ञानिक विकास का अभाव, जनसंख्या विस्फोट आदि कारणों से इन देशों में जैव-विविधता संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विश्व में पौधों की लगभग 60,000 प्रजातियाँ एवं जन्तुओं की 2,000 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। जैव विविधता के नष्ट होने के प्रमुख कारणों में मानव के द्वारा संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जन्तुओं का शिकार, वनों का विनाश, चिड़ियाघर, शोध के लिये विभिन्न प्रजातियों का उपयोग, विभिन्न बीमारियाँ और बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण आदि शामिल है।
विश्व में अनूठी है भारत की भूमि
दुनिया भर में जैव विविधता पाई जाती है लेकिन भारत में ये सबसे अनूठी है। यहाँ के पूर्वी और पश्चिमी घाट की जैव विविधता को दुनिया भर में एक मिसाल के रूप में देखा जाता है। जैव विविधता संरक्षण के प्रयास भी किए जा रहे हैं लेकिन प्रत्येक वर्ष जीवों और पौधों की कई प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं…
भारत की वैश्विक स्थिति
भारत जैव विविधता से सम्पन्न देश है। दुनिया की कुल भूमि में से भारत के पास 2.4 फीसदी ही है लेकिन जैव विविधता में भारत की हिस्सेदारी 8 फीसदी है। भारत की गिनती दुनिया के 12 ‘विराट जैव विविधता’ वाले देशों में होती है। 45 हजार वनस्पतियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो विश्व की वनस्पतियों का 7 फीसदी हैं। जन्तुओं की प्रजातियों में से 6.5 फीसदी भारत में पाई जाती हैं।
जैव विविधता का संरक्षण
भारत संरक्षण के लिये प्रयासरत है। देश में 89 राष्ट्रीय पार्क हैं जो 41 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले हुए हैं। 500 से अधिक अभयारण्य हैं और 15 जैवमंडल रिजर्व हैं। यूनेस्को ने सुन्दर वन, मन्नार की खाड़ी, अगस्थमलय जैवमंडल रिजर्व को विश्व जैव मंडल रिजर्व का दर्जा दिया। विश्व के 18 जैव विविधता के स्थलों में से भारत के दो मुख्यस्थल पूर्वी हिमालय व पश्चिमी घाट शामिल हैं।
पश्चिमी घाट में अद्भुत प्रजातियाँ
पश्चिमी घाट पर्वतीय श्रृंखला क्षेत्र में लगभग 1,60,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल आता है यह गुजरात से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। पश्चिमी घाट, दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं को रोकते हैं इसलिये इन पहाड़ियों की पश्चिमी ढलानों पर हर साल भारी बारिश होती है। झाड़ीदार जंगल, पतझड़ी वर्षावन, पर्वतीय जंगल सहित यह स्थल अविश्वसनीय प्रजातियों को संजोए हुए है।
पूर्वी घाट में फैला है विविध सौन्दर्य
पूर्वी घाट में हिमालय उष्णकटिबन्धीय से गंगा-ब्रह्मपुत्र निम्नभूमि का 23,73,000 वर्ग किमी क्षेत्र घेरता है। इस हॉटस्पॉट में पारिस्थितिकी तन्त्रों की विविधताएँ देखने को मिलती हैं। इनमें मिश्रित आर्द्र सदाबहार, शुष्क सदाबहार, पतझड़ी एवं पर्वतीय वन सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में निम्नभूमि बाढ़ से तैयार दलदल, मैंग्रोव और मौसमी घास के मैदान भी पाए जाते हैं।
बायोस्फीयर व जैव विविधता भंडार
भारत सरकार ने देशभर में 18 बायोस्फीयर भंडार स्थापित किए हैं। ये बायोस्फीयर भंडार भौगोलिक रूप से जीव जन्तुओं के प्राकृतिक भू-भाग की रक्षा करते हैं और अक्सर आर्थिक उपयोगों के लिये स्थापित बफर जोनों के साथ एक या ज्यादा राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य को संरक्षित रखने का काम करते हैं।
कई प्रजातियाँ हुई हमारी धरती से लुप्त…
