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नवोदय टाइम्स, 22 जून 2015
यहाँ के पानी में बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होने की पुष्टि हेतु विज्ञान जगत से जुड़े शोधकर्ताओं ने अलखनंदा नदी के उद्गम स्थल के पानी का परीक्षण किया और बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होने की पुष्टि की। छत्तीसगढ़ जिले के बगीचा ब्लॉक से 28 किलोमीटर की दूरी पर कुछ विशेषता लिए ‘अलखनंदा’ नदी का उद्गम है। यहाँ का पानी गंगाजल की तरह कभी खराब नहीं होता और यहाँ भी बैक्टीरियोफेज जीवाणु हैं। कुछ वर्षों से यहाँ आने वाले पर्यटकों ने इसे छत्तीसगढ़ की गंगा का नाम दिया। इस स्थान को अलखनंदा के नाम से पहचाना जाने लगा है। प्राचीन धर्मग्रंथों ने बनारस, इलाहाबाद और हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थान पर बहने वाली गंगा के धार्मिक महत्व भी उतना ही है जितना कि धार्मिक महत्व है। गंगा नदी के पानी को इतने प्रदूषण के बाद भी शुद्ध और पवित्र इसलिए माना जाता है क्योंकि गंगाजल में बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु हैं जो अन्य हानि पहुँचाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं।
यहाँ के पानी में बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होने की पुष्टि हेतु विज्ञान जगत से जुड़े शोधकर्ताओं ने अलखनंदा नदी के उद्गम स्थल के पानी का परीक्षण किया और बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होने की पुष्टि की। यहाँ के जल स्रोत में बैक्टीरियोफेज जीवाणु का होना जशपुर जिले ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ राज्य के लिए एक बड़ा आश्चर्य है। ये जीवाणु गंगाजल के समक्ष माने जाते हैं। इस स्थान को न सिर्फ धार्मिक मान्यता दी गई, बल्कि गंगाजल के समान गुण होने के कारण यहाँ के जल का महत्व और भी बढ़ गया। यहीं पर स्थित है, संत गहिरा गुरु की तपोस्थली, जिसे कैलाश गुफा के नाम से जाना जाता है।
कैलाश गुफा में यह गंगा अनवरत प्रवाहित हो रही है। इस जलस्रोत की विशेषता यह है कि इसका जल गंगा की तरह पवित्र है जो कभी खराब/दूषित नहीं होता। लोगों की धार्मिक आस्था इतनी है कि लोग यहाँ अस्थि विसर्जन जैसे संस्कार भी करते हैं। जानकारों के मुताबिक जीवाणु के अनुकूल तापमान सहित अन्य परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं। यह जीवाणु शरीर को नुक्सान पहुँचाने वाले अन्य जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। सम्भावना यह जताई जा रही है कि जिस क्षेत्र में अलखनंदा का उद्गम है, वहाँ कई प्रकार की दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ हैं जो यहाँ के बाद हिमालय क्षेत्र में ही प्रमुखता से मिलती हैं। जिस झरने को अलखनंदा का नाम दिया गया है, वह कोई निश्चित स्रोत नहीं है, बल्कि पहाड़ी क्षेत्र से होकर यहाँ अलग-अलग स्रोतों से पानी एकत्रित होकर कैलाश गुफा के पास झरने में परिवर्तित हो जाता है। संत गहिरा गुरु के नाम से हर वर्ष छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा पर्यावरण पुरस्कार भी दिया जाता है।
