भूभौतिकी पृथ्वी विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत मात्रात्मक भौतिकीय विधियों विशेषकर भूकम्पीयइलैक्ट्रोमैग्नेटिक तथा रेडियोधर्मिता पद्धतियों द्वारा पृथ्वी का अध्ययन किया जाता है। भूभौतिकी की तकनीकों और सिद्धांतों को सामान्यतः ग्रह विज्ञान में त्वरित रूप से प्रयोग में लाया जाता है। जैसा कि नाम से ही परिलक्षित होता है, भूभौतिकी पृथ्वी की विशेषताओं की खोज हेतु भौतिकी सिद्धांतों तथा मापन का अनुप्रयोग है। प्राचीनकाल से ही इस विषय क्षेत्र में, मुख्यतः भूकम्प अनुमानों के लिए (एक ऐसी समस्या जो अब तक अनसुलझी है वैज्ञानिक पहुंच की दिशा में, शोध कार्य जारी हैं, लेकिन इस दिशा में चुम्बकत्व और गुरुत्वाकर्षण के क्षेत्रों में आरंभिक कार्य के साथ 1500 ईस्वी के बाद के वर्षों में अच्छी खासी प्रगति हुई है।
20वीं सदी के शुरुआत के वर्षों में इंस्ट्रूमेंटेशन के क्षेत्र में व्यापक सुधार ने भूभौतिकी की त्वरित प्रगति में योगदान किया है और अंततः इससे 1960 के दशक में प्लेट विवर्तनिक के सिद्धान्त का मार्ग प्रशस्त हुआ है। प्लेट विवर्तनिक, पृथ्वी के आंतरिक ढांचे और संबद्ध क्षेत्रों का अध्ययन है जैसा कि वैश्विक और क्षेत्रीय प्रक्रियाओं को संयुक्त रूप से ठोस पृथ्वी भू-भौतिकी के रूप में जाना जाता है। उप-विषय क्षेत्र को समन्वेषण भूभौतिकी के रूप में जाना जाता है जिसमें पेट्रोलियम और अन्य खनिज संसाधनों का पता लगाने के लिए भूभौतिकीय सिद्धान्त और इंस्ट्रूमेंटेशन का प्रयोग शामिल है। भिन्न रूप में ठोस पृथ्वी भूभौतिकी समन्वेषण भूभौतिकी सामान्यतः पृथ्वी के भूपटल के छोटे संबद्ध भाग में पार्श्व विषमताओं के निष्कर्षों पर जोर दिया जाता है। भूभौतिकी ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की मनुष्य की क्षमता में जबर्दस्त वृद्धि की है। मानवीय समझ बहुत सी भौतिक घटनाओं (अर्थात चुम्बकत्व को परिमाणित या यहां तक कि उनका पता नहीं लगा सकती। मानव पृथ्वी के प्रति दस लाख के एक अंश के बराबर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में परिवर्तनों का पता नहीं लगा सकता, लेकिन आधुनिक गुरुत्वाकर्षण मीटर ऐसा कर सकते हैं (दरअसल, 0.02 प्रति दस लाख अंश या इससे अच्छा)। भूकम्प विज्ञान-पेट्रोलियम की खोज की प्रारंभिक पद्धति के लिए बहुत कम-आयाम कम्पित्र, कम्पन (या काम्पना) के वास्तविक समय तथा रिकार्डिंग की आवश्यकता होती है जो कि उससे कहीं ज्यादा नीचे है जितनी कि कोई मनुष्य समझ सकता है।
भारत में भूभौतिकी का सबसे पहले प्रयोग कर्नल विलियम लैम्बटन द्वारा किया गया जिन्होंने 1799 में एक सर्वेक्षण का सुझाव दिया जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के अण्डाकार अध्ययन के लिए भूगणितीय नेटवर्क का उदय हुआ। भारत में गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का अध्ययन 1830 के दशक में किया गया जब भारत के तत्कालीन महा सर्वेक्षक कर्नल जार्ज एवरेस्ट ने 770 30 ई देशान्तर रेखांश के आसपास वृत्तांश का सुस्पष्ट मापन किया तथा कालिना और कालियांपुर के बीच अक्षांश के भूगणितीय तथा खगोलीय परिमाप के बीच अंतर की खोज की। 