आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster risk reduction in Hindi)

Submitted by Editorial Team on Fri, 03/04/2022 - 12:37

आपदा जोखिम की सघनता को कम करने, व्यक्ति और सम्पत्ति पर प्रभावों को कम करने, भूमि और पर्यावरण का बुद्धिमत्ता पूर्ण प्रबन्धन और अवांछित घटनाओं के लिए तैयारी आदि विधियों सहित आपदा के कारणों, तत्वों के विश्लेषण और प्रबन्धन का क्रमबद्ध प्रयास ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण’ कहलाता है।

टिप्पणी: 2005 में आपदा जोखिम कम करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्द्र में एक व्यापक प्रस्ताव ह्योगो फ्रेमवर्क अपनाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप ’’समुदायों और देशों में आपदा के कारण जीवन, समाज, पर्यावरण, और संपत्ति को होने वाले नुकसान में पर्याप्त कमी आई है’’। इंटरनेशनल स्द्रेटजी फॉर डिजास्टर रिडक्शन ह्योगो फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन के लिए सरकारों, संगठनों, नागरिक समाज कार्यकत्र्ताओं के बीच सहयोग के लिए एक साधन उपलब्ध कराता है। ध्यान दें कि जबकि कई बार शब्द ‘आपदा जोखिम’ का प्रयोग किया जाता है, किन्तु शब्द ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण’ चल रही आपदा जोखिमों की प्रकृति और इन जोखिमों को कम करने की क्षमता को एक बेहतर मान्यता प्रदान करता है।

भारत के संदर्भ में - 

​भारत एक बहु आपदा प्रवण देश है जहाँ दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक आपदाएँ घटती हैं. भारत के 29 राज्यों एवं 7 केंद्र शासित प्रदेशों में  से 27में प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ और सूखे जैसी आदि का कहर निरंतर रहता है।

जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय क्षति की वजह से आपदाओंकी तीव्रता एवं आवृत्ति भी अधिक हो गई है जिससे जान – माल की क्षति अधिक हो रही है. इसके अतिरिक्त देश का एक तिहाई हिस्सा नागरिक संघर्ष एवं बंद आदि से भी प्रभावित रहता है।

किसी भी आपदा में व आपदा के बाद बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और ऐसी वास्तविकताओं को  अक्सर योजनाओं एवं नीति निर्माण के समय में अनदेखा कर दिया जाता है ।

यूनिसेफ बच्चों की भलाई और उनके समुदायों पर आघात और तनाव के अद्यतन जोखिम विश्लेषण का संचालन और रखरखाव करता है, जो सेवा प्रदाताओं की कम क्षमता और समुदायों की संवेदनशीलता जैसे अंतर्निहित कारणों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह साक्ष्य सरकार और उसके सहयोगियों को बच्चों को केंद्रित एवं जोखिम सूचक योजनाओं के निर्माण पर और ध्यान देने के बारे में जानकारी देता है जिससे कि बच्चों की आपदा के प्रभाव को सहन करने की शक्ति बढ़ाने, सेवाओं के निष्पादन में आने वाली रुकावटों एवं आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके ।​​(1)