बिहार देश के उन गिने चुने राज्यों में है जहाँ वन क्षेत्र बहुत कम है। सबसे कम वन क्षेत्र वाले 10 राज्यों की फेहरिस्त बनाई जाये, तो बिहार उनमें शामिल होगा।
इसके बावजूद बिहार सरकार बचे हुए वन क्षेत्र को सुरक्षित-संरक्षित रख नहीं पा रही है।
हाल ही में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत वन क्षेत्र को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में बताया गया है कि राज्य के वन क्षेत्र का तेजी से अतिक्रमण हो रहा है।
आरटीआई के अन्तर्गत मिले जवाब में नालंदा व कैमूर जिले के वन क्षेत्र के बारे में जानकारी दी गई है। सरकार ने बताया है कि कैमूर में 352.419 एकड़ वन क्षेत्र और बिहारशरीफ के 1.30 हेक्टेयर वन क्षेत्र का अतिक्रमण कर लिया गया है।
आरटीआई दायर करने वाले समाजसेवी विकासचंद्र गुड्डू बाबा ने कहा, ‘हमने पूरे बिहार के वन क्षेत्रों के बारे में जानकारी माँगी है, लेकिन अब तक बिहारशरीफ व कैमूर के बारे में ही जानकारी उपलब्ध कराई गई है। इन दोनों जगहों पर वनों के अतिक्रमण की स्थिति देखकर यह यकीन पुख्ता हो रहा है कि दूसरी जगहों पर भी वनों पर कब्जा कर लिया गया होगा। हमने माँग की है कि एक कमेटी बनाकर पूरे राज्य के वन क्षेत्रों के बारे में तथ्य दिये जाएँ।’
केन्द्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया के वर्ष 2015 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 21.34 प्रतिशत भूखंड यानी 701673 वर्ग किलोमीटर पर वन है। वर्ष 2013 में वन क्षेत्र 697898 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था, जिसमें दो वर्षों में बढ़ोत्तरी हुई है।
वर्ष 2015 के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के मिजोरम में सबसे अधिक 88.93 प्रतिशत भूखण्ड में वन है। वहीं उत्तर प्रदेश में भौगोलिक क्षेत्र के महज 6 प्रतिशत हिस्से में ही वन है। सर्वे यह भी बताता है कि देश के महज 15 राज्यों में ही वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से अधिक हैं।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया के रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार का भौगोलिक क्षेत्रफल करीब 94163 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इनमें से 7.74 प्रतिशत हिस्से यानी 7288 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही वन है।
वर्ष 2013 में हुए सर्वेक्षण में बताया गया था कि बिहार में वन क्षेत्र का क्षेत्रफल 7291 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। दोनों वर्षों की सर्वेक्षण रिपोर्ट से साबित होती है कि वर्ष 2013 से 2015 के बीच यानी दो सालों वन क्षेत्र के 3 वर्ग किलोमीटर के हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है।
हालांकि, वर्ष 2011 के सर्वेक्षण में 6473 वर्ग किलोमीटर में ही वन क्षेत्र था जिसमें वर्ष 2013 में 818 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी हुई। इसके पीछे मुख्य वजह यह रही कि राज्य सरकार की तरफ से भारी संख्या में पौधारोपण किया गया।
बिहार के पड़ोसी राज्य झारखण्ड में भौगोलिक क्षेत्र के 29.45 प्रतिशत हिस्से में वन है। वहीं, राजधानी दिल्ली में 12.73 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र में आता है।
गुजरात की बात करें, तो यहाँ बिहार से भी कम वन है। यहाँ वन क्षेत्र का प्रतिशत 7.48 प्रतिशत है। हरियाणा में महज 3.58 प्रतिशत हिस्से में ही जंगल है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया के अधिकारियों ने बताया कि एनआरसीएस की मदद से अक्टूबर से जनवरी के बीच क्लाउड फ्री सेटेलाइट डेटा, पिछले वर्षों के तथ्यों व अन्य डेटा की मदद से वन क्षेत्र का निर्धारण किया जाता है।
पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें, तो लोग साफ आबोहवा में साँस ले सकें, इसके लिये वन क्षेत्र बहुत जरूरी है। पेड़ पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा नहीं रहता है। वनों की कटाई कर दी जाये, तो कार्बन वायुमण्डल को प्रदूषित करेगा। यूएस एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार वातावरण में 17 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड फैलने का कारण वनों की कटाई है।