1955 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग में तेल और प्राकृतिक गैस प्रभाग का सृजन किया गया तथा बाद में 1959 में एक आयोग का गठन किया गया। तेल और प्राकृतिक गैस आयोग (ओएनजीसी ने 1957 में भारत में ज्यादातर बेसिन में नियमित ग्रिड में गुरुत्वाकर्षण और चुम्बकत्व डॉटा संग्रहण शुरू किया। ओएनजीसी ने इसके लिए अमरीकी और रूस में निर्मित उपकरणों का इस्तेमाल किया। तेल की खोज में भूभौतिकी का प्रयोग सबसे पहले 1923 में बर्मा ऑयल कारपोरेशन (बीओसी) ने टॉर्शन बैलेंस का प्रयोग करते हुए इंडस घाटी में किया। इलैक्ट्रिकल सर्वेक्षण सर्वप्रथम नेल्लोर जिले में तथा बाद में 1933 में मैसर्स पीपमेयर और केलबोफ द्वारा कॉपर के लिए सिंहभूम जिले में किया गया। किसी भारतीय द्वारा प्रथम भूभौतिकीय सर्वेक्षण का श्रेय स्वर्गीय श्री एमबीआर राव को जाता है जब 1937 में उसने मैसूर में जमा सल्फाइड अयस्क के लिए इलैक्ट्रिक सर्वेक्षण किए। 1939-45 के बीच युद्ध के दौरान, मैसूर भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग श्री एमबीआर राव के साथ केवल एकमात्र संगठन था जिसने आत्म-क्षमता तथा प्रतिरोधक सर्वेक्षणों का प्रयोग करते हुए भूभौतिकीय कार्य किया।
भारत में भूभौतिकीय शिक्षा
भारत में 1949 से भूभौतिकी का अध्ययन कराने वाले प्रमुख संस्थान हैं आंध्र विश्वविद्यालय वाल्टेयर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी आईआईटी खड़गपुर इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स धनबाद रुड़की विश्वविद्यालय तथा उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद। भारत में भूभौतिकी शिक्षा का अध्ययन एक साथ 1949 में आंध्र विश्वविद्यालय (एयू तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू में शुरू किया गया था। आंध्र विश्वविद्यालय ने बीएससी स्तर के पाठ्यक्रम की शुरुआत की और बाद में निम्नलिखित विषय क्षेत्रों में एमएससी डिग्री भी आरंभ की गई - कमौसमविज्ञान और समुद्र विज्ञान खपृथ्वी के आंतरिक भागों की भौतिकी आरंभ में ये पाठ्यक्रम 2 वर्ष की अवधि के थे जिन्हें बाद में 1955 में बढ़ाकर 3 वर्ष का कर दिया गया। 1949-52 की अवधि के दौरान विभाग के प्रथम अध्यक्ष प्रो. एन.के.सेन थे। 1978 में आंध्र विश्वविद्यालय ने समुद्री भूभौतिकी में दो वर्षीय एमएससी पाठ्यक्रम शुरू किया। बीएचयू में 1949 में जब प्रोफेसर राजनाथ विभागाध्यक्ष थे भूभौतिकी का अध्ययन भूविज्ञान के रूप में शुरु किया गया। बाद में (1964 भूभौतिकी को अलग कर दिया गया और प्रोफेसर एचएस राठौड़ प्रथम विभागाध्यक्ष बने। वर्तमान में समन्वेषण भूभौतिकी (3 वर्षीय एमएससी पाठ्यक्रम तथा मौसम विज्ञान का अध्ययन कराया जा रहा है। 1951 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी खड़गपुर में भूविज्ञान और भूभौतिकी विभागों की स्थापना की गई। आरंभ में इस विभाग ने भूविज्ञान और भूभौतिकी में 3 वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम शुरु किए।
1957 में एक वर्ष की अवधि के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम (डीआईआई टी तथा भूभौतिकी में एमएससी पाठ्यक्रम शुरु किया गया। यह अब भी जारी है। रुड़की विश्वविद्यालय में प्रो आरएसमित्तल के नेतृत्व में 1969 में भूविज्ञान के एक विभाग के रूप में भूभौतिकी में तीन वर्ष का एमटैक पाठ्यक्रम शुरु किया गया। उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद में भूभौतिकी की पढ़ाई 1965 में शुरु की गई जब वर्ष का एमटैक पाठ्यक्रम आरंभ किया गया। भारत-सोवियत द्विपक्षीय समझौते (1966 के तहत उस्मानिया