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साप्ताहिक पंचायतनामा, 10 मार्च 2014
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक मार्च को राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में पंचायत प्रतिनिधियों के राज्य स्तरीय सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान खासे उत्साहित थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि 2017 तक वे राज्य के गांव-गांव में जलापूर्ति व्यवस्था कर देंगे। मुख्यमंत्री का कहना था कि आम लोगों में 80 प्रतिशत बीमारियां प्रदूषित पानी पीने की वजह से होती है। अगर हम स्वच्छ पानी पियेंगे तो कम बीमार होंगे। लेकिन इस लक्ष्य को बिना प्रभावी सरकारी कार्ययोजना व पंचायत प्रतिनिधियों की सक्रियता के पाना बहुत आसान भी नहीं है।
राज्य में लगभग साढ़े चार हजार पंचायत हैं और लगभग 30 हजार गांव और लगभग 1.20 लाख बसावट। पहाड़ी व दूर-दूर स्थित बसावटों के कारण इस राज्य में इस लक्ष्य को पाना राज्य के लिए बड़ी चुनौती है। राज्य की 1.20 लाख बसावटों में लगभग 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति बहुल हैं, जबकि 54 प्रतिशत बसावट जनजातीय बहुल हैं। 32.5 प्रतिशत बसावट में अन्य जाति के लोग रहते हैं। नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोगाम के आंकड़ों के अनुसार, इन बसावटों में लगभग 65 प्रतिशत बसावट को इस मिशन के तहत कवर कर लिया गया। जबकि लगभग 35 प्रतिशत बसावट ऐसी हैं, जिसे 31 मार्च 2014 के अंत तक इस योजना के तहत आंशिक रूप से कवर कर लिए जाने का लक्ष्य है।
दरअसल, झारखंड में जलापूर्ति व्यवस्था के विकेंद्रीकृत प्रबंधन व आम ग्रामीणों को इसमें भागीदार बनाने के लिए वर्ष 2010 में प्रत्येक राजस्व गांव में ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के गठन का निर्देश राज्य सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से दिया गया। इसके तहत हर गांव में जल सहिया का भी चयन किया गया। जल सहिया को उस समिति के कोषाध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई है। सरकार ने यह व्यवस्था बनाई है कि ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं का संचालन ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति ही करेगी। मुखिया को इस समिति के अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई।
राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में लगाए गए 3.55 लाख चापानल की मरम्मत व प्रबंधन की जिम्मेवारी पूरी तरह पंचायत निकायों को सौंप दिया गया। इसकी मरम्मत के लिए जल सहिया को प्रशिक्षण तो दिया ही गया, साथ ही समिति को इनकी मरम्मत करने के लिए अनुबंध के आधार पर मिस्त्री नियुक्त करने का अधिकार दिया गया। यह एक बड़ी पहल है, जो पंचायत निकायों व स्थानीय मुखिया की सक्रियता के बिना सफल नहीं हो सकती।
राज्य सरकार ने पिछले साल सितंबर महीने में एक बड़ा कदम उठाते हुए बहु पंचायत (कुछ पंचायतों को मिला कर) जल एवं स्वच्छता समिति बनाने की भी पहल की। इसके लिए सरकार की ओर से सभी अधीक्षण अभियंता को पत्र भी लिखा गया। इसके तहत सभी पंचायत के मुखिया, उपमुखिया, ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के जल सहिया में से मनोनीत 50 प्रतिशत को इसका सदस्य बनाने की व्यवस्था की गई है।
इसके अलावा उस क्षेत्र की ऐसी पंचायत जहां सर्वाधिक जल संयोजन हुआ हो उसके मुखिया को समिति का अध्यक्ष व दूसरे नंबर सर्वाधिक जल संयोजन वाली पंचायत के मुखिया या उपमुखिया को उक्त समिति के सचिव की जिम्मेवारी सौंपे जाने की व्यवस्था बनाई गई है। बहु पंचायत जल एवं स्वच्छता समिति जलापूर्ति से संबंधित शिकायतों को जल सहिया के ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति की प्रमाणित शिकायत पंजी में दर्ज कराने व उसका अधिकतम तीन दिन में निराकरण कराने की जिम्मेवारी सौंपी गई है।
