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पंचायतनामा सप्ताहिक पत्रिका, 2 जून 2014
एक पुरानी कहावत है आम के आम, गुठली के दाम। इस कहावत से सभी परिचित हैं। यह तो हम जानते ही हैं कि वनों का पर्यावरण संतुलन में अत्यधिक महत्व है। पर्यावरण सुरक्षा के लिए यदि हम वन लगायें तो एक ओर तो हमें शुद्ध वातावरण में जीने का मौका मिलता है, साथ ही मुनाफा कमाने का भी अवसर प्राप्त होता है। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत का 28.82 फीसदी भू-भाग वन आच्छादित है। वैसे तो वन हमारे पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वनों का महत्व और भी अधिक इन कारणों से हो जाता है कि एक बड़ी ग्रामीण आबादी वनों पर अपनी आर्थिक संपन्नता के लिए निर्भर करती है।
कृषि-वानिकी से रोजगार अर्जित किए जा रहे हैं। वर्ष 2011 में योजना आयोग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वनों का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग दो प्रतिशत का योगदान है। बिहार के कुल भू-भाग का 7.27 प्रतिशत हिस्सा व झारखंड का 30 फीसदी हिस्सा वन आच्छादित है। हाल के वर्षों में भारत में वन क्षेत्र घटे हैं। झारखंड तथा बिहार में सामाजिक वानिकी के तहत कई तरह के कार्यक्रम की शुरुआत की गई है, जिसका लाभ आम ग्रामीण उठा सकते हैं। सामाजिक वानिकी के तहत इन योजनाओं का लाभ लेकर पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं। साथ ही रोजगार भी अर्जित कर सकते हैं।
पंचायतनामा के इस अंक में इन कार्यक्रमों की चर्चा की गई है। साथ ही इस बात पर भी चर्चा की गई है, किस प्रकार के पेड़-पौधे लगा कर अधिक आमदनी अर्जित की जा सकती है।
वन विभाग से प्राप्त करें विभिन्न किस्म के पौधे
यदि आप पर्यावरण के प्रति बहुत ही सजग हैं और आप आस-पास और गांव में वन लगाना चाहते हैं, तो राज्य के वन विभाग की नर्सरी से पौधा प्राप्त किया जा सकता है। झारखंड तथा बिहार के वन विभाग की पौधरोपण शाखा विभिन्न जिलों में नर्सरी संचालित करती है। कम कीमत पर इन नर्सरियों से पौधा प्राप्त किया जा सकता है। इन नर्सरी में विभिन्न किस्म जैसे शीशम, आम, सागवान, गम्हार, सखुवा आदि के पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं। नर्सरी में प्रत्येक पौधा डेढ़ रुपए की दर से खरीदा जा सकता है।
सामान्य प्रजाति के इन पौधों को गावों में सार्वजनिक स्थलों पर लगाया जाए, तो इससे गांव के पर्यावरण में उल्लेखनीय बदलाव लाया जा सकता है। साथ ही आय का बेहतर स्रोत बनाया जा सकता है। शीशम, सागवान, गम्हार जैसे पेड़ लंबे समय में काफी अच्छी आमदनी देते हैं। यदि इन पेड़ों के पौधों को कुछ एकड़ में लगा दिया जाता है तो कुछ सालों में इसके लकड़ी से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।
वन विभाग की नर्सरी से पौधे प्राप्त करने की जानकारी जिला वन पदाधिकारी से प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा प्रत्येक वन क्षेत्र के रेंजर तथा वन अधिकारी से भी आप आवश्यक जानकारी ले सकते हैं। रांची में वन भवन, डोरंडा स्थित कार्यालय से संपर्क कर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
राष्ट्रीय बांस मिशन की योजनाओं का मिले लाभ
बांस आय प्राप्त करने का एक बेहतरीन साधन है। राष्ट्रीय बांस मिशन विभिन्न लाभकारी योजनाओं के तहत बांस लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। बांस लगाने के इच्छुक व्यक्ति को 50 प्रतिशत अनुदान पर बांस की पौधे उपलब्ध कराए जाते हैं। बांस लगाने के लिए किसान को बाकी की राशि स्वयं लगानी होगी। बांस लगाने के लिए भूमि का उर्वर होना आवश्यक नहीं होता है। बल्कि यह हर प्रकार की भूमि व बंजर तथा उसर पर भी लगाया जा सकता है। बंजर जमीन पर बांस लगाने से काफी कम समय में हरियाली आ जाती है।
