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अमूमन देखा जाता है कि कहीं गन्दगी पड़ी हो, तो लोग प्रशासन व स्थानीय लोगों को कोसते हुए मन-ही-मन यह बुदबुदाते हुए निकल जाते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता। लेकिन, बदलाव तब होता है, जब लोग यह सोचते हैं कि क्यों न इस गन्दगी को साफ कर लोगों को प्रेरित किया जाये।
34 वर्षीय तेमसुतुला इमसोंग उन विरले लोगों में है, जिन्होंने गन्दगी देखकर प्रशासन और सरकार को कोसने की जगह सफाई का जिम्मा अपने हाथों में ले लिया। इस काम में तेमसुतुला को दर्शिका शाह भी सहयोग कर रही हैं।
पूर्वोत्तर की मूल निवासी मध्यम कदकाठी की तेमसुतुला के इरादे बड़े हैं और वह गुपचुप तरीके से वाराणसी के गंगा घाटों की सफाई में लगी हुई हैं, निःस्वार्थ भाव से। उनके काम के बारे में लोगों को तब पता चला, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक ट्वीट में उनका नाम लेकर उनके काम की सराहना की। और-तो-और उन्होंने टोरंटो में एक कार्यक्रम में भी तेमसुतुला का जिक्र करते हुए उनके काम की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तेमसुतुला मुख्य रूप से इसाई हैं, लेकिन उनका कहना है कि अच्छे कर्मों में ही ईश्वर का वास होता है। कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने साकार सेवा समिति नामक स्वयंसेवी संगठन की स्थापना की। शुरुआती दिनों में वह दिल्ली से ही काम करती थीं, लेकिन बाद में वह वाराणसी चली आईं। वर्ष 2013 में वाराणसी शहर से दूर स्थित शूल टंकेश्वर घाट की सफाई का काम शुरू किया और इस तरह एक मिशन का आगाज हो गया। इसके बाद उन्होंने प्रभु घाट की सफाई का जिम्मा लिया और उसे भी चमका दिया। इस काम में कई स्वयंसेवियों ने उन्हें सहयोग किया। वह कहती हैं, ‘यह घाट इतना गन्दा था कि सफाई करने के बाद भी सड़ांध आ रही थी।’
काम करते हुए उन्हें लगा कि क्यों न कामों को सोशल मीडिया पर प्रचारित किया जाये ताकि लोग प्रेरित हों और ऐसा ही किया। फिर क्या था, बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुँच गई और उन्होंने ट्वीट कर उनके काम की सराहना की।
तेमसुतुला मूल रूप से नागालैंड के गुमनाम गाँव मोकोकचुंग की रहने वाली हैं। उनका जन्म 23 फरवरी 1983 को हुआ। उनके पिता शिक्षक व उनकी माँ घर सम्भालती हैं। समाजसेवा और सफाई का काम वह छात्र जीवन से ही करती आ रही हैं। स्कूल में रहते हुए वह अपने संगी-साथियों के साथ मिलकर महीने में दो बार स्कूल की सफाई किया करती थीं। चूँकि स्कूल कच्चे थे, इसलिये गोबर से स्कूल को लीपा जाता था और इस काम में उनका मन खूब रमता था।
वह कहती हैं, ‘सफाई हमारे गाँव की संस्कृति का हिस्सा है।’ वह आगे कहती हैं, ‘उन दिनों नागालैंड बेहद अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। घुसपैठ चरम पर था। उस वक्त मैं 9वीं या 10वीं में रही होऊँगी। क्लास करते हुए गोलियों की आवाजें सुनती थीं।’
स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद वह शिलांग चली गईं और शिलांग से दिल्ली का रुख किया।
दिल्ली में मानवाधिकार पर एमए करने के बाद उन्होंने वाराणसी के निकट स्थित एक गाँव कटारिया में साकार सेवा समिति नामक संगठन की स्थापना की। हालांकि इस संगठन की स्थापना गाँवों से लोगों के शहरों की तरफ पलायन रोकने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन, शनैः शनैः वह वाराणसी के बदहाल घाटों की सफाई में लग गईं।
