धरती पर पानी की उपलब्धता एक जल चक्र के रूप में है। पृथ्वी के वायुमंडल में पानी का वाष्पीकरण होता है, फिर वह वर्षा जल के रूप में पृथ्वी पर गिरता है और बहते हुए नदियों के माध्यम से समुद्र में जा मिलता है। धरती पर शुद्ध जल विभिन्न नदियों, झीलों, तालाबों में एवं भूजल के रूप में उपलब्ध है। देश में आज भी पूरी आबादी को पीने के लिए साफ पानी मयस्सर नहीं है और अब तो स्थिति यह बन रही है कि पानी के उपयोग के आधार पर उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यानी एक बड़ी जनसंख्या पानी से वंचित रह जाने की कगार पर है। दूसरी ओर पानी के व्यापार में हजारों करोड़ रुपए सालाना की वृद्धि हो रही है।
ऐसा कहा जा रहा है कि जल संकट को देखते हुए पानी के सीमित एवं सही उपयोग के लिए उसकी कीमत तय की जा रही है। पर क्या यह सही रास्ता है? क्या ऐसा करने से हम सभी तक पानी पहुंचा पाएंगे और पानी का सही उपयोग हो पाएगा? नीति निर्धारकों के लिए इसका सही जवाब देना मुश्किल है।
आखिर यह जल संकट है क्या? हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि पृथ्वी के दो-तिहाई हिस्से में पानी है। फिर पानी की कमी कैसे हो सकती है? पर शायद हम यहां गलती कर बैठते हैं और इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि कभी भी पानी की कमी हो ही नहीं सकती।
हमें जानकर यह आश्चर्य होगा कि धरती पर 29 करोड़ 40 लाख क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है, पर अफसोस कि उसमें सिर्फ 2.7 फीसदी पानी ही शुद्ध एवं पीने लायक है। इस स्वच्छ पानी में से 75 फीसदी पानी ध्रुवीय क्षेत्रों में जमा है और 22.6 फीसदी भूजल के रूप में है। बाकी बचा हुआ शुद्ध जल झीलों, नदियों, तालाबों एवं अन्य स्रोतों में उपलब्ध है। इस तरह से देखा जाए, तो उपभोग के लिए जिस मात्रा में पानी उपलब्ध है, वह कुल उपलब्ध पानी का एक छोटा सा हिस्सा है।
धरती पर पानी की उपलब्धता एक जल चक्र के रूप में है। पृथ्वी के वायुमंडल में पानी का वाष्पीकरण होता है, फिर वह वर्षा जल के रूप में पृथ्वी पर गिरता है और बहते हुए नदियों के माध्यम से समुद्र में जा मिलता है। धरती पर शुद्ध जल विभिन्न नदियों, झीलों, तालाबों में एवं भूजल के रूप में उपलब्ध है।
इसलिए सदियों से जल हमारे जीवन, संस्कृति एवं समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नदियों का कल-कल बहता पानी हो या झरने से झर-झर गिरता पानी या फिर तालाब एवं झील में चमकता नीला पानी। हमारे गांव-कस्बे या शहर में पानी के सबसे बड़े स्रोत होते हैं - नदी, झील एवं तालाब। कई शहरों की पहचान वहां की नदियां होती हैं, झीलें होती हैं या तालाब होते हैं।
बनारस में गंगा का घाट नहीं हो, तो उस शहर की क्या पहचान होगी? महेश्वर, ओंकारेश्वर या होशंगाबाद से होकर नर्मदा बहना बंद कर दे, तो उन शहरों का क्या होगा? कई शहरों के तालाब एवं झील पुरी दुनिया में मशहूर हैं। कई ऐसे शहर हैं, जहां के रहनेवाले की प्यास बुझाने में वहां के तालाब एवं झील ही काम आते हैं।
पर क्या हम इस अनमोल तोहफे को संभाल पाए हैं? जिस पानी को सदियों से पूजा जाता रहा है, उसे सहेजना तो दूर की बात है, उसका सही उपयोग भी हम भूल गए और हमने अपने लिए, अपने भविष्य के लिए एक संकट पैदा कर लिया है। आधुनिक जीवनशैली में हम पानी को इतना बर्बाद कर रहे हैं कि पानी से आम आदमी की पहुंच दूर होती जा रही है।
