श्री विधि एक आधुनिक तरीका है और इसमें पानी की खपत भी बहुत कम होती है। पहले कुछ कलस्टर में किसानों को प्रोत्साहित किया। परिणाम अच्छा आने के बाद अन्य किसानों को उसके प्रति प्रेरित करना आसान हो गया।मध्य प्रदेश का उमरिया एक ऐसा जिला है, जहाँ खेती बहुत ज्यादा लाभ का धन्धा नहीं थी। पर पिछले साल उमरिया ने धान उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी कर जिले के आर्थिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रदेश का उमरिया जिला बान्धवगढ़ नेशनल पार्क के कारण विश्वविख्यात है। यहाँ देशी एवं विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं। इसके बावजूद सिर्फ पर्यटन उद्योग के बूते जिले का आर्थिक विकास सम्भव नहीं है।
जिले में कृषि आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, पर कृषि के क्षेत्र में नवाचारी प्रयोग एवं आधुनिक तरीकों को अपनाने के प्रति किसान उदासीन रहे हैं। इस वजह से यहाँ फसलों का उत्पादन बहुत बेहतर नहीं हो पाता था। यह आदिवासी बहुल जिला है एवं लोग पारम्परिक जीविकोपार्जन पर ज्यादा आश्रित हैं। यहाँ खेती भी पारम्परिक तरीके से की जा रही थी।
धान यहाँ की प्रमुख फसल है। यहाँ जिला प्रशासन ने आत्मा प्रोजेक्ट के तहत धान की खेती में श्री (एस.आर.आई.) विधि पर जोर दिया। श्री विधि एक आधुनिक तरीका है और इसमें पानी की खपत भी बहुत कम होती है। पहले कुछ कलस्टर में किसानों को प्रोत्साहित किया। परिणाम अच्छा आने के बाद अन्य किसानों को उसके प्रति प्रेरित करना आसान हो गया।
जिला प्रशासन ने अपने स्तर पर अनूठा प्रयोग करते हुए पहली बार श्री रथ अभियान चलाया। इसमें किसान मित्रों की टोली गाँव-गाँव जाकर लोगों को श्री विधि एवं खेती के आधुनिक तरीकों को बतलाई और प्रायोगिक प्रदर्शन के माध्यम से उन्हें वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसके पहले किसान मित्र एवं किसान दीदी का प्रशिक्षण जिले के किसानों को दिया गया था। उनमें से ही युवा किसानों के समूह को इस अभियान के संचालन की जिम्मेदारी दी।
श्री विधि से धान की खेती करने के लिए जरूरी यन्त्र कोनोविडर की उपलब्धता माँग से ज्यादा रखी गई, ताकि माँग बढ़ने पर वह कम नहीं पड़ जाए। साप्ताहिक ग्राम चौपालों पर श्री विधि की चर्चा की गई। इन सबका सकारात्मक असर किसानों पर पड़ा और श्री विधि से खेती का रकबा बढ़ जाने से उत्पादन में ज्यादा बढ़ोतरी हुई। कई जगहों पर किसानों ने श्री विधि को पूरी तरह से नहीं अपनाया, पर उसके कुछ भाग को अपनाया, जिसकी वजह से बहुत ज्यादा नहीं, पर पिछले साल की तुलना में उनका भी उत्पादन बढ़ गया। यह तरीका बहुत ही कारगर रहा है। खेती में बेहतर प्रदर्शन करने पर जिले के कई किसानों को राज्य स्तर पर एवं राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया गया।
जिले में खेती का कुल रकबा 2012 में 83.03 हजार हेक्टेयर था, जो 23 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 2013 में 102.86 हजार हेक्टेयर हो गया। इसमें से धान का का रकबा 2012 में 40.07 हजार हेक्टेयर था, जो 2013 में 20 फीसदी बढ़कर 48.09 हजार हेक्टेयर हो गया। एक साल में धान के रकबे में महज 20 फीसदी बढ़ोतरी हुई, पर उत्पादकता में 129 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। 2012 में उत्पादकता 1095 किलोग्राम प्रति हेक्टेेयर थी, जो 2013 में 2509 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई। रकबे में 20 फीसदी की बढ़ोतरी और उत्पादकता में 129 फीसदी की बढ़ोतरी से धान उत्पादन में 175 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। जिले में 2012 में 43876 मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ था, जबकि 2013 में 120657 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ।