झारखंड का स्थान बांस क्षेत्र की सघनता की दृष्टिकोण से दूसरे स्थान पर आता है। इस कारण से बांस लगाने और बाजार में बेचने से अच्छी कमाई की संभावना बढ़ी है। बांस के लिए जून-जुलाई का मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है। बांस लगाना इस मायने में भी अधिक लाभदायक है कि हाल के वर्षों में केंद्र तथा राज्य सरकार ने बांस आधारित हस्तशिल्प कला का बढ़ावा दिया है और लघु उद्योग के रूप में स्थापित किया है। बांस के बने कुरसी-टेबल, सजावटी समान, रैक, झूले सहित कई प्रकार की सामग्रियों को अच्छे दाम पर बेचा जाता है। इसके अलावा बांस से टोकरी, सूप तथा दूसरे विविध प्रकार के समान बनाए जाते हैं।
अपने खेत अथवा बंजर जमीन पर बांस लगा कर अच्छी आय अर्जित करने के इच्छुक व्यक्ति इस संबंध में अपने जिला में स्थित राज्य वन विकास निगम के कार्यालय में संपर्क कर सकता है। बांस लगाने वाले किसान अथवा ग्रामीण को इस बात का ध्यान रखना है कि अनुदान के तौर पर 8000 रुपए दिया जाता है। यह राशि दो किस्त में प्राप्त होगा। दूसरा किस्त पौधे की 90 प्रतिशत जीवित होने पर दी जाती है।
अधिक जानकारी के लिए इस पते पर संपर्क कर सकते हैं : परियोजना निदेशक, राष्ट्रीय बांस मिशन, झारखंड राज्य वन विकास निगम, हिनू चौक, रांची। दूरभाष : 0651-2250563, 2251494.
फलदार वृक्ष के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन
राष्ट्रीय बागवानी मिशन आपको फलदार वृक्ष लगाने का अच्छा अवसर देता है। यदि आप इमारती लकड़ियों अथवा बांस से हट कर फलदार वृक्ष लगाते हैं, तो राष्ट्रीय बागवानी मिशन इस काम में आपकी मदद करता है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन की योजनाओं का लाभ लेकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा भी की जा सकती है। मिशन के द्वारा अनुदान भी दिया जाता है। फलदार पौधे लगा कर फलों का निर्यात किया जा सकता है।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन न्यूनतम एक हेक्टेयर यानी ढाई एकड़ और अधिकतर चार हेक्टेयर यानी 10 एकड़ जमीन में नर्सरी लगाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है। यदि एक हेक्टेयर भूमि पर नर्सरी लगाया जाता है तो इसमें 6-7 लाख रुपया खर्च आता है। इसकी आधी राशि आप मिशन के माध्यम से अनुदान के तहत प्राप्त कर सकते हैं। यानी नर्सरी व्यवसाय की शुरुआत 3-4 लाख रुपए लागत के साथ की जा सकती है। योजना के तहत 50 हजार पौधे तैयार करने होते हैं। तैयार किए गए पौधों की बिक्री में मिशन सहयोग करता है। इस तरह एक व्यक्ति रोजगार के साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी अपनी भागीदारी देता है।
मछली पालन से करें पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण संरक्षण को अपनी जिम्मेदारी समझने वाले ग्रामीण मछली पाल सकते हैं। मछली पालन कर वह रोजगार तो करते ही हैं, साथ ही वह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी काम करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि दो पोखरों में से एक पोखर में मछली पालन किया जाए तो उस पोखर का पानी लंबे समय तक नहीं सूखता है। इसके विपरीत ऐसे पोखर, जिसमें मात्र पानी होता है, जल्दी सुख जाते हैं। मछली पालन कर हम अपने आसपास के इको-सिस्टम को बेहतर बना सकते हैं। मछली पालन से अपने क्षेत्र की जैव विविधता को बढ़ावा दिया जा सकता है। यदि आप भी मछली पालन करना चाहते हैं तो अपने प्रखंड तथा जिला के मत्स्य पदाधिकारी से जानकारी ले सकते हैं।
रांची के आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण व किसान मत्स्य निदेशालय, मछली पार्क, डोरंडा, रांची से और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
मनरेगा के तहत लगायें पेड़
यदि आपको वन और पर्यावरण से लगाव है तो मनरेगा के तहत पेड़-पौधे भी लगवा सकते हैं। मनरेगा योजना के अंतर्गत पौधारोपण का भी प्रावधान है। पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार पाने के लिए आप अपने गांव के मुखिया, पंचायत सेवक तथा प्रखंड विकास पदाधिकारी से भी बात कर सकते हैं। मनरेगा के तहत सरकारी भूमि पर सागवान, सखुआ, गम्हार आदि के पौधे लगवा सकते हैं। नहर, सड़कों के किनारे अथवा गांव की किसी भी गैरमजरूआ जमीन में पौधे लगा कर रोजगार पाया जा सकता है और वन को भी बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा बांस तथा रबर के विकसित नस्ल के पौधे भी लगाए जा सकते हैं।
