मध्य प्रदेश में उज्जैन से 70 किलोमीटर की दूरी पर बालोदा लाखा नामक एक गांव है, जहां के ग्रामवासियों ने अपने गांव में पानी की समस्या खुद दूर कर ली है। गांववालों ने इसके लिए सामुदायिक जल प्रबंधन के दृष्टिकोण से काम करना शुरु किया, जिससे इस गांव में रौनक छा गई है।
पिछले दो वर्षों से इस गांव में कृषि तथा पशुपालन से जुड़े कामों में काफी गिरावट आ रही थी। जबकि पहले कभी यही गांव मुम्बई शहर में मिठाई के लिए प्रतिदिन 200 किलो तक खोया बेचने के लिए प्रसिद्ध था। इस गिरावट के पीछे एक बड़ा कारण पानी की कमी है। ऐसी विपरीत परिस्थिति में गांववाले अपने गांव में जल संरक्षण की पहल करने के लिए उत्प्रेरित हुए।
ग्राम प्रबंधन समिति के अध्यक्ष अर्जुन सिंह राठौर ने बताया कि मध्य प्रदेश के कालवा क्षेत्र में करीब ऐसे 1,200 गांव हैं, जहां सबसे ज्यादा ट्यूबवेल लगे हैं। इस गांव की करीब आठ लाख हेक्टेयर की जमीन में लगभग एक लाख ट्यूबवेल लगे हैं। भूजल के अतिदोहन के कारण गांव वालों को इसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। पानी के अतिदोहन से भूजल का स्तर नीचे सरक गया है। पिछले दो वर्षों की न्यूनतम वर्षा के कारण स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ गई है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा `पानी रोको´ अभियान चलाया जा रहा है, जिससे पानी के विकेन्द्रित प्रबंधन का चलन बढ़े। फिर भी इस गांव में जल संग्रहण के प्रचलन का मुख्य रूप से श्रेय अमर सिंह परमार को ही जाता है, जो मालवा क्षेत्र के मृदा और जल संरक्षण अधिकारी हैं। इन्होंने अपने सहकर्मियों से इस गांव में आदर्श तालाब बनाने के लिए योगदान करने को प्रेरित किया (लोगों ने कुल 50,000 रुपए का योगदान दिया)।
शुरुआत में समिति ने इस तालाब के निर्माण के स्थल का चुनाव किया। इसके लिए गांव के समुदाय से ही सारा पैसा जुटाया गया, जिनमें 500 रुपए से लेकर 33,000 रुपए तक का योगदान प्राप्त हुआ। इस तालाब का निर्माण निचले स्थल में किया गया। इसके तहत जो उपाय किए गए, वे हैं -पुराने तालाबों की गाद साफ करना, नए तालाबों का निर्माण करने के लिए किसानों के नीचे की जमीन साफ करना, पुराने कुओं की मरम्मत करना और कुएं के पुनर्भरण की तकनीक का उपयोग करना। मजे की बात तो यह है कि यहां के समृद्ध किसानों ने गांव के चारों तरफ की जमीन पर और अपने खेतों के किनारे-किनारे तालाबों का निर्माण किया ताकि पड़ोसी किसान (जिन्होंने इसके निर्माण में अपना श्रमदान दिया है) और इस गांव के अन्य किसान भी इस प्रयास का फायदा पा सकें। इन हस्तक्षेपों के फलस्वरूप इस गांव के भूजल स्तर में काफी सुधार आया है।
यह काम जो 2001 से ‘शुरु हुआ था, वह आज सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। इस गांव के 250 सूखे कुओं में से सात कुओं को फिर से पुनर्जीवित कर दिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : विचित्र शर्मा ई-मेल : vichitras@vsnl.net
पिछले दो वर्षों से इस गांव में कृषि तथा पशुपालन से जुड़े कामों में काफी गिरावट आ रही थी। जबकि पहले कभी यही गांव मुम्बई शहर में मिठाई के लिए प्रतिदिन 200 किलो तक खोया बेचने के लिए प्रसिद्ध था। इस गिरावट के पीछे एक बड़ा कारण पानी की कमी है। ऐसी विपरीत परिस्थिति में गांववाले अपने गांव में जल संरक्षण की पहल करने के लिए उत्प्रेरित हुए।
ग्राम प्रबंधन समिति के अध्यक्ष अर्जुन सिंह राठौर ने बताया कि मध्य प्रदेश के कालवा क्षेत्र में करीब ऐसे 1,200 गांव हैं, जहां सबसे ज्यादा ट्यूबवेल लगे हैं। इस गांव की करीब आठ लाख हेक्टेयर की जमीन में लगभग एक लाख ट्यूबवेल लगे हैं। भूजल के अतिदोहन के कारण गांव वालों को इसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। पानी के अतिदोहन से भूजल का स्तर नीचे सरक गया है। पिछले दो वर्षों की न्यूनतम वर्षा के कारण स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ गई है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा `पानी रोको´ अभियान चलाया जा रहा है, जिससे पानी के विकेन्द्रित प्रबंधन का चलन बढ़े। फिर भी इस गांव में जल संग्रहण के प्रचलन का मुख्य रूप से श्रेय अमर सिंह परमार को ही जाता है, जो मालवा क्षेत्र के मृदा और जल संरक्षण अधिकारी हैं। इन्होंने अपने सहकर्मियों से इस गांव में आदर्श तालाब बनाने के लिए योगदान करने को प्रेरित किया (लोगों ने कुल 50,000 रुपए का योगदान दिया)।
शुरुआत में समिति ने इस तालाब के निर्माण के स्थल का चुनाव किया। इसके लिए गांव के समुदाय से ही सारा पैसा जुटाया गया, जिनमें 500 रुपए से लेकर 33,000 रुपए तक का योगदान प्राप्त हुआ। इस तालाब का निर्माण निचले स्थल में किया गया। इसके तहत जो उपाय किए गए, वे हैं -पुराने तालाबों की गाद साफ करना, नए तालाबों का निर्माण करने के लिए किसानों के नीचे की जमीन साफ करना, पुराने कुओं की मरम्मत करना और कुएं के पुनर्भरण की तकनीक का उपयोग करना। मजे की बात तो यह है कि यहां के समृद्ध किसानों ने गांव के चारों तरफ की जमीन पर और अपने खेतों के किनारे-किनारे तालाबों का निर्माण किया ताकि पड़ोसी किसान (जिन्होंने इसके निर्माण में अपना श्रमदान दिया है) और इस गांव के अन्य किसान भी इस प्रयास का फायदा पा सकें। इन हस्तक्षेपों के फलस्वरूप इस गांव के भूजल स्तर में काफी सुधार आया है।
यह काम जो 2001 से ‘शुरु हुआ था, वह आज सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। इस गांव के 250 सूखे कुओं में से सात कुओं को फिर से पुनर्जीवित कर दिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : विचित्र शर्मा ई-मेल : vichitras@vsnl.net