पाँच प्रतिशत मॉडल

Submitted by Hindi on Thu, 12/31/2009 - 18:10

भारतवर्ष में सिर्फ 32 प्रतिशत कृषि जमीन सिंचित कोटि में है और बाकी 68 प्रतिशत जमीन शुष्क/बारानी अथवा वर्षा पर निर्भर खेती के अंतर्गत आती है। अत: अगर वर्षा पर निर्भर खेतों में जल संग्रहण का प्रयास किया जाए तो इस जमीन से काफी कृषि का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसी सोच के तहत मध्य प्रदेश के ऊबड़-खाबड़ और ढालू जमीन में खेती के लिए जल संग्रहण के लिए एक विधि का इस्तेमाल हो रहा है, जिसे पाँच प्रतिशत के मॉडल के नाम से जाना जाता है।

इस तकनीक के तहत खेत के ढाल वाले कोने के 5 प्रतिशत हिस्से में 0.50 मीटर से लेकर 1.0 मीटर गहरा गड्ढा खोदा जाता है। इससे निकली मिट्टी से गड्ढे के चारों तरफ मेड़ बनाई जाती है और इसके निचले हिस्से में ज्यादा ऊँची मेड़ बनाई जाती है। इसमें पानी के आने और जाने वाले स्थान को छोड़ दिया जाता है।

यह तकनीक निम्नांकित खेतों के लिए ज्यादा उपयुक्त है। • जहां कम से कम 6 इंच से 1 फुट की गहराई तक मिट्टी हो। • बर्रो अथवा ऊँचे खेतों के लिए • अधिक ढालू जमीनों के लिए • धान के उन खेतों में जहां वर्षा के उपरांत सूखा पड़ता हो।

छोटे खेत होने पर दो खेतों को जोड़ते हुए एक सार्वजनिक गड्ढा बनाया जा सकता है। सामान्यत: प्रत्येक 10 एकड़ के क्षेत्र में वर्षाजल संरक्षण के लिए एक गड्ढा बनाया जाना चाहिए। समुचित वर्षाजल का संग्रहण के लिए वर्षा की मात्रा के आधार पर गड्डे का क्षेत्रफल बढ़ाया-घटाया जा सकता हैं ।
 

इस मॉडल का क्रियान्वयन

• पूरे खेत की लम्बाई और चौड़ाई माप लें, अगर खेत छोटा-बड़ा या आड़ा-तिरछा हो तो औसत लम्बाई और चौड़ाई मापें। • इसकी लम्बाई के पांचवे हिस्से और चौड़ाई के चौथे हिस्से की माप लें। • सम्मिलित खेतों में गड्ढा खोदने के लिए ऐसे स्थल का चुनाव करें, जहां ज्यादा से ज्यादा पानी एकत्रित होता हो और जहां से खेत के अन्य भागों में आसानी से पानी पहुंच सकता हो। • अगर खेत त्रिकोण हो तो इसके क्षेत्रफल का 5 प्रतिशत में गड्ढा खोदना चाहिए। इसके गड्ढे की गहराई कम अथवा अधिक हो सकती है, जो कि उस स्थान विशेष की मिट्टी की गहराई और उस गड्ढे में संग्रहित पानी के उपयोग पर निर्भर करेगी।

गड्ढा खोदने में कठिनाई होने पर प्रत्येक 1 फुट खोदने के बाद 1 फुट की पट्टी छोड़ दें और फिर आगे गड्ढा खोदें, जिससे इसकी सीढ़ियां बनती जाएंगी और साथ ही उचित ढाल भी बनता जाएगा। इसके अलावा इस गड्ढे में जल निकास का भी प्रावधान होना चाहिए, जिसके लिए पक्की कच्ची संरचनाओं का निर्माण किया जा सकता है।

प्रत्येक बरसात के पहले और बरसात के दौरान मेड़ों की मरम्मत कर लेना उचित होगा। मेड़ों को कटने से बचाने के लिए इस पर शाक, झाड़ी या घास उगाना चाहिएं बेहतर होगा कि इस पर साग, फलदार पौधे, झाड़ लगाए जाएं, ताकि फसल के साथ-साथ इससे कम समय और मेहनत से धनोपार्जन भी होता रहे।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: सुनील कुमार विश्वकर्मा दीपक हरि रानड़े, ललित जैन एवं अरविंद सिंह तोमर, ‘शुष्क खेती परियोजना कृषि महाविद्यालय, इन्दौर मध्य प्रदेश