Source
राजस्थान पत्रिका, 11 जनवरी, 2018
भारतीय उपमहाद्वीप में हड़प्पा से लेकर इराक के मेसोपोटामिया तक प्राचीन सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही फली-फूलीं। जैसे-जैसे सभ्यताएँ विकसित होती गई, वैसे-वैसे इंसान ने जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर हक जताना शुरू कर दिया। नदियों के चलते विवाद भी हुए। कावेरी नदी विवाद भी इन्हीं में से एक है। सुप्रीम कोर्ट दशकों पुराने इस विवाद पर एक महीने में फैसला सुनाने वाला है। ऐसे विवादों पर एक नजर…
पड़ोसियों से हमारे क्या विवाद हैं
भारत के अपने पड़ोसियों पाक, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन के साथ भी नदियों की साझी विरासत है। अक्सर इन देशों के साथ उसके विवाद भी होते रहे हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बाद तीस्ता भारत व बांग्लादेश से होकर बहने वाली चौथी सबसे बड़ी नदी है। इस नदी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद है। नेपाल से महाकाली नदी तो चीन के साथ ब्रह्मपुत्र, पाक से सिंधु और किशनगंगा को लेकर विवाद सुर्खियों में रहते हैं।
क्या नदी जोड़ों परियोजना इन विवादों का है हल?
वैसे तो नदी जोड़ो परियोजना को लेकर सरकार को उम्मीद है कि इससे बाढ़ या बारिश के वक्त बेकार हो जाने वाले पानी को सूखाग्रस्त क्षेत्रों की ओर मोड़ा जा सकेगा। जबकि पर्यावरणविदों का कहना है कि ऐसा करने से भूकम्प और बाढ़ आ सकते हैं। जल्द ही मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश में बहने वाली केन और बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने का भी काम शुरू होने वाला है।
करीब 10 हजार करोड़ की लागत से बनने वाले केन-बेतवा लिंक में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्से शामिल हैं। इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश से केन नदी के अतिरिक्त पानी को 231 किमी लम्बी एक नहर के जरिये उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी तक लाया जायेगा। इससे अक्सर सूखे से जूझने वाले बुन्देलखंड की एक लाख 27 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकेगी। परियोजना के तहत पूरे भारत में कुल 30 लिंक बनने हैं। 5.5 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
क्या वैश्विक विवाद भी हैं?
सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी-सतलज, किशनगंगा भारत का पाक के साथ विवाद तो है ही, साथ में अफ्रीका में नील नदी को लेकर मिस्र, इथियोपिया और सूडान के बीच विवाद है। जॉर्डन नदी को लेकर इजरायल, जॉर्डन, लेबनान और फलस्तीन के बीच और दजला-फरात नदियों को लेकर तुर्की, इराक व सीरिया में विवाद है। वख्श नदी पर ताजिकिस्तान-उजबेकिस्तान में व मेकांग नदी को लेकर लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम में विवाद है।
एक्सपर्ट टॉक
स्थानीय जलीय व्यवस्था हो दुरुस्त
दरअसल नदियों को लेकर विवाद तभी शुरू होते हैं, जब बड़े बाँध बनाने की कोशिश होती है, चाहे वह कावेरी हो या फिर नर्मदा। नदियों के जल का दोहन सिर्फ बाँध बनाकर ही नहीं किया जा सकता है। बल्कि स्थानीय जलीय व्यवस्था को दुरुस्त किया जाना चाहिए। भूजल प्रणाली पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि भूजल फिर से रिचार्ज हो सकें। जलीय प्रदूषण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। पानी को रिसाइकिल किया जाना चाहिए। सिर्फ बड़े बाँध बनाना कोई समाधान नहीं है। - हिमांशु ठक्कर, कोऑर्डिनेटर, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स एंड पीपुल संगठन।
नदियों के पानी पर जंग क्यों?
ये प्रमुख विवाद
1. चम्बल और नदी विवाद
मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच है यह विवाद। चम्बल पर बाँधों पानी कोटा बैराज में आता है। जिसमें दोनों का बराबर का हिस्सा है। दोनों एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते हैं।
2. कृष्णा नदी विवाद
कृष्णा नदी का पानी आन्ध्र प्रदेश एवं कर्नाटक के बीच कृष्णा नदी जल विवाद का एक कारण है। कई निर्णयों के बाद भी कृष्णा नदी विवाद का अन्त नहीं हुआ।
3. नर्मदा नदी
मध्य प्रदेश में अमरकंटक से निकली नर्मदा का पानी गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान को मिलता है। आरोप लगता रहा है कि मध्य प्रदेश के हिस्से का पानी बाकियों को मिल रहा है।
4. सोन नदी
यह विवाद बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच है। 1973 में ही सोन व रिहंद नदियों के जल विवाद के हल के लिये बाणसागर समझौता हुआ था, पर यह नाकाम रहा।
5. यमुना जल
हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश जुड़े हुए हैं। सबसे पहले यमुना जल समझौता 1954 में मात्र दो राज्यों हरियाणा-यूपी में हुआ था।
6. गोदावरी नदी
गोदावरी के लिये महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा व आन्ध्र प्रदेश में विवाद है। 1969 में कमेटी गठित हुई, पर सब बेकार।
7. क्या है कावेरी जल विवाद?
कावेरी नदी के बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किमी का इलाका शामिल है। कर्नाटक-तमिलनाडु, दोनों का कहना है कि उन्हें सिंचाई के लिये पानी की जरूरत है और इसे लेकर दशकों के उनके बीच लड़ाई जारी है। मुख्य विवाद इन्हीं दोनों के बीच है, मगर कावेरी बेसिन में केरल और पुदुच्चेरी के कुछ छोटे-छोटे से इलाके शामिल हैं तो वे भी इस विवाद में कूद गये हैं।