बिजली की बढ़ती खपत वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए चुनौती के रूप में उभर कर सामने आई है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार‚ 2020 में कोविड–19 महामारी के दौरान लॉकड़ाउन की स्थिति में भी पूरे विश्व में लगभग साढ़े पांच सौ करोड़ अरब (1018) जूल बिजली की खपत हुई थी। ‘जूल' ऊर्जा की मात्रा मापने की इकाई है। 2021 में यह वैश्विक खपत कुछ प्रतिशत बढ़ी। 2020 में भारत में अंतरराष्ट्रीय बिजली खपत का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा खर्च हुआ था। इसमें मुख्य हिस्सा तेल‚ प्राकृतिक गैस‚ कोयला‚ नाभिकीय ऊर्जा‚ हाइड्रो–इलेक्ट्रिसिटी और अक्षय ऊर्जा के जरिए उत्पन्न बिजली का था। भारत में अब भी कुल राष्ट्रीय बिजली खपत की लगभग 50 प्रतिशत से अधिक बिजली कोयले से उत्पन्न की जाती है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार भारत में बिजली की वार्षिक प्रति व्यक्ति खपत दर 2020 में लगभग 230 करोड़ जूल थी जो अन्य विकासशील देशों की अपेक्षा काफी कम थी। आंकड़ों के अनुसार भारत में इतनी बड़ी मात्रा में बिजली उत्पादन के जरिए 2020 में ही लगभग 230 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन हुआ था जो विश्व कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का लगभग 7 प्रतिशत है। 2020 में पूरे विश्व में बिजली उत्पादन के कारण लगभग 3 लाख बीस हजार लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ था। बिजली उत्पादन मात्र के जरिए उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड गैस की यह मात्रा जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभावों के बारे में सोचने पर बाध्य करती है।
अक्षय ऊर्जा से बढ़ा बिजली उत्पादन
हालांकि काबिल–ए–गौर है कि 2020 में पारंपरिक स्रोतों के इतर अक्षय ऊर्जा के जरिए उत्पादित बिजली की मात्रा में काफी वृद्धि हुई। आंकड़ों के अनुसार‚ वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा में 2019 की तुलना में 2020 में यह वृद्धि लगभग 358 टेराबाईट प्रति घंटे थी जिसमें से इस साल 173 टेराबाईट प्रति घंटे पवन ऊर्जा और 148 टेराबाईट प्रति घंटे सौर ऊर्जा में वृद्धि हुई थी। पवन और सौर ऊर्जा का कुल हिस्सा कुल अक्षय ऊर्जा वृद्धि से मिलने वाली बिजली के अनुपात में लगभग 50 प्रतिशत है। इसके साथ ही इसी साल कोयले से बनी बिजली की खपत में लगभग 405 टेराबाईट प्रति घंटे बिजली की कमी देखी गई जो सुखद सूचना है। हालांकि निकट भविष्य में इले्ट्रिरक वाहनों के बढ़ते प्रयोग के कारण बिजली की खपत में तेज बढ़ोतरी देखी जाएगी। यह बिजली कोयले से बनाई जाती है‚ तो इसे ‘ग्रीन' कहा जाना ठीक नहीं होगा और यह जलवायु पर गंभीर प्रभाव डालेगी।
हालांकि संपूर्ण विश्व के वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ अक्षय ऊर्जा स्रोतों के नये साधनों के विकास और पुराने साधनों की बेहतरी के लिए शोध कर रहे हैं‚ लेकिन बिजली और ऊर्जा खपत के संबंध में जारी आंकड़े इस दिशा में बहुत ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करने को बाध्य करते हैं। अक्षय ऊर्जा से बिजली उत्पादन के ये लक्ष्य कठिन और चुनौतीपूर्ण हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि अक्षय ऊर्जा के सभी स्रोत पूर्ण रूप से ‘ग्रीन' नहीं हैं। इन अक्षय स्रोतों से बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में किसी न किसी बिंदु पर काफी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है। जैसे सौर ऊर्जा को पूरी तरह से ‘ग्रीन' नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार ऊर्जा को बिजली के रूप में बैटरी में एकत्र करने की प्रक्रिया में कई ऐसे इलेक्ट्रॉनिक संघटक हिस्से हैं‚ जिनके निर्माण को पूरी तरह ‘ग्रीन' नहीं बनाया जा सकता है।