प्रकृति द्वारा सभी क्षेत्रों के लिए इतना पर्याप्त पानी मिल जाता है कि यदि उसका सही उपयोग किया जाए, उसे सहेजा जाए और उसे बनाए रखने के लिए पर्याप्त उपाय किया जाए, तो जल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। फिर इस बात की जरूरत नहीं होगी कि पानी की कीमत तय कर उसे गरीब बस्ती में रहने वाले करोड़ों लोगों को पानी से वंचित कर दिया जाए।
ऐसा कहा जा रहा है कि जल संकट को देखते हुए पानी के सीमित एवं सही उपयोग के लिए उसकी कीमत तय की जा रही है। पर क्या यह सही रास्ता है? क्या ऐसा करने से हम सभी तक पानी पहुंचा पाएंगे और पानी का सही उपयोग हो पाएगा? नीति निर्धारकों के लिए इसका सही जवाब देना मुश्किल है।
आखिर यह जल संकट है क्या? हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि पृथ्वी के दो-तिहाई हिस्से में पानी है। फिर पानी की कमी कैसे हो सकती है? पर शायद हम यहां गलती कर बैठते हैं और इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि कभी भी पानी की कमी हो ही नहीं सकती।
हमें जानकर यह आश्चर्य होगा कि धरती पर 29 करोड़ 40 लाख क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है, पर अफसोस कि उसमें सिर्फ 2.7 फीसदी पानी ही शुद्ध एवं पीने लायक है। इस स्वच्छ पानी में से 75 फीसदी पानी ध्रुवीय क्षेत्रों में जमा है और 22.6 फीसदी भूजल के रूप में है। बाकी बचा हुआ शुद्ध जल झीलों, नदियों, तालाबों एवं अन्य स्रोतों में उपलब्ध है। इस तरह से देखा जाए, तो उपभोग के लिए जिस मात्रा में पानी उपलब्ध है, वह कुल उपलब्ध पानी का एक छोटा सा हिस्सा है।
धरती पर पानी की उपलब्धता एक जल चक्र के रूप में है। पृथ्वी के वायुमंडल में पानी का वाष्पीकरण होता है, फिर वह वर्षा जल के रूप में पृथ्वी पर गिरता है और बहते हुए नदियों के माध्यम से समुद्र में जा मिलता है। धरती पर शुद्ध जल विभिन्न नदियों, झीलों, तालाबों में एवं भूजल के रूप में उपलब्ध है।
इसलिए सदियों से जल हमारे जीवन, संस्कृति एवं समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नदियों का कल-कल बहता पानी हो या झरने से झर-झर गिरता पानी या फिर तालाब एवं झील में चमकता नीला पानी। हमारे गांव-कस्बे या शहर में पानी के सबसे बड़े स्रोत होते हैं - नदी, झील एवं तालाब। कई शहरों की पहचान वहां की नदियां होती हैं, झीलें होती हैं या तालाब होते हैं।
बनारस में गंगा का घाट नहीं हो, तो उस शहर की क्या पहचान होगी? महेश्वर, ओंकारेश्वर या होशंगाबाद से होकर नर्मदा बहना बंद कर दे, तो उन शहरों का क्या होगा? कई शहरों के तालाब एवं झील पुरी दुनिया में मशहूर हैं। कई ऐसे शहर हैं, जहां के रहनेवाले की प्यास बुझाने में वहां के तालाब एवं झील ही काम आते हैं।
पर क्या हम इस अनमोल तोहफे को संभाल पाए हैं? जिस पानी को सदियों से पूजा जाता रहा है, उसे सहेजना तो दूर की बात है, उसका सही उपयोग भी हम भूल गए और हमने अपने लिए, अपने भविष्य के लिए एक संकट पैदा कर लिया है। आधुनिक जीवनशैली में हम पानी को इतना बर्बाद कर रहे हैं कि पानी से आम आदमी की पहुंच दूर होती जा रही है।
प्रकृति द्वारा सभी क्षेत्रों के लिए इतना पर्याप्त पानी मिल जाता है कि यदि उसका सही उपयोग किया जाए, उसे सहेजा जाए और उसे बनाए रखने के लिए पर्याप्त उपाय किया जाए, तो जल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। फिर इस बात की जरूरत नहीं होगी कि पानी की कीमत तय कर उसे गरीब बस्ती में रहने वाले करोड़ों लोगों को पानी से वंचित कर दिया जाए।