विश्व में तेजी से हो रहे औद्योगीकरण का प्रभाव जैव-विविधता पर भी पड़ रहा है। इससे पृथ्वी पर मौजूद कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं तो कई विलुप्त हो चुकी हैं। इन प्रजातियों की पर्यावरण सन्तुलन बनाए रखने में मुख्य भूमिका होती है। उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिये कई शहर बसाए गए, बड़े पैमाने पर खनिज पदार्थों का दोहन किया गया तो कई बड़े-बड़े बाँध बनाए गए। ऐसी सभी गतिविधियों के लिये विश्व में बड़े पैमाने पर जंगल काटे गये तो बहुत सारी खनन परियोजनाओं के लिये पहाड़ों को बर्बाद किया गया। इसका प्रभाव वहाँ की जैव-विविधता पर पड़ा। वहाँ की बहुतायत प्रजातियाँ नष्ट हो गई। इन प्रजातियों के नष्ट होने का असर इससे जुड़ी हुई दूसरी प्रजातियों पर भी पड़ा। कई स्थानों पर बहुत सी प्रजातियाँ औद्योगिक प्रदूषण का शिकार बनी। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर 194 देशों ने लुप्तप्राय या अन्य जोखिम वाली प्रजातियों को बचाने के लिये कार्य योजना तैयार करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते में विभिन्न प्रजातियों को लुप्त, गम्भीर संकटग्रस्त और लुप्तप्राय की श्रेणी में बाँटा गया है।
क्या और क्यों जैव-विविधता
सर्वप्रथम जैव-विविधता शब्द का प्रयोग आज से लगभग 32 वर्ष पूर्व वाल्टर जी. रासन ने 1985 में किया था। जैव-विविधता के तीन पायदान होते हैं।
आनुवंशिक विविधता
प्रजातियों में पाई जाने वाली आनुवंशिक विभिन्नता को आनुवंशिक विविधता के नाम से जाना जाता है। यह विविधता जीवों के आवासों में विभिन्न प्रकार के अनुकूलन का परिणाम होती है।
प्रजाति विविधता
प्रजातियों में पाई जाने वाली विभिन्नता को प्रजातीय विविधता के नाम से जाना जाता है। किसी भी विशेष समुदाय अथवा पारिस्थितिक तंत्र के उचित कार्य के लिये प्रजातीय विविधता का होना अनिवार्य होता है। इसके अभाव में पारिस्थितिक तंत्र ठीक ढंग के उस कार्य को नहीं कर पाता है।
पारिस्थितिक तंत्र
पारिस्थितिक तंत्र विविधता पृथ्वी पर पाई जाने वाली उस विभिन्नता को कहते हैं जिसमें विभिन्न प्रजातियों का निवास होता है। जबकि किसी भी क्षेत्र में पारिस्थितिक विविधता विभिन्न जैव-भौगोलिक क्षेत्रों जैसे झील, मरुस्थल, ज्वारनदमुख आदि में प्रतिबिम्बित होती है।
विशेषज्ञों की राय: पर्यावरण के सभी पक्षों को ध्यान में रखकर खोजने होंगे विकास के तरीके
रेगिस्तान बंजर नहीं, ये जीवन का आधार है
“सोलर और पवन ऊर्जा संयंत्रों से रेगिस्तान की भौगोलिक संरचना को बदलना पर्यावरण की दृष्टि से घातक साबित हो रहा है।” - नेहा सिन्हा, पर्यावरणविद, बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस)
हम जब भी राजस्थान के बारे में सोचते हैं तो हमारी आँखों के सामने चटख रंगों वाले कपड़े पहने लोग, ग्रामीण तरीके के आभूषण, रेते के धोरे और ऊँटों की तस्वीर उभरती है। लेकिन रेगिस्तान अपने में कई और राज भी समेटे हुए है। ये राज पूँछ, पंजों, पंखों, पत्तियों और पौधों में छिपे हुए हैं। यही रेगिस्तान की जैव विविधता है। यहाँ पाई जाती है विशाल चिड़िया गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) और लम्बे पैरों वाला चिंकारा। ये दोनों ही जीव रेगिस्तान के भीषण हालातों में भी खुद को जिन्दा रखने में माहिर हैं। साथ ही शिकार में माहिर रेगिस्तानी लोमड़ी (डेजर्ट फॉक्स) रेगिस्तान में पनपने वाले कई पेड़-पौधों में नुकीले काँटे और सुन्दर फूलों का एक गजब विरोधाभास भी है। इनमें से कई पौधों में औषधीय गुण भी हैं। इनमें शामिल है माउंट आबू में पाया जाने वाला सफेद फूलों वाला रोसा इन्वोल्यूकटरा। इसके बावजूद थार के रेगिस्तान में जैव-विविधता की पहेली को तमाम प्रगति के बावजूद पर्यावरणविद व वैज्ञानिक सुलझा नहीं पाए हैं। लेकिन इसका ये अभिप्राय नहीं कि रेगिस्तान की जैव विविधता के कोई मायने नहीं हैं। यदि हम दूसरे शब्दों में कहें तो थार के रेगिस्तान के समान दुनिया भर में और कहीं इस प्रकार की जैव विविधता नहीं पाई जाती है।
