अब तो बस यादों में ही बचे हैं उदयपुर के तालाब

Submitted by Hindi on Sat, 01/02/2016 - 15:56
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अनसुना मत करो इस कहानी को (परम्परागत जल प्रबन्धन), 1 जुलाई 1997

चन्द साल पहले पानी के लिये जब हाय-हाय शुरू हुई तो नल-जल योजना वालों ने केवटन नदी से पाइप लाइन बिछा दी। पाइप लाइन बार-बार फूट जाने पर गाँव वालों ने मिस्त्री की माँग की। साल-दो-साल में जब तक मिस्त्री की व्यवस्था की गई, तब तक बिजली का संकट शुरू हो गया और जब गाँव वालों के दबाव पर ट्रांसफारमर रखा गया, तो अब पिछले पाँच-सात सालों से केवटन जनवरी में ही सूख जाती है।

जनश्रुति के मुताबिक उदयपुर में कभी बावन कुएँ, छप्पन बावड़ियाँ और साढ़े बारह तालाब थे। सिंचाई के लिये गाँव में अब कुएँ तो और खुद गए हैं, पर बावड़ियाँ नष्ट होती जा रही हैं और तालाब? वे तो सिर्फ पुराने लोगों की यादों में ही बचे हैं। उदयपुर के अवशेष 1966 हेक्टेयर में बिखरे हुए हैं। जाहिर है, उदयपुर की उस पुरानी और विशाल बस्ती में पानी का पुख्ता इन्तजाम भी होगा। 11वीं सदी में राजा उदयादित्य परमार ने खूबसूरत उदयेश्वर मन्दिर के साथ ही ‘उदय समुद्र’ नामक तालाब भी बनावाया था। अब तो सिर्फ मन्दिर ही बचा है, उदय समुद्र का कोई अता-पता नहीं है।

उदयपुरवासी कहानी सुनाते हैं कि बाहर से आई नटनी ने राजा के सामने खेल दिखाते समय गर्वोक्ति की कि वह विशाल उदय समुद्र को कच्चे सूत पर चलकर पार कर सकती है। राजा ने यह काम असम्भव बताया और कहा कि यदि नटनी ने यह करतब कर दिखाया तो अपना आधा राज्य उसे दे देंगे वरना नटनी को राजा की आजीवन चाकरी करनी होगी। नटनी ने राजा की शर्त मंजूर कर ली। उदय समुद्र के आरपार कच्चा सूत बाँध दिया गया, नटनी ने भी मंत्रों से सबके हथियार बाँध दिये और सूत पर चलती हुई तालाब पार करने लगी। पर नटनी रांपी बाँधना भूल गई थी। जब वह तालाब पार करने की शर्त जीतने को ही थी तो राजा ने चर्मकारों को इज़्ज़त की दुहाई दी और उन्होंने चमड़ा काटने की रांपी से सूत काट दिया। नटनी तालाब में गिरी और डूब कर मर गई।

नटनी ने रांपी के साथ-साथ जमीन के भूखे लोगों की कुदालें भी नहीं बाँधी थी, तभी तो कुदालें चलीं और उदय समुद्र मार डाला गया। बुजुर्ग गाँववालों को उदय-समुद्र की ही नहीं, उन साढ़े बारह तालाबों की याद अभी भी है, जिनमें चन्द सालों पहले तक पुरैन फूलती थी और हजारों की संख्या में ताल चिरैएँ डेरा डाले रहती थीं।

उनकी यादों में अब भी भुजरया तला, लडेंरा तला, मड़तला, रेकड़ा तला, वमनैया ताल, कारी तलाई, बेल तला, हरैला तला, लमडोरा तला, नओ तला, गुचरैया तला और मकड़ी तलैया बसे हुए हैं। इनमें से आखिरी पाँच की पालों पर तो चन्द दिनों पहले तक सीढ़ियाँ बची हुई थीं।

उदयपुर के ये सभी बारह तालाब शुरू से ही अलग-अलग थे या वक्त के थपेड़े खाकर उदय-समुद्र ही बारह हिस्सों में बँट गया था? इस सवाल का जवाब देने वाला आज कोई नहीं बचा है। जब तक ये तालाब थे, उनके गिर्द बने हुए कुएँ-बावड़ियाँ जिन्दा थीं। गाँव में पानी का कोई संकट नहीं था, पर आज बावन कुएँ, छप्पन बावड़ियाँ और साढ़े बारह तालाबों का उदयपुर, जिले के सर्वाधिक प्यासे गाँवों में से एक है, जहाँ पानी के मुकाबले शराब ज्यादा आसानी से मिल जाती है।

चन्द साल पहले पानी के लिये जब हाय-हाय शुरू हुई तो नल-जल योजना वालों ने केवटन नदी से पाइप लाइन बिछा दी। पाइप लाइन बार-बार फूट जाने पर गाँव वालों ने मिस्त्री की माँग की। साल-दो-साल में जब तक मिस्त्री की व्यवस्था की गई, तब तक बिजली का संकट शुरू हो गया और जब गाँव वालों के दबाव पर ट्रांसफारमर रखा गया, तो अब पिछले पाँच-सात सालों से केवटन जनवरी में ही सूख जाती है। उदयपुर फिर प्यासा-का-प्यासा है।