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भारत में जल सुरक्षा की चुनौतियों को सामने रखें, तो कई बिंदु जरूरत बनकर सामने उभरते हैं। भारत में इनके बगैर जल सुरक्षा का प्रश्न हल होता दिखाई नहीं देता। जरूरी है कि हम इन जरूरतों को जरूरी मानकर व्यवहार में लाने की प्रक्रिया शुरू करें:
1. जरूरी है कि हम नदियों को जोड़ने के काम को प्राथमिकता पर लेने के बजाय, समाज और सरकार को भारतीय जल संस्कृति और संस्कारों से जोड़ने के काम को अपनी प्राथमिकता बनाए।
2. इक्वाडोर और न्यूजीलैंड ने नदियों को प्राकृतिक व्यक्ति का दर्जा दिया है। जरूरी है कि स्वयं को राष्ट्रवादी कहने वाले दल की सरकार। इससे आगे बढ़े और नदियों के मातृत्व को संवैधानिक दर्जा करे।
3. 20-40 किलोमीटर जैसी छोटी धाराओं के पुनरोद्धार के काम को प्राथमिकता पर लिया जाए। छोटी नदियों में पानी टिकेगा, तो बड़ी नदियों और भूजल की सांस स्वतः लौट आएगी। नदी जलग्रहण क्षेत्र की योजना बनाकर यह किया जा सकता है।
4. नदी के तल को छीलकर नदियों को गहरा करना, नदी पुनरोद्धार का तरीका सब नदियों पर लागू करना खतरनाक है। स्थानीय स्तर प्रत्येक छोटी नदी के पुनरोद्धार की अलग योजना बननी चाहिए। योजना और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी ग्रामपंचायतों की बजाय, ग्रामसभाओं को सौंपी जाए। सफलता से जिम्मेदारी निभाने वालों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत करने की योजना बने।
5. ताजा पानी नदियों और गंदे पानी को शोधन के पश्चात पुर्नोपयोग के लिए नहरों में छोड़ा जाना चाहिए। अभी चित्र उल्टा है। ताजा जल नहरों में और गंदा पानी नदियों में छोड़ा जा रहा है। इस चित्र को उलटने की जरूरत है।
6. देश को एक बांध नीति और एक नदी नीति जरूरत है।
7. भारत, मौजूदा गंदे पानी की निकासी तथा सफाई करने में सक्षम साबित नहीं हो रहा। सोचिए, यदि घर-घर शौचालय बन गए तो देश की नदियों और तालाबों का क्या हाल होगा? बेहतर होगा कि सरकार इस सपने को उन शहरीकृत ग्रामों में पूरा करे, जहां इसके बिना वाकई दिक्कत है।
8. आवश्यक है कि लोगों के साथ मिलकर केंद्र शासन प्रत्येक इलाके का जल मानचित्र तैयार करे; जलस्रोतों की भूमि का चिन्हीकरण करे और उससे सार्वजनिक करे। इसके लिए प्रशासनिक सीमाओं की बजाय भूसांस्कृतिक सीमाओं को आधार बनाया जाए। भूवैज्ञानिकों तथा स्थानीय स्तर पर कॉलेजों के भूगोल विभाग के छात्रों तथा अध्यापकों को एक परियोजना के रूप में सौंपकर भी यह किया जा सकता है। यह आवश्यक कार्य है; किया ही जाना चाहिए।
9. पंचायत, मोहल्ला तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के स्तर पर वार्षिक जलयोजना को अनिवार्य वार्षिक जल अंकेक्षण को अनिवार्य बनाया जाए।
10. वर्षाजल संचयन: सब से पहले केन्द्र और राज्य की सरकारें सरकारी इमारत परिसरों में वर्षाजल संचयन, भूजल पुनर्भरण तथा अवजल के पुर्नोपयोग संबंधी योजनाओं व कायदों को पूरे संकल्प के साथ लागू करें।
11. शराब, जैसी जलदोहन करने वाली कंपनियों और मकानों के नक्शा पास कराने की प्रक्रिया में ऐसे प्रावधान महज् घूस लेने-देने का साधन होकर रह गए हैं। आवश्यक है कि ये प्रावधान व्यवहार में उतरें। ऐसा न करने वालों को अन्य योजनाओं/रियायतों के लाभ से वंचित किया जाए।
12. भूजल निकासी के नियमन के लिए प्राधिकरण बनाने से संकट घटने की बजाय, आमजन की परेशानी और भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला साबित होगा।