उसकी जिम्मेवारी है कि वह समय-समय पर शिकायत पुस्तिका का निरीक्षण करे, ताकि योजना के प्रदर्शन में सुधार हो सके और उपभोक्ताओं से बेहतर रिश्ता कायम हो सके। बहु पंचायत जल एवं स्वच्छता समिति सभी ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने व विवादों का निबटारा करने, सभी गांवों में निर्बाध जलापूर्ति व्यवस्था बनाने, नए जल कनेक्शन, जल कर चोरी व अनियमित भुगतान के संबंधित दिशा-निर्देश देने के लिए जिम्मेवार होती है। ऐसे में पंचायतों की भूमिका अहम हो जाती है।
राज्य में लगभग साढ़े चार हजार पंचायत हैं और लगभग 30 हजार गांव और लगभग 1.20 लाख बसावट। पहाड़ी व दूर-दूर स्थित बसावटों के कारण इस राज्य में इस लक्ष्य को पाना राज्य के लिए बड़ी चुनौती है। राज्य की 1.20 लाख बसावटों में लगभग 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति बहुल हैं, जबकि 54 प्रतिशत बसावट जनजातीय बहुल हैं। 32.5 प्रतिशत बसावट में अन्य जाति के लोग रहते हैं। नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोगाम के आंकड़ों के अनुसार, इन बसावटों में लगभग 65 प्रतिशत बसावट को इस मिशन के तहत कवर कर लिया गया। जबकि लगभग 35 प्रतिशत बसावट ऐसी हैं, जिसे 31 मार्च 2014 के अंत तक इस योजना के तहत आंशिक रूप से कवर कर लिए जाने का लक्ष्य है।
दरअसल, झारखंड में जलापूर्ति व्यवस्था के विकेंद्रीकृत प्रबंधन व आम ग्रामीणों को इसमें भागीदार बनाने के लिए वर्ष 2010 में प्रत्येक राजस्व गांव में ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के गठन का निर्देश राज्य सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से दिया गया। इसके तहत हर गांव में जल सहिया का भी चयन किया गया। जल सहिया को उस समिति के कोषाध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई है। सरकार ने यह व्यवस्था बनाई है कि ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं का संचालन ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति ही करेगी। मुखिया को इस समिति के अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई।
राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में लगाए गए 3.55 लाख चापानल की मरम्मत व प्रबंधन की जिम्मेवारी पूरी तरह पंचायत निकायों को सौंप दिया गया। इसकी मरम्मत के लिए जल सहिया को प्रशिक्षण तो दिया ही गया, साथ ही समिति को इनकी मरम्मत करने के लिए अनुबंध के आधार पर मिस्त्री नियुक्त करने का अधिकार दिया गया। यह एक बड़ी पहल है, जो पंचायत निकायों व स्थानीय मुखिया की सक्रियता के बिना सफल नहीं हो सकती।
राज्य सरकार ने पिछले साल सितंबर महीने में एक बड़ा कदम उठाते हुए बहु पंचायत (कुछ पंचायतों को मिला कर) जल एवं स्वच्छता समिति बनाने की भी पहल की। इसके लिए सरकार की ओर से सभी अधीक्षण अभियंता को पत्र भी लिखा गया। इसके तहत सभी पंचायत के मुखिया, उपमुखिया, ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के जल सहिया में से मनोनीत 50 प्रतिशत को इसका सदस्य बनाने की व्यवस्था की गई है।
इसके अलावा उस क्षेत्र की ऐसी पंचायत जहां सर्वाधिक जल संयोजन हुआ हो उसके मुखिया को समिति का अध्यक्ष व दूसरे नंबर सर्वाधिक जल संयोजन वाली पंचायत के मुखिया या उपमुखिया को उक्त समिति के सचिव की जिम्मेवारी सौंपे जाने की व्यवस्था बनाई गई है। बहु पंचायत जल एवं स्वच्छता समिति जलापूर्ति से संबंधित शिकायतों को जल सहिया के ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति की प्रमाणित शिकायत पंजी में दर्ज कराने व उसका अधिकतम तीन दिन में निराकरण कराने की जिम्मेवारी सौंपी गई है।
उसकी जिम्मेवारी है कि वह समय-समय पर शिकायत पुस्तिका का निरीक्षण करे, ताकि योजना के प्रदर्शन में सुधार हो सके और उपभोक्ताओं से बेहतर रिश्ता कायम हो सके। बहु पंचायत जल एवं स्वच्छता समिति सभी ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने व विवादों का निबटारा करने, सभी गांवों में निर्बाध जलापूर्ति व्यवस्था बनाने, नए जल कनेक्शन, जल कर चोरी व अनियमित भुगतान के संबंधित दिशा-निर्देश देने के लिए जिम्मेवार होती है। ऐसे में पंचायतों की भूमिका अहम हो जाती है।