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पंचायतनामा सप्ताहिक पत्रिका, 2 जून 2014
तापीय ऊर्जा
ओथर्मल यानी भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी से प्राप्त की जाती है। यह प्रदूषण रहित ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। पृथ्वी के गर्भ में गैम्मा, यूरेनियम और थोरियम जैसे पदार्थ भारी मात्रा में पाये जाते हैं। इनका उपयोग नहीं होने से निरर्थक रहते हैं। पृथ्वी में संग्रहीत कुल ताप 1,031 जून है। यह ताप संचालन के द्वारा 44.2 मेगा तेरावाट की दर से पृथ्वी की सतह पर आता है। पृथ्वी को लगातार करीब 30 तेरावाट की दर से होने वाले रेडियो सक्रिय क्षरण के द्वारा यह ताप दोबारा प्राप्त होता रहता है। ऐसे में इस पर उपयोग करने से किसी तरह का नुकसान भी नहीं है। अत: इसका उपयोग बिजली उत्पादन में किया जा सकता है।
दुनिया के करीब 20 देश भू-तापीय ऊर्जा के जरिये एक तरफ जहां बिजली प्राप्त कर रहे है वहीं पर्यावरण को भी बचा रहे है। आइसलैंड जैसा छोटा देश अपनी पूरी ऊर्जा का करीब 17 फीसदी हिस्सा इसी प्रणाली से हासिल कर रहा है। वैज्ञानिकों की माने तो भू-तापीय प्रवणता के उपयोग से तापीय ऊर्जा का सतत प्रवाह होता रहता है। देश में करीब तीन सौ स्थानों के बारे में पता लगाया है, जहां सतह के कुछ ही गहराई पर तापमान करीब 35 डिग्री से 9.8 डिग्री तक पाया गया है। इन क्षेत्रों में भू-तापीय ऊर्जा की दोहन की अपार संभावनाएं हैं।
यदि भारत में भू-तापीय ऊर्जा तकनीक अपनायी जाती है तो जहां पर्यावरण प्रदूषण रूकेगा वहीं दो हजार गीगावाट तक बिजली उत्पादन किया जा सकेगा। इस तकनीक से बिजली पैदा करने के साथ ही ऊष्म पंप तकनीक के जरिये भी भू-तापीय ऊर्जा हमारी जरूरतों को पूरा करेगी। ऊष्म पंप के लिए गरम जल भंडार की जरूरत नहीं होती है। इसके अंदर बस एक पाइप डाली जाती है। इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को मिलेगा। कृषि कार्य में बिजली संकट दूर होगा। अमेरिका के ओरेगन शहर में भू-तापीय ऊर्जा के जरिये ऊर्जा प्राप्त कर रहा है। जिन स्थानों पर पानी की मात्रा पर्याप्त है वहां के लिए यह प्रदूषण रहित सबसे कारगर विकल्प हो सकता हैं।
पवन ऊर्जा को विकसित करने की जरूरत
पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए एक बार फिर पवन ऊर्जा तकनीक अपनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जब तेज वायु के दबाव से पवन चक्की को चलाते है तो पवन चक्की से बिजली पैदा होती है। इससे बिजली उत्पादन के लिए अपनाएं जाने वाले दूसरे साधनों पर निर्भरता कम होगी। कोयले की खपत कम होगी और जल व वायु प्रदूषण रूकेगा। आमतौर पर पवन ऊर्जा का प्रयोग रेगिस्तानी, तटीय, पर्वतीय क्षेत्रों में किया जाता है।
फिलहाल देश में पवन ऊर्जा तकनीक से करीब 1,257 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है। महाराष्ट्र में मई 2007-08 में पवन ऊर्जा जेनरेटर का प्रयोग किया गया। यहां पर तीन वायु टरबाइन जेनरेटर है और करीब 3.75 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। राजस्थान के जैसलमेर में लगी पवन ऊर्जा टरबाइन से 21.25 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। यहां से पैदा होने वाली बिजली से विभिन्न जिलों में बिजली की आपूर्ति की जा रही है।
पर्यावरण प्रदूषण बचाने में पवन ऊर्जा को सबसे कारगर उपाय माना जाता है। यही वजह है कि पवन ऊर्जा के मामले में ब्रिटेन दुनिया में सबसे आगे है। चीन, स्पेन, अमेरिका में भी पवन ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। देश में भी इसकी गति बढ़ाने की जरूरत हैं।
बायोगैस
विभिन्न तरह की मृतप्राय वनस्पतियों एवं हमारे आसपास मौजूद कचरे को भी ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे प्रदूषण कम होगा साथ ही हमारी जरूरतें भी पूरी होगी। अक्सर हमारे घरों में भूसा, डंठल, पशुओं के गोबर व रसोई के अपशिष्ट आदि होते हैं। इनका इस्तेमाल हम बायोगैस तैयार करने में कर सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में यह बहुत ही कारगर विकल्प है। बायोगैस का इस्तेमाल भोजन पकाने, तापन रोशनी के लिये एवं कुछ इंजनों में यांत्रिक ऊर्जा पैदा करने में किया जाता है। फिलहाल भारत बायोगैस उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। फिर भी बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और विकास की दौड़ में कम होते हुए और दूसरे संसाधनों को देखते हुए इसे और विकसित किये जाने की जरूरत है।
गोबर गैस अथवा बायोगैस से बायोमास बिजली, बायोमास गैसीकरण द्वारा तापीय और बिजली का इस्तेमाल किया जा सकता है। देश में हर साल करीब नौ करोड़ यूनिट बिजली, बिजली गैस पैदा की जा रही है। शहरी औद्योगिक अपशिष्टों से करीब 3500 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन हो रहा है। लेकिन यह जरिया पर्यावरण हितैषी नहीं है। क्योंकि बायोगैस और बायोमास के द्वारा ऊर्जा उत्पादन से होने वाली गैस वायुमंडल में प्रदूषण फैला रही है।
विकास की दौड़ में अन्य तकनीकों पर बढते खर्च और प्रदूषण को देखते हुये इन दिनों सौर ऊर्जा पर विशेष जोर दिया जा रहा है। सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा को संरक्षित करके हम इसका सदुपयोग कर सकते हैं। सौर ऊर्जा विकिरण के माध्यम से संचयित मात्रा में मिलती है। इसका औसत प्रतिवर्ष करीब तीन सौ दिन है । ऐसे में यह सबसे उपयुक्त माध्यम है। खासतौर से रेगिस्तानी इलाके में यह काफी कारगर साबित हो रहा है।
सौर ऊर्जा के लिये राजस्थान में विभिन्न सौर प्लेटों से उत्पन्न ऊर्जा से पहले टरबाइन चलाया जाता है और फिर बिजली पैदा की जाती है। भारत के अलावा अमेरिका, अल्जीरिया और मोरक्को में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा का उत्पादन करीब 71 मेगावाट है। यहां करीब 70 हजार फोटावेल्टिक प्रणालियों, ढाई हजार से अधिक सौर पंपसेट, पांच लाख सौर लालटेन, ढाई लाख घरेलू प्रकाश व्यवस्था व चार लाख से अधिक पथ प्रकाश व्यवस्था सौर ऊर्जा पर आधारित तैयार की गई है।