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जनसत्ता, 23 जून, 2010
एशिया महाद्वीप में दक्षिण एशिया की राजनीतिक स्थिरता एक महत्वपूर्ण अध्याय है क्योंकि यह क्षे़त्र प्राकृतिक व राजनैतिक रूप से सम्पूर्ण एशिया की धुरी है। इस क्षेत्र में पानी विवाद एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो समय-समय पर उभरकर सामने आता रहता है। एक ओर बढ़ती जनसंख्या और घटते प्राकृतिक संसाधन हैं, दूसरी ओर उचित जल प्रबंध नीति का अभाव है। इस पूरे परिदृश्य में पानी विवाद अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर अलग-अलग संघर्षों का रूप लेता दिखाई देता है।
दक्षिण एशिया के सात देशों में से तीन के साथ भारत का पानी के मसले पर विवाद है जो कभी शांत हो जाता है तो कभी टकराव की स्थिति तक पहुंच जाता है। भारत की आजादी के बाद से ही पाकिस्तान और नेपाल के साथ पानी के बंटवारे को लेकर नोक-झोंक होती रहती है। जब बांग्लादेश का उद्भव के साथ ही गंगा और ब्रह्मपुत्र के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
दक्षिण एशिया में पानी को लेकर विवाद इसलिए भी है क्योंकि यहां कि अधिकतर अर्थव्यवस्थाएं कृषि पर निर्भर हैं और नदियों का पानी सिचाई का एक बहुत बड़ा साधन है। निजीकरण की इस दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का बेरहमी से दोहन हो रहा है और ऐसी स्थिति में राज्यों का आपस में लड़ना कोई नई बात नहीं है। मगर भारत का पानी विवाद न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है बल्कि आंतरिक स्तर पर राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश आदी राज्यों के बीच भी पानी के मसले पर बड़ा विवाद है। सरकारिया आयोग ने भी सिफारिश की थी कि राज्यों के पानी विवाद को निपटाने के लिये केंद्र को न्यायधिकरण स्थापित करना चाहिए। मगर राजनीतिक स्वार्थों के चलते केन्द्र द्वारा ईमानदारी से किसी विवाद को निपटाने की जगह उसे रफा दफा कर दिया जाता है।
पिछले दिनों खबर आयी थी कि चीन ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की कोशिश कर रहा है जो भारत के लिए खतरनाक होगा। भारत-पाकिस्तान का विवाद पानी की कमी के कारण होता है जबकि भारत-नेपाल के मामले ठीक इसके उलट हैं। हर साल भारत नेपाल पर यह आरोप लगाता आ रहा है कि नेपाल के पानी छोड़ने से भारत में बाढ़ आ गई। दरअसल, इस बाढ़ का जिम्मेदार नेपाल नहीं भारत खुद है क्योंकि कोशी नदी पर बने बांध के रखरखाव की जिम्मेदारी भारत की है। भारत और बंग्लादेश के बीच पानी का विवाद गंगा नदी को लेकर ज्यादा है जिसके पीछे बंग्लादेश का तर्क होता है कि उसे उचित मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है और जो मिलता है वो भी दुषित पानी होता है।
इस समय दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे अस्थिर क्षेत्र माना जाता है। चूंकि यह क्षेत्र भूराजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है इसलिए एक तरफ अमेरिका नजर गड़ाए हुए है और दूसरी तरफ चीन भी पाकिस्तान से नजदीकियां बढ़ा कर दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। अब स्थिति यह कि पानी को लेकर पाकिस्तान बढ़ा विवाद खड़ा करने की फिराक में है। इसलिए भारत को सचेत रहना चाहिए। लेकिन 2002 में बनी जल नीति में कई जगह पानी का मालिकाना हक निजि कंपनियों को दे दिया गया जो नवउदारवादी नीतियों के तहत जल, जमीन और जंगल छिनने के एजेंडे की बड़ी सफलता है। दक्षिण एशिया का भविष्य पानी पर टिका हुआ है जिससे लगातार खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में सार्क को इन विवादों को सुलझाने की पहल करनी चाहिए क्योंकि अमेरिका और चीन यहां शांति नहीं चाहते हैं।
दक्षिण एशिया के सात देशों में से तीन के साथ भारत का पानी के मसले पर विवाद है जो कभी शांत हो जाता है तो कभी टकराव की स्थिति तक पहुंच जाता है। भारत की आजादी के बाद से ही पाकिस्तान और नेपाल के साथ पानी के बंटवारे को लेकर नोक-झोंक होती रहती है। जब बांग्लादेश का उद्भव के साथ ही गंगा और ब्रह्मपुत्र के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
दक्षिण एशिया में पानी को लेकर विवाद इसलिए भी है क्योंकि यहां कि अधिकतर अर्थव्यवस्थाएं कृषि पर निर्भर हैं और नदियों का पानी सिचाई का एक बहुत बड़ा साधन है। निजीकरण की इस दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का बेरहमी से दोहन हो रहा है और ऐसी स्थिति में राज्यों का आपस में लड़ना कोई नई बात नहीं है। मगर भारत का पानी विवाद न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है बल्कि आंतरिक स्तर पर राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश आदी राज्यों के बीच भी पानी के मसले पर बड़ा विवाद है। सरकारिया आयोग ने भी सिफारिश की थी कि राज्यों के पानी विवाद को निपटाने के लिये केंद्र को न्यायधिकरण स्थापित करना चाहिए। मगर राजनीतिक स्वार्थों के चलते केन्द्र द्वारा ईमानदारी से किसी विवाद को निपटाने की जगह उसे रफा दफा कर दिया जाता है।
पिछले दिनों खबर आयी थी कि चीन ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की कोशिश कर रहा है जो भारत के लिए खतरनाक होगा। भारत-पाकिस्तान का विवाद पानी की कमी के कारण होता है जबकि भारत-नेपाल के मामले ठीक इसके उलट हैं। हर साल भारत नेपाल पर यह आरोप लगाता आ रहा है कि नेपाल के पानी छोड़ने से भारत में बाढ़ आ गई। दरअसल, इस बाढ़ का जिम्मेदार नेपाल नहीं भारत खुद है क्योंकि कोशी नदी पर बने बांध के रखरखाव की जिम्मेदारी भारत की है। भारत और बंग्लादेश के बीच पानी का विवाद गंगा नदी को लेकर ज्यादा है जिसके पीछे बंग्लादेश का तर्क होता है कि उसे उचित मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है और जो मिलता है वो भी दुषित पानी होता है।
इस समय दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे अस्थिर क्षेत्र माना जाता है। चूंकि यह क्षेत्र भूराजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है इसलिए एक तरफ अमेरिका नजर गड़ाए हुए है और दूसरी तरफ चीन भी पाकिस्तान से नजदीकियां बढ़ा कर दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। अब स्थिति यह कि पानी को लेकर पाकिस्तान बढ़ा विवाद खड़ा करने की फिराक में है। इसलिए भारत को सचेत रहना चाहिए। लेकिन 2002 में बनी जल नीति में कई जगह पानी का मालिकाना हक निजि कंपनियों को दे दिया गया जो नवउदारवादी नीतियों के तहत जल, जमीन और जंगल छिनने के एजेंडे की बड़ी सफलता है। दक्षिण एशिया का भविष्य पानी पर टिका हुआ है जिससे लगातार खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में सार्क को इन विवादों को सुलझाने की पहल करनी चाहिए क्योंकि अमेरिका और चीन यहां शांति नहीं चाहते हैं।