विनाशकारी है नदी जोड़ योजना

Submitted by Hindi on Thu, 06/11/2015 - 13:38
Source
कादम्बिनी, मई 2015
हमारे देश में नदियों को जोड़ने का मसला लम्बे वक्त से जेरे-बहस है। नदियों को जोड़ने की वकालत करने वाली सरकारों, विशेषज्ञों के अपने-अपने दावे हैं। तमाम सारे फायदे गिनाए जा रहे हैं। मसलन, बिजली परियोजनाएँ आसानी से चल पाएंगी, सिंचाई की सहूलियत होगी, अकाल से निजात मिलेगी, बाढ़ की समस्या हल हो जाएगी- वगैरह-वगैरह। लेकिन इन दावों की हकीकत क्या है।

.नदी जोड़ योजना पर चर्चा आगे बढ़ाने से पहले हम यह जान लें कि जो लोग इसके लिए प्रयासरत हैं उनके दावे क्या हैं? उनके दावे हैं-
1. नदियों को जोड़ने से देश में सूखे की समस्या का स्थायी समाधान निकल जाएगा और लगभग 15 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता बढ़ाई जा सकेगी।
2. इससे गंगा और ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या कम हो जाएगी।
3. राष्ट्रीय बिजली उत्पादन के क्षेत्र में 34,000 मेगावाट पन-बिजली का और अधिक उत्पादन होगा।

इन दावों के पीछे की हकीकत को समझना जरूरी है। नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव सर आॅर्थर काॅटन ने 100 साल से भी पहले रखा था। सन् 1972 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी और उनकी सरकार के सिंचाई मन्त्री के. एल. राव का प्रस्ताव था कि गंगा को कावेरी से जोड़ा जाए। सन् 1974 में कैप्टन दिनशा जे दस्तूर ‘गारलैंड केनाल’ के नाम से इसे सामने लाए थे। उसके बाद तो जब जिसके मन में आता है ‘नदी जोड़ योजना’ की वकालत करने लगता है। डाॅ. ए.पी.जे. कलाम शीर्ष के मिसाइल वैज्ञानिक रहे हैं। अगर उन्होंने हिमालय से निकलने वाली गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटी की भूगर्भीय स्थिति, गाद आने की मात्रा तथा पूर्व में अमेरिका तथा भारत की अन्य वृहद् सिंचाई परियोजनाओं के अनुभवों तथा उनकी ताजा स्थिति का अध्ययन किया होता तो ‘नदी जोड़ योजना’ से आने वाली विभीषिकाओं का अनुमान कर लेते और इसका समर्थन नहीं करते।

भारत में अभी भी बहुत कम लोगों को पता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में इस प्रकार की योजनाओं के दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं। टिनेसी वैली की परियोजना 1940 के दशक में पूरी तरह असफल हो चुकी थी। कोलोराडो नदी की परियोजना से लेकर मिसीसिपी घाटी तक बड़ी संख्या ने नदी घाटी परियोजनाएँ गाद भर जाने के कारण बाढ़ का प्रकोप बढ़ाने लगीं और जल विद्युत का उत्पादन समाप्त प्राय हो गया। बाद में उनके किनारे थर्मल पावर स्टेशन लगाए गए। लेकिन अंततः उनके बाँधों को तोड़ना पड़ा। 1999 से 2002 के बीच 100 से ज्यादा बाँधों को तोड़ा गया, उसके बाद से भी लगातार उनकी डी कमीशनिंग का काम जारी है। यह काम भी काफी खर्चीला होता है।

गंगा बेसिन और ब्रह्मपुत्र बेसिन का जल हिमालय से आता है। हिमालय में हर साल भूकम्प के लगभग 1000 झटके आते हैं। हर साल आने वाले छोटे-बड़े भूकम्पों के कारण हिमालय क्षेत्र में भू-स्खलन होता रहता है। बरसात में यही मिट्टी-बालू गाद के रूप में नदी में आता है। इसी गाद से गंगा घाटी के मैदानों का निर्माण हुआ है। यह मिट्टी दुनिया की सबसे उर्वर मिट्टी है। यहाँ गाद आने की मात्रा मिसिसिपी घाटी से दोगुनी है। मिसिसिपी घाटी में इस प्रकार की परियोजना विनाशकारी साबित हो चुकी है।

गंगा के पानी को विंध्य के ऊपर उठाकर कावेरी की ओर ले जाने का काम बहुत खर्चीला होगा, क्योंकि यह काम विशालकाय डीजल पम्पों से करना होगा। इससे 4.5 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित होंगे। 79,292 हेक्टेयर जंगल पानी में डूब जाएँगे।

.लगभग 150-200 वर्ष पहले गंगा में बड़ी-बड़ी नावें चलती थीं। 40 साल पहले तक भी गंगा में नौ परिवहन सम्भव था। लेकिन सन् 1971 में प. बंगाल के फरक्का में बराज बनाया गया और 1975 में उसकी कमीशनिंग हुई। बराज बनने से पहले हर साल बाढ़ के समय प्राकृतिक रूप से डी सिल्टिंग होने के कारण गंगा में 150 से 200 फीट तक गहराई हो जाती थी। गाद आस पास के मैदानों में उपजाऊ मिट्टी बिछा देती थी और बड़ी मात्रा में गाद समुद्र में चली जाती थी। बंगाल की खाड़ी में जो छोटे-छोटे टापू दिखाई पड़ते हैं वे गंगा की गाद से ही बने हैं। कभी पं उत्तर प्रदेश, बिहार और बांग्लादेश समेत पूरे बंगाल का निर्माण भी इसी गाद से हुआ था, लेकिन फरक्का बराज बनने के बाद गाद का जमाव शुरू होने के कारण गंगा में गाद भरने लगी, यही हाल सहायक नदियों का भी हुआ। मालदह और मुर्शिदाबाद में लाखों हेक्टेयर भूमि जल में समा गई। बिहार में हर साल बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कटाव और जल-जमाव का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। इसके कारण जमीन ऊसर होती जा रही है। बिहार और बंगाल की डेढ़ करोड़ एकड़ से भी ज्यादा भूमि ऊसर हो चुकी है।

ऐसे में नदी जोड़ और गंगा में नौ परिवहन के नाम, यानी गंगा वाटर के लिए इलाहाबाद से हल्दिया तक 16 बराजों की प्रस्तावित योजना को यदि नहीं रोका गया तो पं. बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश की गंगा तथा सहायक नदियों के आसपास जो बर्बादी और तबाही आएगी उसका अनुमान ही दिल दहलाने वाला है। एक फरक्का बराज से गंगा में मछलियों की समुद्र से आवाजाही बंद हो गई, उनका प्रजनन समाप्त हुआ और 80 प्रतिशत मछलियाँ समाप्त हो गई। गंगा बेसिन के 11 राज्यों की नदियों में 20 लाख मछुआरे परिवार कंगाल हो गए। ‘नदी जोड़’ से गंगा तालाबों में बदल जाएगी और उसके जल की गुणवत्ता समाप्त हो जाएगी। तबाही की यह योजना न केवल हमें कर्जे के जाल में डाल देगी बल्कि जब बर्बादी आएगी तो हमें इस योजना की भी डी कमीशनिंग के लिए कर्ज लेना पड़ेगा।

(लेखक गंगा मुक्ति आन्दोलन के संयोजक हैं )