आपको भी यह जानकर आश्चर्य होगा कि किस प्रकार टोरनी गांव भूख,प्यास,गरीबी और बेकारी के दलदल से बाहर निकलते हुए समृद्धि और खुशहाली की ओर अग्रसर हो रहा है और आज हम सभी के लिए एक आदर्श गाँव के रूप में उभर रहा है। यहां पानी का सही प्रबंधन किया जाता है। यहां पानी की उपलब्धता के साथ-साथ फसलों की भी चौगुनी पैदावार हो गई है और यहां से पलायन कर गए लोग वापस लौट आए हैं। टोरनी गांव खंडवा से 28 किलोमीटर की दूरी पर खंडवा- इंदौर राजमार्ग पर एक आदिवासी बहुल गांव है।
सन् 2001 में इस क्षेत्र में ‘संम्पूर्ण जल प्रबंधन’ के सिद्धांत पर एक व्यवहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें वर्षा जल संग्रहण ढांचों और जल बजट के संबंध में जानकारी दी गई। इसी बीच टोरनी गांव को सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम के तहत स्थानीय जल पंढाल विकास के लिए चुना गया। इस कार्यक्रम के तहत 1,000 हेक्टेयर की जमीन के विकास के लिए 60 लाख रुपये मिले। इस समय तक यहां कुएं, चापाकल, ट्यूबवेल इत्यादि सूखे रहते थे और भूजल का स्तर नीचे सरकता जा रहा था। यह क्षेत्र पहाड़ी और ढालू होने और ऊपर से पेड़-पौधों की कमी होने के कारण यहां बरसने वाला पानी बड़ी तेजी से बह जाता था।
इस गांव में समुदाय का सहयोग जुटाने के लिए यहां जल-पंढाल प्रबंधन के संबंध में जागरूकता जगाने के कार्यक्रम आयोजित हुए। काम की शुरुआत में टोरनी के निकट एक छोटी पहाड़ी में सुधार किया गया। यह कार्यक्रम पानी के समुचित प्रबंधन पर आधारित था और इसके तहत सभी कुओं में पानी लाना था। इसके काफी चौंका देने वाले परिणाम सामने आए। बारिश की पहली बौछार के बाद इसके आसपास के कुओं का पानी बढ़ने लगा। नाले का पानी भी स्कूल की तरफ जाना बंद हो गया, जो पहले एक स्थाई समस्या बनी हुई थी। इस सफलता से ग्रामवासियों में खुशी की लहर फैल गई और वे पूरे जोश और उत्साह से बड़े स्तर पर जल पंढाल विकास के काम में जुट गए।
इस जलपंढाल कार्यक्रम के तहत गांव में कार्य समूह बने और सहभागी ग्रामीण अवलोकन (पीआरए) के आधार पर एक विस्तृत कार्य योजना बनकर तैयार हुई।
इसके काम में खेत बंधा, कंटूर बंधा, खेत कुंडी, कच्चे बंधा, पक्के बंधा, बोरी बंधा के अनेकों ढांचे बनकर तैयार हुए, साथ ही वृक्षारोपण,चारागाह विकास, बागवानी, मछलीपालन, जड़ी- बूटी और प्राकृतिक खेती का भी काम बढ़ने लगा।
इस वर्ष की बारिश के बाद अच्छी फसल हुई, जिससे इसके समानान्तर रोजगार के नए- नए अवसर खड़े होने लगे। इन जल संग्रहण ढांचों को इस तरह से गढ़ा गया है कि जिससे इस क्षेत्र का समूचा पानी बाहर बहने से पहले ही धरती में समा जाता है या रोक लिया जाता है। गाँव वालों ने 200 हेक्टेयर भूमि में गेहूं उगाया, जिसका इस वर्ष उत्पादन चार गुणा बढ़ गया है। आज यहां बैलगाड़ियों तथा अन्य पशुओं को खरीदा जाने लगा है।
यहां के एक प्रवक्ता का कहना था कि “अभी हमारे जल पंढाल विकास कार्यक्रम का एक चौथाई काम ही पूरा हुआ है और यह हमारा पहला वर्ष है, लेकिन इसी वर्ष में हमारी जैसे तकदीर ही बदल गई है, क्योंकि हमने वर्षाजल संग्रहण करने का स्थाई समाधान तलाश लिया है।“
