भई भला इससे कौन इंकार कर सकता है कि दरिया सभी को पालती हैं, पोषती हैं। इसीलिए सभी की मां होती हैं। ..और फिर गंगा मैया, तुम तो मांओं की मां हो; जैसे गांधी - लेखकों के लेखक। इंसानी दर्जे संबंधी नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक के बाद, अब तुम कोई नागरिक तो हो नहीं कि हम कहें कि गंगा जी फलां मजहब, जाति या वर्ग की है; गंगा जी का नाम भारत के रजिस्टर में दर्ज नहीं हो सकता। ठीक है, तुम ससुराल होगा बांग्ला देश में; लेकिन तुम मायका तो हिंदुस्तान में ही है।....तो गंगा मैया, राष्ट्रवाद के नाते तुम्हे भी मूल रूप से कहा तो हिंदुस्तान की ही जायेगा न। कोई गवाही मांगे, तो राजा भगीरथ से बड़ा कौन गवाह हो सकता है? राजा भगीरथ, गंगा अवतरण समय बालिग तो थे ही; चक्रवर्ती सम्राट भी थे। राजा भगीरथ ही गये थे पायलट बनकर, तुझे तेरे मायके से ससुराल तक छोड़ने। उनकी गवाही तो राजाओं के सदा सनातन राजा राम भी नहीं नकार सकते थे; आज के टम्परेरी राजाओं की क्या औकात!
रही बात मां होने की...तो भई गंगा मैया, इससे बड़ा दूसरा सुबूत क्या हो सकता है कि चौरासी योनी के जीव तो जीव, कंपनी तक का भरण-पोषण, तुम और तुम्हारी दूसरी दरिया दीदी कर रही हैं। कचरा-सफा कंपनी, शौचालय सामान सप्लाई कंपनी, नल-जल कंपनी, बांध-बिजली कंपनी, माइनिंग-ड्रेजिंग कंपनी, घाट-ठाट कंपनी, जलमार्ग कंपनी, कर्ज दे-मुनाफा ले कंपनी, ठेका दे-पइसा ले कंपनी, यहां तक कि नदी-जन-जागरण कंपनी... सभी तो तुम्हारे बूते पल रही हैं। और सभी गा भी रहीं हैं - ''गंगा से अच्छी मां कहां मिलेगी!''
मैया, आजकल तेरे इसी ममत्व से हासिल करने में तो बिजी हैं तेरा मुलुक। हां, अब ये मत कहना कि हम इतने बिजी हो गए हैं कि हमें तेरा ख्याल नहीं आता। हम पर्व-दर-पर्व आते तो हैं तेरे किनारे; लगाते तो हैं तो जयकारा तेरे नाम का; गाते भी हैं - ''चलो रे मन गंगा-जमुना तीर, गंगाजी को पानी अमृत, निर्मल होत शरीर।...''
...और देख, वैसे तो हम यह मानते नहीं कि जिसका पानी अमृत हो, वह कभी मर भी सकती है; जो गंगा मैया हमें निर्मल करती है, वह मलीन भी हो सकती है; फिर भी हमारे लोग तेरी सेहत के लिए अनशन-तप करते ही रहते हैं। सुन्दरलाल बहुगुणा जी ने किया। संत निगमानंद, नागनाथ और स्वामी सानंद ने तो गंगा तप करते हुए ही देह त्यागी। स्वामी शिवानन्द, गोपालदास, अबोधानन्द के बाद अब साध्वी पद्मावती गंगा तप पर है ही। हांअअ... ठीक है कि साध्वी पद्मावती, तुम्हारी बेटी है। तुम्हारी पीड़ा से दुःखी है। साध्वी उमा जी भी दुखी है। किंतु मां, साध्वी पद्मावती के अनशन का समर्थन या विरोध तो तब की बात है, जब मुलुक फ्री हो। अभी तो मुलुक बिजी है। गंगा भक्त, संगम पर डुबकी लगाने में बिजी हैं। गंगा भक्त परिषद से लेकर गंगा हितैषी एक्ट बनाने की मांग को आगे बढ़ाने वाले अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग गाने में बिजी है। कारपोरेट जगत् , गंगा रिसोर्स डेबिट कार्ड भुनाने में बिजी हैं। जोगीड़ा, इलाहाबाद को पूरी तरह प्रयागराज बनाने में बिजी हैं।
