अस्तित्त्व के लिये विरोध

Submitted by RuralWater on Mon, 05/04/2015 - 16:11
.जब प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी गंगा के बेहतरीन उपयोग पर दिल्ली में अहम बैठक कर रहे थे, ठीक उसी समय मालवा क्षेत्र के 30 लोग अपने जीवन का सबसे अहम निर्णय लेने जा रहे थे। इस बात को तीन हफ्ते हो रहे हैं।

मध्य प्रदेश के घोघल गाँव में गले भर पानी में खड़े इन 30 लोगों के पैरों से खून रिसने लगा है। पैरों और पेट की चमड़ी गलने के कगार पर आ गई है और पैरों की उँगलियों का बड़ा हिस्सा मछलियों को शिकार हो चुका है। ये आदिवासी मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर बाँध की ऊँचाई 189 मीटर से 191 मीटर करने के विरोध कर रहे हैं।

आन्दोलन की जगह पर एक गाना गूँज रहा है-

‘शिवराज ने करी मनमानी, घोघल गाँव में भर दिया पानी,
आश्वासन दिया वादा झूठा किया, किसान की बात न मानी।’


लगातार गाया जाने वाला ये गाना राज्य सरकार को परेशान कर रहा है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन के बैनर तले हो रहे इस विरोध प्रदर्शन को राज्य सरकार ने नौटंकी करार दिया है और केन्द्र ने भी इस तथ्य पर सहमति दिखाई है कि बाँध की ऊँचाई बढ़ने से कोई नहीं डूबेगा। अपनी बात को साबित करने के लिये 15 अप्रैल को मध्य प्रदेश सरकार ने एक हवाई विडियोग्राफी भी की है जिसमें नर्मदा में खड़े ये लोग कहीं नजर नहीं आ रहे।

जब बड़ी तस्वीर दिखाने के लिये आसमान में ज्यादा ऊपर जाते हैं तो ज़मीन की वास्तविकता नजर नहीं आती। नर्मदा बचाओ आन्दोलन का दावा है कि पुनर्वास के सवाल और प्रभावितों से मामला सुलझाए बगैर इस क्षेत्र को डुबाना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। सरकार का दावा है कि बाँध में पानी बढ़ने से किसानों को फायदा होगा और साथ ही ओंकारेश्वर हाइडल प्रोजेक्ट की क्षमता बढ़ेगी।

राज्य सरकार के नर्मदा घाटी विकास राज्यमन्त्री लाल सिंह आर्य ने तो यहाँ तक कह दिया कि जलाशय का स्तर बढ़ने से कोई भी घर, गाँव या आबादी डूब में नहीं आएगी। सरकार ने पुनर्वास नीति में उपलब्ध भौतिक और आर्थिक सुविधाओं के अतिरिक्त 225 करोड़ का विशेष पैकेज डूब प्रभावित परिवारों को दिया है लेकिन विरोध कर रहे लोगों का तर्क ज्यादा सटीक मालूम होता है कि हमारी ज़मीन ली जा रही है इसलिये बदले में ज़मीन दी जाए।

यहीं पर भोपाल से लेकर दिल्ली तक की तमाम सरकार मात खा जाती है क्योंकि ज़मीन बेशकीमती है। भूमि अधिग्रहण किसी भी उद्देश्य के लिये क्यों ना हो, ज़मीन के बदले ज़मीन कैसे दी जा सकती है? हालांकी सरकार का दावा है जिन्होंने ज़मीन माँगी थी उन्हें ज़मीन दिखाई गई लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया।

मध्य प्रदेश के घोघल गाँव में गले भर पानी में तीन हफ्ते से खड़े आदिवासियों के पैरों से खून रिसने लगे हैं। पैरों और पेट की चमड़ी गलने लगी है और पैरों की उंगलियों का बड़ा हिस्सा मछलियों का शिकार हो चुका है। ये आदिवासी मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन के बैनर तले हो रहे इस विरोध को राज्य सरकार ने नौटंकी करार दिया है और केन्द्र ने भी इस तथ्य पर सहमति दिखाई है कि बाँध की ऊँचाई बढ़ने से कोई नहीं डूबेगा। लेकिन आदिवासी इस बात से सहमत नहीं है।ज़मीन के इस खेल को तिरोले की कहानी से समझा जा सकता है। ज़मीन के बदले ज़मीन के लिये घोघल गाँव के राधेश्याम तिरोले ने साहूकारों से कर्ज कर 1.72 लाख रुपए जुटाए थे। अक्टूबर 2012 में उन्होंने यह राशि जीआरए के निर्देश पर एनएचडीसी में जमा करा दी, इसके बाद एनएचडीसी के अधिकारियों ने अतिक्रमित और पथरीली ज़मीन दिखाई। कर्ज का ब्याज अब तक डेढ़ लाख रुपए पर पहुँच गया है। साहूकार आए दिन तकादे के लिये घर पहुँच जाता है। तिरोले कहते हैं अब या तो अधिकार मिले या मौत।

इस बीच एक और विकासपरक तस्वीर देखने को मिली। इस तस्वीर में सरकारों द्वारा नदियों को देखने वाली नई नजर की झलक मिल जाएगी। मुख्यमन्त्री शिवराज चौहान ने ठीकरी के पास झिलन्या ग्राम में इन्दिरा सागर की मुख्य नहर में 31 मीटर की चुनरी चढ़ाई। इससे पहले चुनरी नदी पर चढ़ाने का चलन था।

नर्मदा ने बहना बन्द किया और नहरे लबालब भरने लगी तो कृतज्ञता की चुनरी भी नहरों की नजर हो गई। इसे राजनीति कहिए या संयोग या समाज और नदियों का बदलता रिश्ता। खरगोन जिले के कसरावद के विधायक सचिन यादव मुख्यमन्त्री के साथ चुनरी चढ़ा रहे थे और उसी समय उनके भाई अरुण यादव नर्मदा में खड़े होकर विरोध कर रहे थे ताकि नदी बहती रहे।

जल सत्याग्रहकरीब-करीब उसी समय ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधिमण्डल गंगा संरक्षण मन्त्री से मिलकर गंगा पर अपना योगदान देने की बात कर रहा है। ये नया विदेशी चलन है इण्डिया जाइए तो गंगा पर योगदान देने का ऑफर जरूर दीजिए। इजराइल, जर्मनी, फ्रांस, यहाँ तक की सऊदी अरब जहाँ कोई नदी ही नहीं है, इस तरह का प्रस्ताव दे चुका है। विदेशी शासन को पता है भारत में एंट्री कैसे मिलेगी। इस बीच बार-बार बेवजह के सर्वे से परेशान गाँव के लोगों ने मुहाने पर ही बोर्ड लगा दिया है- घोघल गाँव और टोंकी में बिना अनुमति प्रवेश ना करें।