विकल्प यह है कि नलकूपों आदि पर पाबंदी अथवा लाईसेंस की बजाय, विविध भूगोल के अनुकूल सार्वजनिक सहमति से भूजल निकासी की गहराई सुनिश्चित की जाए। अकाल की स्थिति में ही उससे नीचे उतरने की अनुमाति हो। इससे न सिर्फ जलोपयोग में अनुशासन लौटेगा, बल्कि जलोपयोग व उपभोग करने वाले जलसंचयन को बाध्य होंगे। वे सरकार की ओर निहारना छोड़ेंगे। इससे पानी के क्षेत्र में स्वयंमेव नियमन हो जाएगा।
13. हिंचलाल तिवारी बनाम कमला देवी- जिला उन्नाव, उ. प्र, मामले में देश की सबसे बङी अदालत का फैसला एक मिसाल है। इसे आधार बनाकर उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग द्वारा एक दशक पहले जारी अधिसूचना भी एक मिसाल ही है। जरूरत थी कि इससे प्रेरणा लेकर देश के दूसरे राज्य मिसाल पेश करते। किंतु उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा कई बार तलब किए जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश शासन-प्रशासन इसे जमीनी स्तर पर लागू करने पर असफल रहे हैं। लिहाजा, पूरे देश में तालाबों-झीलों आदि पर कब्जे हुए हैं। कब्जे हटाकर जलस्रोतों और खुली भूमि को बचाने की एक शानदार मिसाल कर्नाटक की ट्वीन सिटी हुबली-धारवाड़ की है। किंतु ऐसी पहल देश में अभियान का रूप नहीं ले सकी है। तालाब कब्जा मुक्ति को एक अभियान बनाने की जरूरत है। तालाब प्राधिकरण की स्थापना कर यह सुनिश्चित किया जा सकता है।
14. ऐसी कई और जरूरतें भी हो सकती हैं। जिन्हे केन्द्रीय स्तर की चर्चा पर नहीं जाना जा सकता। बेहतर हो कि केन्द्रीय स्तर पर जलमंथन कार्यक्रम आयोजित करने से मंत्रालय पहले भू-सांस्कृतिक क्षेत्रवार स्तर पर छोटे-छोटे जल नियोजन कार्यक्रम आयोजित करे। केन्द्रीय कार्यक्रम में सिर्फ उन पर मंजूरी की प्रक्रिया हो।
15. उक्त 14 बिंदुओं को जमीन पर उतारने के लिए व्यापक जल साक्षरता की जरूरत है। यह जरूरत जल का उपयोग करने वालों को ही नहीं, प्रशासनिक व राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी है। मंत्रालय, जलसाक्षरता मिशन बनाकर इसे अंजाम दे सकता है।
1. जरूरी है कि हम नदियों को जोड़ने के काम को प्राथमिकता पर लेने के बजाय, समाज और सरकार को भारतीय जल संस्कृति और संस्कारों से जोड़ने के काम को अपनी प्राथमिकता बनाए।
2. इक्वाडोर और न्यूजीलैंड ने नदियों को प्राकृतिक व्यक्ति का दर्जा दिया है। जरूरी है कि स्वयं को राष्ट्रवादी कहने वाले दल की सरकार। इससे आगे बढ़े और नदियों के मातृत्व को संवैधानिक दर्जा करे।
3. 20-40 किलोमीटर जैसी छोटी धाराओं के पुनरोद्धार के काम को प्राथमिकता पर लिया जाए। छोटी नदियों में पानी टिकेगा, तो बड़ी नदियों और भूजल की सांस स्वतः लौट आएगी। नदी जलग्रहण क्षेत्र की योजना बनाकर यह किया जा सकता है।
4. नदी के तल को छीलकर नदियों को गहरा करना, नदी पुनरोद्धार का तरीका सब नदियों पर लागू करना खतरनाक है। स्थानीय स्तर प्रत्येक छोटी नदी के पुनरोद्धार की अलग योजना बननी चाहिए। योजना और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी ग्रामपंचायतों की बजाय, ग्रामसभाओं को सौंपी जाए। सफलता से जिम्मेदारी निभाने वालों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत करने की योजना बने।
5. ताजा पानी नदियों और गंदे पानी को शोधन के पश्चात पुर्नोपयोग के लिए नहरों में छोड़ा जाना चाहिए। अभी चित्र उल्टा है। ताजा जल नहरों में और गंदा पानी नदियों में छोड़ा जा रहा है। इस चित्र को उलटने की जरूरत है।
6. देश को एक बांध नीति और एक नदी नीति जरूरत है।
7. भारत, मौजूदा गंदे पानी की निकासी तथा सफाई करने में सक्षम साबित नहीं हो रहा। सोचिए, यदि घर-घर शौचालय बन गए तो देश की नदियों और तालाबों का क्या हाल होगा? बेहतर होगा कि सरकार इस सपने को उन शहरीकृत ग्रामों में पूरा करे, जहां इसके बिना वाकई दिक्कत है।
8. आवश्यक है कि लोगों के साथ मिलकर केंद्र शासन प्रत्येक इलाके का जल मानचित्र तैयार करे; जलस्रोतों की भूमि का चिन्हीकरण करे और उससे सार्वजनिक करे। इसके लिए प्रशासनिक सीमाओं की बजाय भूसांस्कृतिक सीमाओं को आधार बनाया जाए। भूवैज्ञानिकों तथा स्थानीय स्तर पर कॉलेजों के भूगोल विभाग के छात्रों तथा अध्यापकों को एक परियोजना के रूप में सौंपकर भी यह किया जा सकता है। यह आवश्यक कार्य है; किया ही जाना चाहिए।
9. पंचायत, मोहल्ला तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के स्तर पर वार्षिक जलयोजना को अनिवार्य वार्षिक जल अंकेक्षण को अनिवार्य बनाया जाए।
10. वर्षाजल संचयन: सब से पहले केन्द्र और राज्य की सरकारें सरकारी इमारत परिसरों में वर्षाजल संचयन, भूजल पुनर्भरण तथा अवजल के पुर्नोपयोग संबंधी योजनाओं व कायदों को पूरे संकल्प के साथ लागू करें।
11. शराब, जैसी जलदोहन करने वाली कंपनियों और मकानों के नक्शा पास कराने की प्रक्रिया में ऐसे प्रावधान महज् घूस लेने-देने का साधन होकर रह गए हैं। आवश्यक है कि ये प्रावधान व्यवहार में उतरें। ऐसा न करने वालों को अन्य योजनाओं/रियायतों के लाभ से वंचित किया जाए।
12. भूजल निकासी के नियमन के लिए प्राधिकरण बनाने से संकट घटने की बजाय, आमजन की परेशानी और भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला साबित होगा।
विकल्प यह है कि नलकूपों आदि पर पाबंदी अथवा लाईसेंस की बजाय, विविध भूगोल के अनुकूल सार्वजनिक सहमति से भूजल निकासी की गहराई सुनिश्चित की जाए। अकाल की स्थिति में ही उससे नीचे उतरने की अनुमाति हो। इससे न सिर्फ जलोपयोग में अनुशासन लौटेगा, बल्कि जलोपयोग व उपभोग करने वाले जलसंचयन को बाध्य होंगे। वे सरकार की ओर निहारना छोड़ेंगे। इससे पानी के क्षेत्र में स्वयंमेव नियमन हो जाएगा।
13. हिंचलाल तिवारी बनाम कमला देवी- जिला उन्नाव, उ. प्र, मामले में देश की सबसे बङी अदालत का फैसला एक मिसाल है। इसे आधार बनाकर उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग द्वारा एक दशक पहले जारी अधिसूचना भी एक मिसाल ही है। जरूरत थी कि इससे प्रेरणा लेकर देश के दूसरे राज्य मिसाल पेश करते। किंतु उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा कई बार तलब किए जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश शासन-प्रशासन इसे जमीनी स्तर पर लागू करने पर असफल रहे हैं। लिहाजा, पूरे देश में तालाबों-झीलों आदि पर कब्जे हुए हैं। कब्जे हटाकर जलस्रोतों और खुली भूमि को बचाने की एक शानदार मिसाल कर्नाटक की ट्वीन सिटी हुबली-धारवाड़ की है। किंतु ऐसी पहल देश में अभियान का रूप नहीं ले सकी है। तालाब कब्जा मुक्ति को एक अभियान बनाने की जरूरत है। तालाब प्राधिकरण की स्थापना कर यह सुनिश्चित किया जा सकता है।
14. ऐसी कई और जरूरतें भी हो सकती हैं। जिन्हे केन्द्रीय स्तर की चर्चा पर नहीं जाना जा सकता। बेहतर हो कि केन्द्रीय स्तर पर जलमंथन कार्यक्रम आयोजित करने से मंत्रालय पहले भू-सांस्कृतिक क्षेत्रवार स्तर पर छोटे-छोटे जल नियोजन कार्यक्रम आयोजित करे। केन्द्रीय कार्यक्रम में सिर्फ उन पर मंजूरी की प्रक्रिया हो।
15. उक्त 14 बिंदुओं को जमीन पर उतारने के लिए व्यापक जल साक्षरता की जरूरत है। यह जरूरत जल का उपयोग करने वालों को ही नहीं, प्रशासनिक व राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी है। मंत्रालय, जलसाक्षरता मिशन बनाकर इसे अंजाम दे सकता है।