अलखनंदा उद्गम और जलस्रोत का जितना महत्त्व है, उतनी ही इस स्थान की उपेक्षा हो रही है। इस पर्यटन स्थल के संरक्षण के लिए जिला स्तर पर भी कोई पहल नहीं की जा रही है। विज्ञान जगत से जुड़े लोगों के द्वारा यहाँ के जल का तीन बार परीक्षण किया गया और बैक्टीरियोफेज जीवाणु के होने की पुष्टि की गई। परीक्षण करके भी यहाँ के जल को गंगाजल के बराबर बताया गया। यहाँ के जल की पवित्रता ने त्रिवेणी संगम से बगीचा की दूरी ही मिटा दी है और क्षेत्र के निवासी अब उन संस्कारों को यहीं आकर करने लगे हैं जिन्हें करने के लिए बनारस, हरिद्वार और इलाहाबाद जाना पड़ता था परन्तु केन्द्रीय भू-जल बोर्ड, छत्तीसगढ़ के निदेश श्री के.सी. नायक ने कहा है कि अलखनंदा जलप्रपात के पानी के संबंध में अभी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इसकी गुणवत्ता को लेकर हल जल्द ही सर्वे कराएँगे।
यहाँ के पानी में बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होने की पुष्टि हेतु विज्ञान जगत से जुड़े शोधकर्ताओं ने अलखनंदा नदी के उद्गम स्थल के पानी का परीक्षण किया और बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होने की पुष्टि की। यहाँ के जल स्रोत में बैक्टीरियोफेज जीवाणु का होना जशपुर जिले ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ राज्य के लिए एक बड़ा आश्चर्य है। ये जीवाणु गंगाजल के समक्ष माने जाते हैं। इस स्थान को न सिर्फ धार्मिक मान्यता दी गई, बल्कि गंगाजल के समान गुण होने के कारण यहाँ के जल का महत्व और भी बढ़ गया। यहीं पर स्थित है, संत गहिरा गुरु की तपोस्थली, जिसे कैलाश गुफा के नाम से जाना जाता है।
कैलाश गुफा में यह गंगा अनवरत प्रवाहित हो रही है। इस जलस्रोत की विशेषता यह है कि इसका जल गंगा की तरह पवित्र है जो कभी खराब/दूषित नहीं होता। लोगों की धार्मिक आस्था इतनी है कि लोग यहाँ अस्थि विसर्जन जैसे संस्कार भी करते हैं। जानकारों के मुताबिक जीवाणु के अनुकूल तापमान सहित अन्य परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं। यह जीवाणु शरीर को नुक्सान पहुँचाने वाले अन्य जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। सम्भावना यह जताई जा रही है कि जिस क्षेत्र में अलखनंदा का उद्गम है, वहाँ कई प्रकार की दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ हैं जो यहाँ के बाद हिमालय क्षेत्र में ही प्रमुखता से मिलती हैं। जिस झरने को अलखनंदा का नाम दिया गया है, वह कोई निश्चित स्रोत नहीं है, बल्कि पहाड़ी क्षेत्र से होकर यहाँ अलग-अलग स्रोतों से पानी एकत्रित होकर कैलाश गुफा के पास झरने में परिवर्तित हो जाता है। संत गहिरा गुरु के नाम से हर वर्ष छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा पर्यावरण पुरस्कार भी दिया जाता है।
अलखनंदा उद्गम और जलस्रोत का जितना महत्त्व है, उतनी ही इस स्थान की उपेक्षा हो रही है। इस पर्यटन स्थल के संरक्षण के लिए जिला स्तर पर भी कोई पहल नहीं की जा रही है। विज्ञान जगत से जुड़े लोगों के द्वारा यहाँ के जल का तीन बार परीक्षण किया गया और बैक्टीरियोफेज जीवाणु के होने की पुष्टि की गई। परीक्षण करके भी यहाँ के जल को गंगाजल के बराबर बताया गया। यहाँ के जल की पवित्रता ने त्रिवेणी संगम से बगीचा की दूरी ही मिटा दी है और क्षेत्र के निवासी अब उन संस्कारों को यहीं आकर करने लगे हैं जिन्हें करने के लिए बनारस, हरिद्वार और इलाहाबाद जाना पड़ता था परन्तु केन्द्रीय भू-जल बोर्ड, छत्तीसगढ़ के निदेश श्री के.सी. नायक ने कहा है कि अलखनंदा जलप्रपात के पानी के संबंध में अभी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इसकी गुणवत्ता को लेकर हल जल्द ही सर्वे कराएँगे।