दरअसल, वाराणसी के घाट हैं ही ऐसे कि किसी को भी अपनी ओर खींच लेते हैं। दुनिया की हलचल से दूर अगर सुकून की तलाश हो, तो वाराणसी के घाट सबसे उपयुक्त जगह हैं। तेमसुतुला कहती हैं, ‘वाराणसी के घाट ऐसी जगह हैं, जहाँ बैठकर सुकून मिलता है, क्योंकि वाराणसी शहर सघन और बेतरतीब है। मैं अक्सर शहर की आपाधापी से उकता कर गंगा घाटों पर चली जाया करती थी, लेकिन घाटों पर पसरी गन्दगी मुझे बेजार कर देती थी। मैं धीरे-धीरे समझने लगी थी कि आखिर क्यों लोग घाटों पर शौच करते हैं।’
ये सोचते हुए उन्हें खयाल आया कि क्यों न घाटों की सफाई शुरू की जाये। इस लम्बे और पथरीले सफर का पहला पड़ाव बना शूल टंकेश्वर घाट।
तेमसुतुला के दोस्तों ने आसपास के गाँवों के स्थानीय लोगों को बुलाया और उनके साथ मिलकर घाट की सफाई की। इसके दो वर्ष बाद यानी मार्च 2015 में प्रभु घाट की साफ-सफाई की। प्रभु घाट के सम्बन्ध में तेमसुतुला का कहना है कि एक दिन वह और दर्शिका शाह उस घाट से गुजर रही थीं कि मानव मल की दुर्गन्ध से उनकी नाक फटने लगी। गन्दगी इतनी थी कि वहाँ एक पल भी ठहरना नामुमकिन था। वह कहती हैं, ‘प्रभु घाट पर इतना अधिक मानव मल था कि एकबारगी तो लगा इसकी सफाई असम्भव है लेकिन हम दृढ़प्रतिज्ञ थे, सो काम शुरू किया और सबसे पहले वहाँ ढेर सारा ब्लीचिंग पाउडर छिड़का। ब्लीचिंग पाउडर छिड़कने के बाद भी बहुत सड़ांध आ रही थी, लेकिन किसी तरह घाट की सफाई की गई। आज सोचती हूँ, तो लगता है कि पता नहीं कैसे हमने उक्त घाट की सफाई कर दी।’ वह आगे कहती हैं, ‘हमने घाट को चकाचक तो कर दिया था, लेकिन दूसरे ही दिन देखा कि लोगों ने वहाँ शौच कर दिया था। हमने अपने साथियों को वहाँ तैनात करवा दिया और उनसे शौच करने वाले लोगों पर पैनी नजर रखने को कहा। एक दिन एक व्यक्ति शौच करते हुए पकड़ा गया, तो उल्टे उस व्यक्ति ने हमें कहा कि यहाँ वे सालों से शौच कर रहे हैं, वो उसे रोकने वाली कौन होती हैं। कई दूसरे लोगों ने कहा कि उनके पास पैसे नहीं हैं कि वे सुलभ शौचालय में जाएँ। बहरहाल, धीरे-धीरे लोगों का नजरिया भी बदला।’ आश्चर्य की बात है कि इस काम के लिये उन्हें किसी संगठन या राजनीतिक पार्टियों से फंड की जरूरत नहीं पड़ी, बल्कि उनके सहयोगियों, दोस्तों ने ही आर्थिक सहयोग किया।
तेमसुतुला के काम से प्रभावित होकर जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री ने उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय में मिलने के लिये बुलाया था। वह अनुभव साझा करते हुए कहती हैं, ‘प्रधानमंत्री जी ने हमसे पूछा कि हमारी आगे की योजना क्या है, तो मैंने कहा कि हमने जिन घाटों की सफाई की है, उनकी देखरेख करना चाहते हैं। इस पर वे बोले- बहुत अच्छा।’
फिलहाल, तेमसुतुला ने बबुआ पांडेय घाट और पांडेय घाट को गोद लिया है। प्रभु घाट की देखरेख बैंक ऑफ इण्डिया कर रहा है।
अपनी भावी योजनाओं के बारे में उनका कहना है कि वह घाटों की साफ-सफाई तब तक करती रहेंगी, जब तक लोग घाटों पर गन्दगी फैलाना बन्द नहीं करते। वाराणसी के उपेक्षित घाटों की सफाई कर उन्हें पर्यटन के मानचित्र पर लाना उनका लक्ष्य है।
पर्यावरण और साफ-सफाई को लेकर उनका नजरिया बिल्कुल साफ है। वह कहती हैं, ‘हमें पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित कर काम करना होगा। हमें समाज व पर्यावरण पर कुछ भी थोपना नहीं चाहिए। इस मामले में हमें अभी और आगे जाना होगा। अच्छी बात यह है कि अब लोगों का नजरिया बदल रहा है।’ स्वच्छ भारत मिशन के सम्बन्ध में उनका कहना है कि स्वच्छ भारत मिशन को जन आन्दोलन में तब्दील करना होगा, तभी बदलाव दिख सकता है। जरूरी है कि हम केवल तमाशबीन बनकर नहीं देखते रहें, बल्कि अगर कोई इस तरह का काम कर रहा है, तो हमें उसके पास जाकर पूछना चाहिए क्या हम उनकी कोई मदद कर सकते हैं।