अब यह आरोप न लगाना कि हमारे प्रधान सेवक को फुर्सत नहीं, गंगा की आवाज़ों को सुनने की। मां, सच कहना; क्या जब वह 'नमामि गंगे' कहते हैं, तो निशाना भले ही कहीं और हो, किंतु क्या उनकी निगाह तुझ पर नहीं होती? क्या तीन लोक से न्यारी काशी में तुझसे उनकी कभी बात नहीं हुई? उनके गंगा मिलन की कनपुरिया स्टाइल खबर क्या झूठ थी?...और फिर हमारी सरकार, तेरा मन रखने के लिए तेरे इलाज में कई एक हज़ार करोड़ खर्च तो कर ही रही है। बता, और क्या चाहिए? अब मां होने का मतलब यह थोड़े ही है कि संतान चौबीसों घंटे तेरे ही सेवा में खुद ही लगी रहे। हमें और भी बहुतेरे काम हैं; वोट-नोट, सूट-बूट, टूट-फूट, रिपेयर ... तो मैया, मुआफ करना, तेरा मुलुक आजकल इसी में बिजी है।
भाई अभय मिश्र ने वेंटिलेटर पर ज़िन्दा एक महान नदी की कहानी लिखी है। हमें मालूम है कि वह महान नदी तू ही है। हमें यह भी मालूम है कि उनका 'माटी मानुष चून' उपन्यास, एक महान नदी के वेंटिलेटर पर जाने की कहानी नहीं है; यदि भारत की नदियों की अनदेखी हुई तो 2075 आते-आते, यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के हम इंसानों के वेंटिलेटर पर आश्रित हो जाने की कहानी होगी। नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेस जर्नल, अमेरिका की ताज़ा रिपोर्ट भी यही कह रही है। जिस रफ्तार से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, इस सदी के अंत तक गंगा, मेघना और ब्रह्यपुत्र पर समुद्र का जल स्तर 1.4 मीटर बढ़ जायेगी। इससे एक-तिहाई बांग्ला देश और पूर्वी भारत का एक बड़ा हिस्सा स्थाई बाढ़ व दलदली क्षेत्र के रूप में तब्दील हो जाएगा।
गंगा मां, इससे यह तो तय है कि तब तू नहीं, बल्कि इस इलाके में बसी करीब 20 करोड़ की आबादी वेंटिलेटर पर होगी।...पर कोई चिंता की बात नहीं। यदि ऑस्ट्रेलिया, पानी की तलाश में घरों की ओर विस्थापित हो रहे 10 हज़ार जंगली ऊंटों को मारने की योजना बना सकता है, तो हम तो दुनिया के सबसे बड़े नियोजित लोकतंत्र हैं। क्या हम 20 करोड़ आबादी को विस्थापन की योजना नहीं बना सकते? हमारे बांध, विस्थापन की हमारी योजना के शानदार नमूने ही तो हैं। मां देखना, तब हम या तो दो-तिहाई बांग्ला देश को भारत में मिला लेंगे या फिर सभी को भारत की नागरिकता दे देंगे।
गंगा मां, बाकी क्या लिखूं? कुदरत अपना इंतज़ाम खुद करना जानती ही है। सो, तू तो अपना इंतज़ाम खुद कर ही लेगी। एक बार लहरायेगी; मां से सिर्फ मुनाफा कमाने की नीयत वाले हम सभी को हमारी औकात बता ही देगी। यह बात हमें मालूम है; पर मां, क्या करें? फिलहाल, मुलुक बिजी हैं। फिर मिलेंगे। मकर सक्रान्ति की हार्दिक शुभकामना! जय मां गंगे! - तेरी लाडली संतान, जिसे तूने नहीं बुलाया; हम खुद आये हैं तेरे पास, अपने-अपने हिस्से का पुण्य (मुनाफा) कमाने। स्थान: माघ मेला, प्रयागराज - 2020