विश्व जल दिवस पर विशेष
एक हजार की आबादी और ढाई सौ परिवार वाले आमेठ में इन दिनों कोई चहल-पहल नहीं दिखती। बारिश के कुछ महीनों में बड़े और बच्चों की चहलकदमियों से गुलजार रहने वाले इस गाँव का जीवन अन्य महीनों में सूख जाता है।
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कराहल तहसील के पर्तवाड़ा पंचायत में पड़ता है आमेठ। यूँ तो मध्य प्रदेश के आधे से ज्यादा इलाके में पानी की कमी रहती है, पर आमेठ उन गाँवों में से एक है, जहाँ पानी की जुगाड़ में लोगों की आधी जिन्दगी गुजर जाती है।
आमेठ की श्रीमती मालती बाई कहती हैं, ‘‘गांव से बाहर लगभग दो किलोमीटर दूर हमें घाटियों से नीचे उतरना पड़ता है, जहाँ झरने से हमें पानी मिलता है। वहाँ एक बार जाने और आने में लगभग 2 घण्टे लग जाते हैं। हमें दिन में दो बार जाना पड़ता है। घाटियों से चढ़ने में कई बार पानी के बर्तन गिर जाते हैं, पाँव फिसल जाने पर चोट लग जाती है वह अलग। वहाँ से एक बार में 20 लीटर ही पानी ला पाती हैं। हमारे घरों में बर्तनों को धोने के बजाय सिर्फ राख से साफ करते हैं। घर के लोग नियमित नहा नहीं पाते। धोने के लिए कपड़े भी हमें वहीं लेकर जाना पड़ता है।’’
यह दुखद स्थिति सिर्फ मालती बाई की नहीं है, बल्कि गाँव में रहने वाली सभी महिलाओं की है। पानी लाने की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं की होती है। दिन का आधा समय उन्हें पानी की जुगाड़ में लगाना पड़ता है।
आमेठ में 254 परिवार हैं, जिनमें 134 परिवार विशेष जनजाति सहरिया आदिवासियों की है। गाँव में 207 परिवार गरीबी रेखा से नीचे के हैं। गाँव की ही एक अन्य बुजुर्ग महिला बताती है कि यहाँ पानी के लिए कई हैण्डपम्प लगाए गए, पर सब खराब हैं। अभी तक इस गाँव में कुल 13 हैण्डपम्प हैं, जिसमें से कोई भी चालू हालत में नहीं है।
गाँव में मौजूद 3 कुओं में कभी पानी नहीं रहता। पास में स्टॉप डेम और बरसाती नाले हैं, पर वे बारिश के बाद किसी काम के नहीं होते। पानी की व्यवस्था के लिए गाँव में 10 बोर भी किए गए, पर उनमें भी पानी नहीं आया। गाँव में स्वच्छता अभियान चलाया गया था, जिसके माध्यम से सौ से ज्यादा घरों में शौचालय बने हुए हैं, पर उनमें से एक का भी उपयोग नहीं हो रहा है। ग्रामीण कहते हैं, जहाँ नहाने और बर्तन धोने तक का पानी नहीं है, वहाँ शौचालय में उपयोग के लिए पानी कहाँ से लाया जाए।
इस क्षेत्र में कार्यरत जलाधिकार अभियान के अनिल गुप्ता बताते हैं, ‘‘इस गाँव के आसपास के गाँवों में पानी है, पर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता एवं ग्रामीणों में जागरूकता के अभाव के कारण यहाँ इस समस्या का निदान नहीं हो पाया। ऐसी स्थिति सिर्फ आमेठ की नहीं है, बल्कि कई गाँवों की है, जहांँ इच्छाशक्ति के अभाव में पानी का इन्तजाम नहीं हो पाया।
यहाँ पानी के लिये पारम्परिक तरीकों को अपनाया गया और हैण्डपम्प, कुएँ एवं बोर कर दिए गए। उनमें पानी नहीं आने पर ग्रामीणों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। पानी की समस्या का समाधान आसपास के पानी के स्रोत से पाइपलाइन के माध्यम से किया जा सकता है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर स्टॉप डेम एवं छोटे तालाबों को बेहतर तरीके से बनाने होंगे।’’
आमेठ में पाँच साल पहले 2009-10 में नल-जल योजना के तहत 5 लाख रुपए की टंकी निर्माण की स्वीकृति मिली थी, पर उस पर काम नहीं हो पाया। दो साल पहले 2013-14 में जलाधिकार अभियान ने पहल कर ग्रामीणों के साथ जिला स्तर पर शिकायत की। जलाधिकार अभियान ने महिलाओं को लामबन्द किया क्योंकि इस समस्या का सबसे ज्यादा प्रभाव उन्हीं पर पड़ रहा है।
2014 में जिला स्तर पर कई आवेदन दिए गए। इसके बाद यहाँ टंकी का निर्माण हुआ, जो कि जनवरी 2015 में पूरा हुआ। टंकी में पानी के लिए 3 किलोमीटर दूर के गाँव शेडपुर का चयन किया गया, जहाँ बोर किया गया है, वहाँ से पाइप लाइन के सहारे आमेठ में पानी लाने का सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया। यह पाइपलाइन 3 जगहों पर लीकेज है। ऐसे में आमेठ की महिलाओं के संघर्ष के दिन अभी खत्म नहीं हुए।
चारों ओर जंगल से घिरे इस क्षेत्र में पानी के लिये संघर्ष करती महिलाएँ बूँद-बूँद पानी का महत्व समझ रही है। उन्होंने तय किया है कि वे अपने बच्चों के साथ एक बार जिला प्रशासन के खिलाफ आन्दोलन करेंगी। वे नहीं चाहती कि जिन परेशानियों से उन्हें जूझना पड़ रहा है, उसे आने वाली पीढ़ियाँ भी जूझती रहे।