वन न केवल कार्बन को सोखता है बल्कि यह भूस्खलन भी रोकता है। पेड़ों की जड़ें जमीन की गहराई में जाकर मिट्टी का कटाव रोकती हैं। यही नहीं वनों की कटाई से वहाँ रहने वाले जीव-जन्तुओं के अस्तित्व पर खतरा मँडराने लगता है और साथ ही इससे जैवविविधता को भी नुकसान पहुँचता है। वन बारिश के पानी को जाया होने से भी रोकता है।
विकासचंद्र गुड्डू बाबा ने कहा, ‘किसी भी राज्य के लिये वन क्षेत्र भूमि का अतिक्रमण होना पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से अक्षम्य अपराध की श्रेणी में माना जा सकता है।’ एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग के तहत पूरा विश्व वन क्षेत्र व पेड़-पौधों को बचाने में लगा है। वहीं, बिहार में वन क्षेत्रों के अतिक्रमण पर राज्य सरकार के सम्बन्धित उच्चाधिकारियों-कर्मियों की उदासीनता स्पष्ट तौर पर दिख रही है।
गुड्डू बाबा ने इस मामले को लेकर पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की है। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से 4 सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा है कि आखिर कितने वनों पर अतिक्रमण किया गया है।
गुड्डू बाबा बताते हैं, ‘बिहार में स्कूल, कॉलेजों से लेकर अस्पतालों तक की जमीन पर कब्जा किया गया है। आरटीआई के तहत इनका खुलासा हुआ, तो मुझे लगा कि निश्चित तौर पर वन क्षेत्र पर अतिक्रमण हुआ होगा। इसके बाद ही मैंने आरटीआई कर राज्य के वन क्षेत्रों के बारे में जानकारी माँगी।’
हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि वनों पर अधिकांश अतिक्रमण खेती के लिये किया गया है और वहाँ अब लोग झोपड़ियाँ बनाकर रहने लगे हैं। यही नहीं, वहाँ पेड़ों की भी बेतहाशा कटाई हुई है।
यहाँ यह भी बता दें कि बिहार सरकार ने बिहार में ग्रीन कवर बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिये वर्ष 2012 में ही बिहार सरकार ने हरियाली मिशन शुरू किया था, जिसके तहत 24 करोड़ पौधे लगाने थे।
पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया था कि 24 करोड़ में से 17 करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं और वर्ष 2017 तक ग्रीन कवर 15 प्रतिशत तक कर दिया जाएगा।
बिहार के वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक डीके शुक्ला ने कहा कि फॉरेस्ट लैंड और ग्रीन कवर में फर्क है। बिहार में 12.88 प्रतिशत ग्रीन कवर है।विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन बढ़ाने के साथ ही वन क्षेत्र से अतिक्रमण भी हटाना होगा, तभी यह फायदेमन्द होगा। हालांकि पूरे मामले का एक पहलू यह भी है कि राज्य की एक आबादी की आजीविका वनों पर निर्भर है। ऐसे में बिहार सरकार को ऐसी योजना बनाने की भी जरूरत है कि वनों को नुकसान पहुँचाए बिना यह आबादी अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।
वैसे, वनों को अतिक्रमणकारियों से मुक्त रखने के लिये कई तरह के कानून हैं जिनमें फॉरेस्ट एक्ट 1980 व इण्डियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 प्रमुख हैं। इन अधिनियमों के तहत वन का अतिक्रमण करने वालों को सलाखों के पीछे लाया जा सकता है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में बिहार में वन अधिनियम के तहत महज 4 मामले दर्ज किये गए और इन मामलों में 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया। बिहार में घटते वन क्षेत्र के बीच इतने कम मामलों का दर्ज होना इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि बिहार सरकार को वनों की कोई फिक्र नहीं है।
यहाँ यह भी बता दें कि वर्ष 2015 में देश भर में वन अधिनियम के अन्तर्गत 3927 मामले दर्ज किये थे।
बहरहाल, अब देखना यह है कि हाईकोर्ट में राज्य सरकार कारण बताओ नोटिस का क्या जवाब देती है और इस नोटिस पर हाईकोर्ट क्या आदेश देती है।
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