पृथ्वी पर लगभग 1 लाख 98 हजार ग्लेशियर हैं, जो करीब 7 लाख 26 हजार स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। हमारी जलवायु ग्लेशियरों पर काफी हद तक निर्भर करती है, तो वहीं साफ पानी का सबसे बड़ा स्रोत ग्लेशियर ही हैं। पर्वतीय इलाकों में विभिन्न प्राकृतिक जलस्रोत या कल-कल निनाद करते हुए बहने वाली सदानीरा नदिया हैं, जिनका जन्म हिमालय या ग्लेशियर से ही होता है, लेकिन जलवायु के कारण ग्लेशियरों पर खतरा मंडरा रहा है। आइस लैंड़, ग्रीन लैंड़, आर्कटिक सहित विभिन्न देशों के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। भारत के ग्लेशियर भी जलवायु परिवर्तन के असर से अछूते नहीं हैं। इससे एक तरफ समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा, तो दूसरी तरफ दुनिया में जल संकट भी गहराएगा।
आइसलैंड के सबसे प्राचीन ग्लेशियरों में से एक ‘ओकजोकुल ग्लेशियर’ पूरी तरह सूख चुका है। 700 साल पुराने इस ग्लेशियर से ‘ग्लेशियर’ का दर्जा भी ले लिया गया है। ये असर जलवायु परिवर्तन के कारण ही हुआ। पिछले साल आइसलैंड के इतिहास में एक दिन में सबसे ज्यादा व तेज बर्फ पिघलने की घटना दर्ज की गई थी। 2 अगस्त 2019 को एक ही दिन (24 घंटे) में 12.5 बिलियन टन बर्फ की चादर पिघल गई थी। जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्राकशित एक अध्ययन के अनुसार आर्कटिक की बर्फ समय से पहले पिघल रही है और वसंत के दौरान पौधों में पत्ते जल्दी आ रहे हैं। साथ ही टुंड्रा वनस्पति नए क्षेत्रों में फैल रही है। एक तरह से आर्कटिक में तेजी से तापमान में बदलाव आ रहे हैं। इससे हरियाली को पनपने में मदद मिल रही है। अंटार्कटिका में भी बर्फ का रंग बदल रहा है। इन इलाकों में समुद्री एल्गी उग रही है, जिससे बर्फ का रंग हरा पड़ने लगा है। वैज्ञानिक ग्रीनलैंड को लेकर भी चेतावनी जारी कर चुके हैं। उनका कहना है कि यदि जलवायु परिवर्तन ऐेसे ही जारी रहा तो एक दिन ग्रीनलैंड केवल घास का मैदान बनकर रह जाएगा। इसके अलावा अन्य देशों के ग्लेशियर भी इसी गति से पिघल रहे हैं। भारत में गंगोत्री ग्लेश्यिर, जहां से भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा का उद्गम होता है, तेजी से पिघल रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर हर साल 22 फीट तक पीछे खिसक रहा है। हाल ही में सेडार ने भी एक रिसर्च कर बताया था कि हिंदूकुश हिमालय तेजी से सिकुड़ रहा है। जिससे ‘इंडियन हिमालयन रीजन’ सहित आठ देशों में जल संकट गहरा सकता है।
ग्लेशियरों का पिघलना हाल ही में शुरू नहीं हुआ है, बल्कि वर्ष 1900 के बाद से ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं। वर्ष 1912 के बाद से किलिमंजारो ग्लेशियर 80 प्रतिशत तक पिघल चुका है। हालांकि अब ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार तेज हो गई है। इनके पिघलने का कारण मानवीय गतिविधियां और ग्लोबल वार्मिंग है। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तराखंड के गढ़वाल में 2035 ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। तो वहीं वर्ष 2100 तक दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा ग्लेशियरों के पिघलने का अनुमान लगाया जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि कार्बन उत्सर्जन (प्रदूषण) पर नकेल नहीं कसी गई तो 2040 तक गर्मियों में आर्कटिक से बर्फ गायब हो सकती है।
PHYS.ORG पर प्रकाशित एक खबर में बताया गया है कि हाल ही में हुए एक अध्ययन में बताया गया है कि हिमालय और एंडीज पर्वत श्रृंख्ला, स्वालबार्ड द्वीप समूह और कनाडाई आर्कटिक द्वीप के विभिन्न स्थानों पर ग्लेशियर और आइस कैप के पिघलने से न केवल समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, बल्कि दुनिया में जल संकट भी गहराएगा। इससे करोड़ों लोग प्रभावित होंगे। खबर के मुताबिक, हाल ही में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन पत्रिका जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के ग्लेशियोलाॅजिस्ट, इरविन और नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में प्रकाशित एक अध्ययन में वर्ष 2002 से 2019 के बीच प्रति वर्ष 280 बिलियन मीट्रिक टन से अधिक बर्फ पिघलना इन इलाकों में दर्ज किया गया है। इससे विश्व स्तर पर समुद्र का जलस्तर 13 मिलीमीटर बढ़ा है। साथ ही ये भी कहा गया है कि ‘मीठे पानी के स्रोत साल दर साल तेजी से कम हो रही हैं। इससे दुनिया में जल संकट गहराएगा।’’
समुद्र का जलस्तर बढ़ने से महासागरों के किनारे बसे शहरों और देशों पर डूबने का खतरा है। इसका प्रमाण सुंदरवन है, जो लगातार समुद्र में समाता जा रहा है। जल संकट का असर भी भारत के साथ ही पूरी दुनिया में दिखने लगा है। लोग बूंद-बूंद के लिए मोहताज हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के 200 करोड़ लोग गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में हम सभी को सतत विकास के माॅडल को अपनाते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आना होगा तथा जीवनशैली में हर संभव बदलाव लाने होंगे।
हिमांशु भट्ट (8057170025)