मनरेगा के तहत नर्सरी भी विकसित किया जाता जा सकता है। इस कार्य के लिए वन विभाग तथा बागवानी मिशन की भी सहायता प्राप्त होती है। यदि वन विभाग की नर्सरी में पौधा नहीं मिलता है तो इसे मनरेगा नर्सरी से प्राप्त किया जा सकता है। मनरेगा योजना के तहत कई तरह के फलदार वृक्ष भी लगाए जा सकते हैं। मनरेगा योजना का यह लाभ लेने के लिए यह जरूरी है कि आप का निबंधन हो।
मरनेगा योजना के तहत पौधारोपण के कार्यक्रमों को वन विभाग राष्ट्रीय बांस मिशन तथा राष्ट्रीय बागवानी मिशन से भी सहायता मिलती है। मनरेगा के तहत जलछाजन, मृदा संरक्षण, बाढ़ नियंत्रण आदि कार्यों को भी प्रोत्साहन मिलता है। इन सभी कार्यों की यदि आप सूची बना कर मुखिया को प्रस्तूत करें तो संभावित है कि इस दिशा में काम कर गांव के लोग रोजगार तो प्राप्त करेंगे ही साथ ही अपने वन और पर्यावरण की सुरक्षा भी कर सकते हैं।
राष्ट्रीय जलछाजन मिशन से भी आप लें सहायता
एक किसान राष्ट्रीय जलछाजन मिशन की सहायता से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर सकता है। किसान को इस दिशा में काम करने पर आर्थिक लाभ भी मिलता है। राज्य जलछाजन मिशन की सभी योजनाएं भारत सरकार के संपोषित कार्यक्रम हैं। इसमें केंद्र की ओर से 90 प्रतिशत तथा राज्य की ओर से 10 प्रतिशत योगदान दिया जाता है। इसमें सबसे पहले किसी क्षेत्र को जलछाजन के लिए चिह्नित किया जाता है। जलछाजन के लिए चिह्नित गांवों में ग्रामसभा के माध्यम से जलछाजन सचिव तथा अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। जलछाजन समिति बनाकर योजना राशि का ट्रांसफर खाता में कर दिया जाता है।
वर्षा आधारित कृषि तथा लोगों के सहयोग से क्षेत्र का विकास करना ही जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत आता है। सुखाड़ क्षेत्र विकास कार्यक्रम, मरूस्थल विकास कार्यक्रम, समेकित बंजर विकास कार्यक्रम के समायोजन से जिन कार्यक्रमों को भूमि संसाधन विकास विभाग के सहयोग से चल रहा है, वहीं समेकित जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम है।
जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम का उद्देश्य
1. जल, जंगल, जमीन, जानवर तथा जन का उचित संरक्षण एवं विकास करना।
2. पारिस्थितिकी में सही संतुलन स्थापित करना।
3. मिट्टी के कटाव को रोकना।
4. प्राकृतिक तथा वनस्पति को पुनर्जीवित करना।
5. वर्षा जल का संरक्षण तथा भू-जल को बढ़ावा देना।
6. मिश्रित खेती तथा खेती के नई तकनीकी को बढ़ावा देना।
7. टिकाऊ जीविकोपार्जन पद्धति को बढ़ावा देना।
जलछाजन की मुख्य गतिविधियां
1. मिट्टी तथा जल संरक्षण के लिए विभिन्न संरचनाओं का निर्माण किया जा सकता है। जैसे- मेढ़ बंदी, सीढ़ीदार खेत का निर्माण, वनस्पति अवरोध इत्यादि।
2. घास, झाड़ीनुमा पौधे तथा अन्य बहुउद्देशीय पौधों के साथ-साथ दलहनी पौधों का रोपण तथा चारा क्षेत्र का विकास।
3. प्राकृतिक पुनर्जीवन को बढ़ावा देना।
4. कृषि वानिकी एवं बागवानी के संवर्द्धन की जानकारी ग्रामीणों तक पहुंचाना।
5. लकड़ी का विकल्प खोजना तथा पेड़-पौधों का संरक्षण।
6. उत्पादन व्यवस्था तथा सूक्ष्म उद्यम को बढ़ावा देना।
पर्यावरण संरक्षण के लिए दूसरे कारगर तरीके
1. वर्षा जल को जमा कर इसका संतुलित उपयोग कर सकते हैं। उपयोग किए जल को जमीन में ले जाने की व्यवस्था कर जल संरक्षण की दिशा में काम किया जा सकता है।
2. नदी, तालाब, कुआं, झील आदि में गंदा पानी नहीं जाने दें।
3. हरित पट्टी का विकास कर पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है।
4. सीएफएल बल्ब का इस्तेमाल करें। इससे भारी मात्रा में ऊर्जा बचाई जा सकती है।