जिले में कृषि आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, पर कृषि के क्षेत्र में नवाचारी प्रयोग एवं आधुनिक तरीकों को अपनाने के प्रति किसान उदासीन रहे हैं। इस वजह से यहाँ फसलों का उत्पादन बहुत बेहतर नहीं हो पाता था। यह आदिवासी बहुल जिला है एवं लोग पारम्परिक जीविकोपार्जन पर ज्यादा आश्रित हैं। यहाँ खेती भी पारम्परिक तरीके से की जा रही थी।
धान यहाँ की प्रमुख फसल है। यहाँ जिला प्रशासन ने आत्मा प्रोजेक्ट के तहत धान की खेती में श्री (एस.आर.आई.) विधि पर जोर दिया। श्री विधि एक आधुनिक तरीका है और इसमें पानी की खपत भी बहुत कम होती है। पहले कुछ कलस्टर में किसानों को प्रोत्साहित किया। परिणाम अच्छा आने के बाद अन्य किसानों को उसके प्रति प्रेरित करना आसान हो गया।
जिला प्रशासन ने अपने स्तर पर अनूठा प्रयोग करते हुए पहली बार श्री रथ अभियान चलाया। इसमें किसान मित्रों की टोली गाँव-गाँव जाकर लोगों को श्री विधि एवं खेती के आधुनिक तरीकों को बतलाई और प्रायोगिक प्रदर्शन के माध्यम से उन्हें वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसके पहले किसान मित्र एवं किसान दीदी का प्रशिक्षण जिले के किसानों को दिया गया था। उनमें से ही युवा किसानों के समूह को इस अभियान के संचालन की जिम्मेदारी दी।
श्री विधि से धान की खेती करने के लिए जरूरी यन्त्र कोनोविडर की उपलब्धता माँग से ज्यादा रखी गई, ताकि माँग बढ़ने पर वह कम नहीं पड़ जाए। साप्ताहिक ग्राम चौपालों पर श्री विधि की चर्चा की गई। इन सबका सकारात्मक असर किसानों पर पड़ा और श्री विधि से खेती का रकबा बढ़ जाने से उत्पादन में ज्यादा बढ़ोतरी हुई। कई जगहों पर किसानों ने श्री विधि को पूरी तरह से नहीं अपनाया, पर उसके कुछ भाग को अपनाया, जिसकी वजह से बहुत ज्यादा नहीं, पर पिछले साल की तुलना में उनका भी उत्पादन बढ़ गया। यह तरीका बहुत ही कारगर रहा है। खेती में बेहतर प्रदर्शन करने पर जिले के कई किसानों को राज्य स्तर पर एवं राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया गया।
जिले में खेती का कुल रकबा 2012 में 83.03 हजार हेक्टेयर था, जो 23 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 2013 में 102.86 हजार हेक्टेयर हो गया। इसमें से धान का का रकबा 2012 में 40.07 हजार हेक्टेयर था, जो 2013 में 20 फीसदी बढ़कर 48.09 हजार हेक्टेयर हो गया। एक साल में धान के रकबे में महज 20 फीसदी बढ़ोतरी हुई, पर उत्पादकता में 129 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। 2012 में उत्पादकता 1095 किलोग्राम प्रति हेक्टेेयर थी, जो 2013 में 2509 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई। रकबे में 20 फीसदी की बढ़ोतरी और उत्पादकता में 129 फीसदी की बढ़ोतरी से धान उत्पादन में 175 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। जिले में 2012 में 43876 मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ था, जबकि 2013 में 120657 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ।