बाढ़-कुछ त्रिपदियां

Submitted by birendrakrgupta on Sat, 07/26/2014 - 07:24
Source
नया ज्ञानोदय, अंक 136, जून 2014
एक कई नदियों ने मिल-जुलकर
फिर से रच डाला है एक समन्दर
आदमी नहीं है पर जलचर।

दो
नदियां देन हैं प्रकृति की
बाढ़ नहीं, इसे तो रचा गया है
आपकी व्यूढ़ हिंसा इच्छाओं द्वारा।

तीन
पानी के साथ हमें जीना
आता था, यह तो आपने कर
दियाहै जीना मुहाल पानी का।
चार
किसने रोकी है किसकी राह
नदियों ने हमारी या हमने नदियों
कीया आपने हम दोनों की?

पांच
आप आ गये नदी के
रास्ते में, तभी तो नदी आ गयी
हमारे घर और आंगन में।
बाढ़ में घिरे हुए लोग
मृत्यु से नहीं डरते, मौत से बड़ी
हो जाती है तब भूख।

(‘दूर तक चुप्पी’ से साभार)
सुपरिचित प्रगतिशील कवि व आलोचक