मात्र सरकारी प्रयासों से नहीं बचेगी जैव विविधता
“जैव विविधता के बचने से ही इंसान बच पाएगा क्योंकि पचास फीसदी बीमारियों का इलाज जैव विविधता से ही होता है।” - चंद्रभूषण, उपमहानिदेशक, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)
भारत में जैव विविधता को बचाने या संरक्षण के मिले-जुले प्रयास हुए हैं। यदि हम अमेरिका या यूरोप के देशों से तुलना करें तो हमारे प्रयास उनसे बेहतर हैं। यूरोप में तो जैव-विविधता पहले ही कम थी और अमेरिका में 200 साल में जैव-विविधता को खत्म कर दिया गया। अफ्रीका के कई देशों में जैव-विविधता के संरक्षण के लिये अच्छा काम हुआ है। वहाँ कई देशों ने वाइल्ड लाइफ तो कई ने अपनी स्थानीय जैव-विविधता को पर्यटन के रूप में विकसित कर लिया है। इससे उन देशों में जैव-विविधता का संरक्षण तो हुआ ही साथ ही पर्यटन से आय भी होने लगी। जाहिर है कि जैव-विविधता बचेगी तब ही इंसान बच पाएँगे। इंसान को होने वाली बीमारियों में से पचास फीसदी का इलाज जैव-विविधता से होता है। जैव-विविधता पर कई उद्योग निर्भर हैं। खाद्य उद्योग, कॉस्मेटिक, ड्रग और लकड़ी उद्योग पूर्ण रूप से जैव विविधता पर ही निर्भर हैं। टेक्सटाइल उद्योग का भी कुछ हिस्सा जैव-विविधता पर निर्भर है। जैव-विविधता नष्ट होती है तो इस पर निर्भर ये सभी उद्योग भी नष्ट हो जाएँगे। इसलिये जैव-विविधता अर्थव्यवस्था के लिये भी जरूरी है। हम जिस विकास के रास्ते पर चल रहे हैं या जो विकास कर रहे हैं, उसमें बड़े विरोधाभास हैं।
2% | भू-भाग है भारत का विश्व में |
08% | वैश्विक जैव-विविधता भारत में |
16 | प्रकार के वन पाए जाते हैं भारत में |
7,516 | किलोमीटर लम्बी भारत की तट रेखा |
18 | जैव बहुल देशों में भारत शामिल |
परिन्दों पर संकट | |
2014 | |
173 | पक्षी प्रजाति संकटग्रस्त |
2015 | |
180 | पक्षी प्रजाति संकटग्रस्त |
02 | जैव विविधता हॉटस्पॉट भारत में, पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट |
11% | पौध जैव विविधता भारत में |
15 हजार | फूलों की प्रजाति भारत में पाई जाती है |
2,546 | प्रजाति की मछलियाँ हैं भारत में |
423 | प्रजातियाँ हैं भारत में स्तनपायियों की |
198 | प्रकार के उभयचर हैं देश में |
1,331 | किस्म के पक्षियों का घर है भारत में |
408 | प्रजातियों के सरीसृप हैं देश में |
187 | प्रजाति के सरीसृप केवल भारत में |
33% | समस्त जैव विविधता जीव केवल भारत में |
55 | प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं भारत में |
50,000 | किस्में हैं चावल की भारत में |
110 | प्रजाति के उभयचर भारत में ही मिलते हैं |
44 | जैव प्रजातियाँ केवल भारत में पाई जाती हैं, इनमें नीलगिरी थाहर, जंगली गधा और लॉयल टेल मैकॉक शामिल |
विलुप्ति का खतरा | |
1/3 | प्रजातियाँ लुप्त हो जाएँगी 2050 तक |
150 | प्रजातियाँ जीवों व पौधों की रोज विलुप्त हो रही हैं |
2.4 | लाख किस्म के पौधे हैं विश्व में |
10.5 | प्रजातियों के प्राणी हैं दुनिया में |
47,677 | प्रजातियों में से 15,890 पर विलुप्ति का खतरा |