अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना जरूरी

Submitted by Editorial Team on Sat, 06/11/2022 - 09:40
Source
04 Jun 2022, हस्तक्षेप, सहारा समय

अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना जरूरी। फोटो - indiawaterportal flicker

हमने इस वर्ष भारत में मुख्यतः उत्तर और मध्य भारत में मार्च से मई के महीनों के बीच कई विषम वायुमंडलीय परिस्थितियों को देखा है। पिछले लगभग सवा सौ वर्षों में सबसे अधिक गर्म मार्च और अप्रैल का महीना‚ विषम ऊष्मा तरंगों (हीट वेव्स) का प्रलय और वर्तमान में जंगलों में लग रही भीषण आग उदाहरण के लिए प्रस्तुत हैं। हालांकि अप्रैल और मई के गर्म महीनों में भारत के जंगलों में आग लगना नई बात नहीं है। पिछले दो दशकों में इस प्रकार के वनाग्नि की घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। आम तौर पे वैज्ञानिक और शोधकर्ता मानव–निर्मित वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) को इस प्रकार की विषम वायुमंडलीय परिस्थितियों की आवृत्ति में वृद्धि होने का मुख्य कारण बताते हैं‚ और इसको जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं। 

हालांकि इस साल की विषम ऊष्मा तरंगों और जंगलों में लग रही आग का संबंध वायुमंडलीय परिसंचरण प्रणाली में बदलाव से भी है। 2022 की भयावह ऊष्मा तरंगे‚ ‘ला–नीना' घटना द्वारा बनाई गई उच्च दबाव की स्थिति से जुड़ी हुई हैं‚ जो 2021 की सर्दियों में लगातार दूसरे वर्ष बनी है। ला नीना एक युग्मित समुद्री–वायुमंडलीय परिसंचरण प्रणाली है‚ जो गर्म पानी की समुद्री धाराओं को पश्चिमी अमेरिकी तट से पूर्वी एशियाई देशों तक लाती है‚ और उपोष्णकटिबंधीय जेट धाराओं (ऊपरी वायुमंडल में शक्तिशाली हवाओं का संकरा समूह) को भी प्रभावित करती है। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में उपोष्णकटिबंधीय जेट धाराओं में एक शिखा के गठन के परिणामस्वरूप उच्च दबाव क्षेत्र बन गया था‚ जिसने उपमहाद्वीप के भीतर गर्म हवाओं को फंसा दिया‚ जिससे लगातार गर्मी की लहरें पैदा हुई हैं। 

गर्मी की लहरों की शुरुआत

सामान्यतः गर्मी की लहरें तब शुरू होती हैं‚ जब वायुमंडल में उच्च दबाव अंदर आता है‚ और गर्म हवा को जमीन की ओर धकेलता है। आरोहण के दौरान रु द्धोष्म (आडि़याबेटिक) रूप से संकुचित होने के कारण यह हवा और अधिक गर्म हो जाती है। ये स्थितियां इस क्षेत्र में हवा की गति और बादल के घेराव को भी कम करती हैं। कम बादल होने के कारण ज्यादा सौर विकिरण सतह तक पहंुच कर जमीन को और ज्यादा गर्म कर देता है‚ जिसके फलस्वरु प सतह का तापमान और भी बढ़ जाता है। सतह के तापमान को बढ़ाने के साथ–साथ उपरोक्त वायुमंडलीय परिस्थितियां वातावरण में आर्द्रता को कम और वर्षा को भी क्षीण करती हैं‚ जो जंगलों में आग लगने की आशंका को और अधिक बढ़ा रहा है। 

दिलचस्प बात यह है कि इस साल की हीट वेव्स का ला–नीना के साथ संबंध के मामले में भी विसंगति है‚ क्योंकि आम तौर पर अल–नीनो (ला नीना के विपरीत जुड़वां भाई) एपिसोड भारत में गर्मी की लहरों के साथ अधिक संबंधित है। उदाहरण के लिए 2016 का हीट वेव्स एपिसोड‚ जो भारत में 2000 से अधिक मृत्यु के लिए उत्तरदायी था‚ लगातार गर्म हो रही दुनिया के बीच इन प्राकृतिक परिसंचरणों (जैसे एल–नीना और ला–नीना) में हो रहे विषम बदलाव‚ क्षेत्रीय मौसम संबंधी घटनाओं को पूरी तरह समझने में और अधिक मुश्किलों को बढ़ा रहा है।

हीट वेव्स और वनाग्नि 

दुनिया भर में कई शोध समूहों ने दिखाया है कि बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग दक्षिण एशिया में हीट वेव्स और वनाग्नि की स्थिति को और भी खराब कर देगी। उन्होंने ग्रीन हाउस गैसों के लिए विभिन्न उत्सर्जन परिदृश्यों के साथ कई जलवायु मॉडल का उपयोग किया है‚ और दिखाया है कि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में नियंत्रण से भविष्य में इन चरम घटनाओं की आवृत्ति को कम किया जा सकता है। इसलिए (मेरे विचारानुसार) आने वाले समय में भारत और चीन जैसे विकासशील देशों से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन नियंत्रण करने से इन विषम मौसम की घटनाओं पे काबू पाया जा सकता है। हालांकि यह इतना आसान नहीं है क्योंकि हमें गरीबी को मिटाने और अपनी आबादी को स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन प्रदान करने के लिए तेजी से विकास की आवश्यकता है। 

इसके अलावा‚ ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन केवल दक्षिण एशिया की समस्या नहीं है‚ और न ही केवल इन देशों द्वारा पैदा की गई है। मुझे लगता है कि सभी विकासशील और विकसित देशों द्वारा ‘साझा लेकिन अलग–अलग जिम्मेदारियों' का सिद्धांत इन समस्याओं को दूर करने का एकमात्र तरीका है। हमें अक्षय ऊर्जा स्रोतों पे अपनी निर्भरता को बढ़ाने की आवश्यकता है। 

लेखक जेएनयू के स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंट साइंसेज में असि. प्रोफेसर हैं।