में भूभौतिकी विभाग को सोवियत संघ से अच्छी तकनीकी और मानवशक्ति सहायता प्राप्त हुई 1969 में समन्वेषण भूभौतिकी केंद्र की स्थापना की गई। वर्तमान में भूभौतिकी के सभी विभागों में संख्यात्मक विश्लेषण संचार सिद्धांत संभाव्यता की इलैक्ट्रिकल और इलैक्ट्रोमेग्नेटिक पद्धतियां सिग्नल प्रोसेसिंग कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग वैल-लॉगिंग भूकम्पत्व गुरुत्वाकर्षण और संभाव्यता की चुम्बकत्व पद्धतियां खनन भूभौतिकी और पेट्रोलियम समन्वेषण जैसे पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कराई जाती है। इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स धनबाद एमटैक डिग्री के समकक्ष पेट्रोलियम समन्वेषण में विशेषीकृत पाठ्यक्रम संचालित कर रहा है। कुछेक विभाग विभिन्न विषयों जैसे कि मौसम विज्ञान समुद्री भूभौतिकी भूकम्पविज्ञान तथा पृथ्वी के अंदरूनी भागों जिऑइलैक्ट्रिसिटी जिऑमैग्नेटिज्+म दूर संवेदी पर्यावरणीय भूभौतिकी उन्नत हाइड्रोलॉजी आदि में विशेषीकृत पाठ्यक्रम (विकल्प के रूप में) संचालित करते हैं। भूभौतिकी के सभी विभागों में कुशल स्टाफ प्रयोगशालाएं तथा कम्प्यूटर की सुविधाएं हैं।
भूभौतिकी में कैरियर
भूभौतिकीविद क्षेत्र अन्वेषण; प्रयोगशाला अध्ययनों तथा प्रयोगों; भूतल के नीचे रखे गए उपकरणों से डॉटा संग्रहण तथा भूतल से हजारों किलोमीटर दूर स्थित उपग्रहों से डॉटा संग्रहण; दूनिया के सर्वाधिक पोटेंट सुपर कम्प्यूटरों का प्रयोग करते हुए डॉटा प्रोसेसिंग और विश्लेषण; तथा हजारों मीटर गहरे कुएं खोदना।
भूभौतिकविदों के लिए रोजगार के अवसरों की काफी अच्छी संभावनाएं है, विशेषकर ऐसे में जब समन्वेषण भूभौतिकी डिग्रियों में अध्ययन के विविध क्षेत्रों तथा व्यावहारिक क्षेत्र अध्ययन शामिल किया गया है। कोयला, पेट्रोलियम, खनिज और पानी की खोज तथा खतरनाक कचड़े के निपटान जैसे कुछेक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र हैं जिनमें आने वाले कई वर्षों में प्रशिक्षित भूभौतिकीविदों के कौशल की आवश्यकता होगी।
उद्योग
तेल और गैस उद्योग सामान्यतः भूभौतिकीविदों का और विशेष रूप से भूकम्पविज्ञानियों का एक बड़ा नियोक्ता रहा है। इस क्षेत्र में रोजगार बाजार रुख नरम-गरम होता रहता है लेकिन इसमें उच्च वेतन की क्षमता है। नियोक्ता मास्टर डिग्री वाले छात्रों का ेप्राथमिकता देते हैं, लेकिन केवल स्नातक योग्यता धारकों को भी वे रख सकते हैं तथा तब वे छात्र की आगे की पढ़ाई में सहायता करते हैं। पर्यावरणीय परामर्शी कम्पनियां भूभौतिकीविदों को उनकी मात्रात्मक पृष्ठभूमि के कारण हायर करती है। उदाहरण के लिए यह दूषित जल के उप भूतल मॉडलिंग में लाभदायक हो सकता है। विभिन्न निजी परामर्शी कम्पनियां भी भूकम्पविज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रही है तथा भूकम्प से होने वाले खतरों का अनुमान लगाती हैं। ये कम्पनियां भूकम्पविज्ञान में उन्नत डिग्रीधारी छात्रों के लिए समान आउटलेट्स हो सकती हैं।
सरकार