यह समझना रोचक होगा कि न तो कोयले से बिजली बनाने की तकनीक को निष्काषित करते हुए इन संयंत्रों को तुरंत बंद किया जा सकता है न ही अक्षय ऊर्जा की अन्य तकनीकों को इतना विस्तृत स्तर पर निÌमत किया जा सकता है‚ कि विश्व की जनसंख्या के लिए बिजली और ऊर्जा की जरूरतों को अचानक पूरा कर दिया जाए। यहां तक कि विशेषज्ञों के अनुसार यह लक्ष्य हाल के कुछ दशकों में भी प्राप्त नहीं किया जा सकेगा। ऐसे में बिजली के वैकल्पिक साधनों और प्राकृतिक संसाधनों की पहचान और उन्हें विकसित करना जरूरी हो जाता है।
अनियंत्रित इस्तेमाल
यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में ऊर्जा की जरूरतें बढ़ रही हैं‚ लेकिन यह भी सत्य है कि वैश्विक स्तर पर बिजली का अनियंत्रित रूप से इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में बिजली या ऊर्जा की संतुलित और बुद्धिमत्तापूर्ण तरीकों से खपत करने से काफी हद तक बिजली की बचत की जा सकती है। यह खपत ऊर्जा के उत्पादन की पूरक होगी। दैनिक क्रियाकलाप के दौरान इस प्रकार काफी मात्रा में बिजली बचा लिए जाने से बिजली उत्पादन के स्रोतों पर अत्यधिक भार नहीं होगा और बेहतरी के प्रयासों में तेजी आएगी। एक उदाहरण के तौर पर अक्सर लोग गर्मी के समय में घरों में वातानुकूलन बहुत अधिक कर लेते हैं‚ यह एक व्यावहारिक समस्या है। घरों को ठंडा रखने के स्तर और प्रक्रिया को संतुलित करके बिजली की खपत को लगभग 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। हमारे घरों में निर्माण के समय अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता कि घरों में पर्याप्त रोशनी आएगी और हवा का सुगम संचार होगा या नहीं। घरों के निर्माण के समय इन बातों का ध्यान देते हुए अगर दिन में खर्च होने वाली बिजली को बचा लिया जाए तो यह बिजली खपत का बड़ा हिस्सा कम कर देगी। इस दिशा में जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं‚ और लोगों को जानकारियां देना कारगर साबित होगा। भवन निर्माण के लिए विशेषज्ञों को ऐसे तरीके खोजने की दिशा में प्रयास करने चाहिए जो रोजमर्रा की प्रक्रियाओं में प्राकृतिक रूप से बिजली की खपत को कम करने में सफल हों।
हालांकि तकनीकी विशेषज्ञ विभिन्न अक्षय ऊर्जा साधनों को और अधिक संवÌधत और विकसित करने के तकनीकी प्रयास जोर–शोर से कर रहे हैं। प्रयासरत हैं कि कैसे सौर ऊर्जा वाले पैनलों की उत्पादकता और क्षमता बढ़ाई जा सके या उनकी कीमत कम की जा सके। लेकिन बिजली की खपत को पूरा करने के लिए इन मूलभूत तकनीकी विषयों से इतर सोचने की जरूरत भी है। भारत जैसे देशों में जहां वैकल्पिक ऊर्जा के प्रचुर संसाधन मौजूद हैं‚ वहां इनके बुद्धिमत्तापूर्ण दोहन के नये और उत्तम तरीके ईजाद होने जरूरी हैं। उदाहरण के तौर पर भारत में दिन के समय में सूरज की रोशनी सामान्यतः पर्याप्त होती है। ऐसे में ऑफिस और अन्य स्थानों पर ऐसी व्यवस्थाएं की जानी चाहिए कि यह रोशनी अच्छी तरह से कमरों को रोशन करे और कृत्रिम रूप से बिजली के बल्ब लगाने की जरूरत न पड़े। इस प्रक्रिया को तकनीकी रूप से इस प्रकार बेहतर किया जाना चाहिए कि दफ्तरों या अन्य स्थानों पर यह प्राकृतिक रोशनी बहुत ही सौंदर्यपूर्ण तरीके से आए और इस प्रक्रिया में भवनों को कम से कम संशोधित करना पड़े। भवनों के अंदर प्राकृतिक रोशनी का सौंदर्य और नियंत्रण कृत्रिम रोशनी का एक नया विकल्प पेश करेगा।
भारत में कुछ ऐसे स्टार्ट–अप्स हैं‚ जो अब सौंदर्यपूर्ण तरीकों से रोशनी के प्राकृतिक स्रोतों का इस्तेमाल करके दिन में दफ्तरों और भवनों को रोशन करके 60–70 प्रतिशत बिजली की बचत करने के लक्ष्य को पाने के प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों की सफलता बेहतरीन उपलब्धि साबित होगी। हमें बिजली की संतुलित खपत के बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके खोजने चाहिए और इनके बारे में जनता को जागरूक करना चाहिए। बिजली के प्राकृतिक विकल्प ऊर्जा प्रबंधन में क्रांतिकारी रूप से सहायक होंगे।