स्रोत : अज्ञात, 2002, टोग्नी : ए मॉडलऑफ टोटल वॉटर मैनेजमेंट, मध्य प्रदेश शासन, जिला पंचायत, खंडवा, मध्य प्रदेश
सन् 2001 में इस क्षेत्र में ‘संम्पूर्ण जल प्रबंधन’ के सिद्धांत पर एक व्यवहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें वर्षा जल संग्रहण ढांचों और जल बजट के संबंध में जानकारी दी गई। इसी बीच टोरनी गांव को सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम के तहत स्थानीय जल पंढाल विकास के लिए चुना गया। इस कार्यक्रम के तहत 1,000 हेक्टेयर की जमीन के विकास के लिए 60 लाख रुपये मिले। इस समय तक यहां कुएं, चापाकल, ट्यूबवेल इत्यादि सूखे रहते थे और भूजल का स्तर नीचे सरकता जा रहा था। यह क्षेत्र पहाड़ी और ढालू होने और ऊपर से पेड़-पौधों की कमी होने के कारण यहां बरसने वाला पानी बड़ी तेजी से बह जाता था।
इस गांव में समुदाय का सहयोग जुटाने के लिए यहां जल-पंढाल प्रबंधन के संबंध में जागरूकता जगाने के कार्यक्रम आयोजित हुए। काम की शुरुआत में टोरनी के निकट एक छोटी पहाड़ी में सुधार किया गया। यह कार्यक्रम पानी के समुचित प्रबंधन पर आधारित था और इसके तहत सभी कुओं में पानी लाना था। इसके काफी चौंका देने वाले परिणाम सामने आए। बारिश की पहली बौछार के बाद इसके आसपास के कुओं का पानी बढ़ने लगा। नाले का पानी भी स्कूल की तरफ जाना बंद हो गया, जो पहले एक स्थाई समस्या बनी हुई थी। इस सफलता से ग्रामवासियों में खुशी की लहर फैल गई और वे पूरे जोश और उत्साह से बड़े स्तर पर जल पंढाल विकास के काम में जुट गए।
इस जलपंढाल कार्यक्रम के तहत गांव में कार्य समूह बने और सहभागी ग्रामीण अवलोकन (पीआरए) के आधार पर एक विस्तृत कार्य योजना बनकर तैयार हुई।
इसके काम में खेत बंधा, कंटूर बंधा, खेत कुंडी, कच्चे बंधा, पक्के बंधा, बोरी बंधा के अनेकों ढांचे बनकर तैयार हुए, साथ ही वृक्षारोपण,चारागाह विकास, बागवानी, मछलीपालन, जड़ी- बूटी और प्राकृतिक खेती का भी काम बढ़ने लगा।
इस वर्ष की बारिश के बाद अच्छी फसल हुई, जिससे इसके समानान्तर रोजगार के नए- नए अवसर खड़े होने लगे। इन जल संग्रहण ढांचों को इस तरह से गढ़ा गया है कि जिससे इस क्षेत्र का समूचा पानी बाहर बहने से पहले ही धरती में समा जाता है या रोक लिया जाता है। गाँव वालों ने 200 हेक्टेयर भूमि में गेहूं उगाया, जिसका इस वर्ष उत्पादन चार गुणा बढ़ गया है। आज यहां बैलगाड़ियों तथा अन्य पशुओं को खरीदा जाने लगा है।
यहां के एक प्रवक्ता का कहना था कि “अभी हमारे जल पंढाल विकास कार्यक्रम का एक चौथाई काम ही पूरा हुआ है और यह हमारा पहला वर्ष है, लेकिन इसी वर्ष में हमारी जैसे तकदीर ही बदल गई है, क्योंकि हमने वर्षाजल संग्रहण करने का स्थाई समाधान तलाश लिया है।“
स्रोत : अज्ञात, 2002, टोग्नी : ए मॉडलऑफ टोटल वॉटर मैनेजमेंट, मध्य प्रदेश शासन, जिला पंचायत, खंडवा, मध्य प्रदेश