बढ़ते सुखाड़ का घाव अब नासूर बन चुका है। अगले पांच साल बाद हालात बेहद गंभीर होंगे। जरूरत राहत की नहीं, रोग की जड़ पर जाकर उसका नाश करने की है। सिंचाई और उद्योग-पानी के दो सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। इन दोनों से उनकी जरूरत के पानी के इंतजाम की जवाबदेही खुद उनके हाथ में देने की प्राथमिकता पर लाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
सोचिए, जिस कर्नाटक ने अगस्त 2018 में बाढ़ देखी। उसी कर्नाटक को चार महीने बाद यानी जनवरी 2019 में कुल 176 में से 156 तालुके सूखाग्रस्त क्यों घोषित करने पड़े? समझें कि वर्तमान सूखा, कम सुविधा के कारण नहीं, अधिक उपभोग के कारण पैदा हुआ है। यह सूखा, बारिश की कमी से नहीं, कम संचयन, अधिक जल निकासी, अधिक दुरुपयोग से असंतुलन का नतीजा है। यह असुंतलन, पानी की गवर्नेंस की अनदेखी से उपजा है।
हम, भारत के नागरिक भूल गए हैं कि जीवन के लिए जरूरी पानी हासिल होना यदि हमारा संवैधानिक अधिकार है तो इसकी सुरक्षा प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य भी है। अतः सबसे पहले हम केंद्र व राज्य सरकारों की ओर ताकना बंद करें। हम स्मरण करें कि प्रत्येक गांव व नगर में एक तीसरी सरकार भी होती है। अपनी सरकार यानी गांव सरकार व नगर सरकार। क्रमशः 73वें व 74वें संविधान संशोधन के जरिए
ग्राम पंचायतों व नगर निगमों को यह दर्जा प्राप्त है। ग्रामसभा-गांव की सरकार है, पंच उसका मंत्रिमंडल और प्रधान उसका प्रधानमंत्री। इसी संवैधानिक दर्जे के अनुसार, ग्राम पंचायत व नगर निगमों की परिधि में आने वाले सार्वजनिक जल स्रोतों, संसाधनों के प्रबंधन, आबादी को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने की जिम्मेदारी और उपयोग के अधिकार अपनी सरकार यानी ग्राम पंचायत व नगर निगम में जल प्रबंधन संबंधी समिति का प्रावधान है। कृषि जैसे संबंधित विषय भी इसी समिति के अधिकार क्षेत्र में हैं। पंचायती राज विकास योजना के तहत जारी मुक्ति निधि, गांव सरकार को अपने सपने के गांव की पंचवर्षीय योजना बनाने और मंजूर करने की सर्वोपरि अधिकार व वित्त देती है।
केन्द्रीय आंवटन में भी अब तीन स्तर की सरकारों की वित्तीय हकदारी सुनिश्चित कर दी गई है। अब समय आ गया है कि हर गांव, हर नगर अपने पानी का लेखा-जोखा, तदनुसार नियोजन, उपयोग का अनुशासन और क्रियान्वन खुद अपने हाथ में लें। निर्णय और निर्वाहन की दृष्टि से पानी, राज्य का विषय है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पेयजल व्यवस्था व वित्त को सीधे संबंधित ग्राम वार्ड समिति को सौंपने तथा सीमित पदेन सचिव खुद चुनने का अधिकार संबंधी निर्णय नवंबर 2016 में पहले ही ले लिया था। सभी राज्य सरकार को चाहिए कि गांव-नगर सरकारों के जलाधिकार तथा स्थानीय प्रबंधन दायित्वों के निर्वहन मार्ग में मौजूद सभी शासकीय-प्रशासकीय बाधओं को दूर करें।
गांव-नगर की अलग-अलग स्तरीय जल समितियों के लिए बाध्यता आवश्यक हो कि क्षेत्र पंचायत, नगर वार्ड क्षेत्र स्तर पर जल निकासी की एकसमान अधिकतम सीमा तय करें। किसी भी व्यक्ति को उससे नीचे से भूजल निकालने की अनुमति सिर्फ लगातार पांच साल सूखे से उत्पन्न आपात स्थिति में ही हो। पानी से पैसा कमाने वाले पेयजल, शीतल पेय व शराब उद्योगों को तो कभी नहीं। इससे जल संचयन-निकासी का संतुलन भी सधने लगेगा और जलोपयोग का लोकानुशासन भी। भूजल-स्तर उपर उठेगा तो प्रदूषण स्वतः नियंत्रित होने लगेगा। प्रदूषण निवारण की समझ और लोकदायित्व का बोधमार्ग भी इसी से प्रशस्त होगा।