भारत में ओएनजीसी और एनजीआरआई भूभौतिककीविदों की प्रमुख नियोक्ता हैं। तेल और प्राकृतिक गैस एजेंसी लिमि. भारत में भूभौतिकीविदों की प्रमुख नियोक्ता है। सीएसआईआर द्वारा 1961 में भारत में प्रमुखा भूवैज्ञानिक संगठन बनने के लक्ष्य के साथ हैदराबाद में राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई। पिछले साढ़े तीन वर्षों के दौरान इसने पृथ्वी विज्ञान में अपने उत्कृष्ट अनुसंधान कार्यक्रमों तथा विकास के जरिए काफी प्रतिष्ठा अर्जित की है जिससे देश के लोगों की भलाई के लिए इसके वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय कौशल का प्रयोग किया जा सका है। अमरीकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग भूकम्पों तथा ज्वालामुखियों से होने वाले खतरों के अध्ययन और सहायता कार्यों हेतु सामान्यतः भूभौतिकीविदों की सेवाएं लेता है। हालांकि यूएसजीएस द्वारा लिए गए ज्यादातर लोग उन्नत डिग्रीधारी हैं, लेकिन उनके लिए भी काफी संभावनाएं है जो केवल परास्नातक हैं। राष्ट्रीय परमाणु अस्त्र प्रयोगशालाओं में से दो लॉस एलामस नेशनल लैब्स, तथा लारेंस लिवरमोर नेशनल लैब्स सामान्यतः भूकम्पविज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने के लिए भूभौतिकीविदों को नियुक्त करते हैं। इस क्षेत्र में विश्वभर से प्राप्त भूकम्प संबंधी आंकड़ों से परमाणु हथियारों के परीक्षणों की लगातार मानीटरिंग की जाती है। प्रयोगशालाएं बहुत ऊंचा वेतन का भुगतान करती हैं तथा छात्रों को इन्टर्नशिप हेतु बहुत से अवसर उपलब्ध कराती हैं। हाल में हमारे यहां तीन एस.एलयू. परास्नातकों ने राष्ट्रीय लैब्स में इंटर्न के रूप में भाग लिया।
सेना
अमरीकी सेना विभिन्न क्षमताओं में भूभौतिकीविदों की सेवाएं लेती है तथा व्यक्ति विशेष के लिए जरूरी नहीं है कि वह सशस्त्र सेवाओं का सदस्य हो। फ्लोरिडा और मेलबोर्न में वायु सेना तकनीकी अनुप्रयोग केंद्र इसका एक उदाहरण है। यहां पर भूभौतिकीविद भूकम्पों के अध्ययन के लिए विकसित तकनीकों का प्रयोग करते हुए विश्व में परमाणु हथियारों के होने वाले परीक्षणों की निगरानी करते हैं। दूसरा उदाहरण है हनोबर, न्यू हेम्पशायर में स्थित ठण्डा क्षेत्र अनुसंधान और इंजीनियरिंग प्रयोगशाला। यहां पर भूभौतिकीविद युद्ध क्षेत्र जागरूकता बढ़ाने के लिए भूकम्पी पद्धतियों का प्रयोग करते हैं।
शिक्षण
जो व्यक्ति हाई स्कूल का गणित या विज्ञान का शिक्षक बनने के इच्छुक हैं उनके लिए भूभौतिकी डिग्री बहुत अच्छा विकल्प है। इससे ऍप्लाइड गणित, इलैक्ट्रिसिटी और मैग्नेटिज्+म, हीट फ्लो तथा इलास्टिसिटी के क्षेत्र में मजबूत पृष्ठभूमि तैयार होती है तथा यह ज्वालामुखी, भूकम्प, प्लेट टेक्टोनिक्स तथा सौर प्रणाली के बारे में विशेषज्ञ जानकारी प्रदान करता है। जो व्यक्ति कॉलेज स्तर पर शिक्षण के इच्छुक हैं उनके लिए भूभौतिकी में पीएचडी अपेक्षित है; लेकिन उन छात्रों के लिए एसएलयू परास्नातक कार्यक्रम विशेष रूप से तैयार किया गया है जो भूभौतिकी में उन्नत डिग्री के लिए अध्ययन करना चाहते हैं। स्नातक विद्यालय के लिए आवेदन और चयन के लिए मार्ग-निर्देशन सामान्यतः संकाय द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। भूभौतिकी में स्नातक विद्यालय सामान्यतः मुफ्त होते हैं; संस्थान सामान्यतः ट्युशन फीस माफ कर देते हैं तथा छात्रों को अध्ययन के दौरान 15-20 हजार रुवार्षिक स्टाइपेंड भी देते हैं। यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि एक उन्नत भूभौतिकी डिग्री कई गैर-अकादमिक रोजगार मार्गों के लिए भी लाभदायक है।
(लेखक एक भूवैज्ञानिक हैं तथा झारखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, रांची में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं )