आंकड़ेंः भारत की नदियों में घट रहा जल

Submitted by Shivendra on Thu, 06/18/2020 - 08:28

गंगा नदी हरिद्वार। फोटो - Himanshu Bhatt

नदियां भारत की संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न अंग रही हैं। देश में नदियों को माता स्वरूप मानकर पूजा जाता है, लेकिन मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन का असर नदियों पर पड़ रहा है। एक तरफ नदियां लगातार सिकुड़ती जा रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ आबादी तेजी से बढ़ रही है। घटते जल पर बढ़ती लोगों की पानी की निर्भरता जल संकट को और बढ़ा रही है। कई इलाकों में सैंकड़ों नदियां सूख चुकी हैं। नदियों का सूखना न केवल जल संकट को बढ़ाता है, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ ही संस्कृति और सभ्यता के एक अंश/अंग को समाप्त कर देता है। ये भारत में काफी तेजी से हो रहा है। जहां 4500 छोटी-बड़ी नदियां सूख चुकी हैं। गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सरयू, कावेरी आदि नदियों में पानी की उपलब्धत लगातार कम होती जा रही है, जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।

भारत में इस समय वाटर स्ट्रेस्ड के हालात हैं और वह धीरे धीरे वाटर स्कारसिटी की तरफ बढ़ रहा है। फाल्कनमार्क वाटर स्ट्रेस इंडिकेटर के अनुसार, वाटर स्ट्रेस ऐसी स्थिति को कहते हैं जब बेसिन में प्रति व्यक्ति नवीकरणीय पानी की वार्षिक उपलब्धता 1700 क्यूबिक मीटर से कम होती है। यही उपलब्धता 1000 क्यूबिक मीटर से कम होने पर इसे वाटर स्कारसिटी कहा जाता है। इसके बाद की स्थिति होती है, वाटर एब्सोल्यूट। जब पानी की उपलब्धता 500 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है, तो इसे एब्सोल्यूट वाटर स्कारसिटी कहा जाता है। बढ़ती आबादी और घटते जल के चलते भारत में पानी की मांग और आपूर्ति के बीच गैप (डिमांड एंड सप्लाई गैप) बढ़ता जा रहा है, जिस कारण भारत वाटर स्ट्रेस्ड से वाटर स्कारसिटी की तरफ बढ़ रहा है। हालांकि भारत के अधिकांश लोग पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर हैं, लेकिन भूजल को बनाए रखने में नदियों, तालाबों और झीलों का अहम योगदान होता है, लेकिन इन सूखने और जल की मात्रा कम होने का असर भूजल पर भी पड़ रहा है और भारत में पानी पाताल में जाता जा रहा है।

भारत में वर्ष 2010 में प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक उपलब्धता 1608.26 क्यूबिक मीटर थी। इस दौरान देश के 21 नदी बेसिनों में से 5 नदी बेसिनों में एब्सोल्यूट वाटर स्कारसिटी की स्थिति थी, जबकि 5 नदी बेसिन वाटर स्कार्स और 3 वाटर स्ट्रेस की स्थिति में थे। यदि इसी तरह आबादी बढ़ती रही और हमने अपने जल संसाधनों के नियोजन पर ध्यान नहीं दिया तो वर्ष 2025 तक प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक उपलब्धता 1340.94 क्यूबिक मीटर हो जाएगी। 21 नदी बेसिनों में से 5 नदी बेसिनों में एब्सोल्यूट वाटर स्कारसिटी, 6 नदी बेसिन वाटर स्कार्स और 3 वाटर स्ट्रेस की रहेगी। 2050 तक ये स्थिति भयावह रूप धारण कर लेगी। तब 21 नदी बेसिनों में से 6 नदी बेसिनों में एब्सोल्यूट वाटर स्कारसिटी की स्थिति रहेगी, जबकि 6 नदी बेसिन वाटर स्कार्स और 4 वाटर स्ट्रेस की स्थिति में होंगे। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अभी 60 करोड़ लोगों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। एक तरह से ये लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। बढ़ती आबादी के साथ यदि इसी प्रकार पानी का दोहन होता रहा, तो भारत की स्थिति केपटाउन और चिली जैसी हो सकती है। जहां लोगों को बूंद बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ सकता है।

केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों के अनुसार 1984-85 और 2014-15 सिंधु नदी, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गंगा सहित देश की तमाम नदियों में पानी की मात्रा मे कमी आई है। वर्ष 1984-85 और 2014-15 के बीच सिंधु नदी में पानी की मात्रा में 27.78 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) की कमी आई है। जितना पानी सिंधु नदी में कम हुआ है, उतना पानी कावेरी नदी में है। यानि कावेरी में पानी की कुल उपलब्धता 27.78 बिलियन क्यूबिक मीटर है। ब्रह्मपुत्र के जल में 95.56 बीसीएम और गंगा में 15.5 बीसीएम की कमी आई है। पानी कम होेने से प्रति व्यक्ति पानी की उलब्धता ही कम नहीं हुई है, बल्कि नदियों का जलग्रहण क्षेत्र भी कम हुआ है। केंद्रीय जल आयोग के 2017 के आंकड़ों के अनुसार 2004-05 और 2014-15 के बीच, सिंधु के जलग्रहण क्षेत्र में 1 प्रतिशत, गंगा में 2.7 प्रतिशत और ब्रह्मपुत्र के जलग्रहण क्षेत्र में 0.6 प्रतिशत की कमी आई है। प्रति व्यक्ति सतही जल की उपलब्धता भी 1951 में 5,200 घन मीटर थी, जो 2010 में घटकर 1,588 रह गई है। नीचे चार्ट में नदियों में जल की उपब्लधता और उन पर निर्भर आबादी के आंकड़ें प्रस्तुत किए गए हैं। 


हिमांशु भट्ट (8057170025)