पानी की कीमत क्या है इसका जवाब अगर चाहिए तो आपको दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर के लोग बड़ी बता पाएंगे और समझा भी पाएंगे क्योंकि ऐसा हो सकता है की आपको आने वाले समय में केपटाउन शहर के लोग सेना की मौजूदगी में पानी की सुरक्षा करते हुए भारतीय दिखाई देंगे अभी फिलहाल इस शहर के लोगो को 50 लीटर पानी प्रतिव्यक्ति मिल रहा है और अगर हालात ऐसे ही रहे तो शायद ये 2 से तीन सालो में 25 लीटर प्रतिव्यक्ति तक पहुंच जाएगा और जब ऐसा होगा तो आपको सेना की सुरक्षा के बीच पानी भरना होगा
लेकिन चिंता की बात ये है कि दक्षिण अफ्रीका का ये एकमात्र शहर नहीं है जो पानी की जबरदस्त किल्लत से जूझ रहा है दुनिया भर में ऐसे कई और शहर है जो पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे है और भारत भी इससे अछूता नहीं है आज हम आपको भारत के एक ऐसे शहर की कहानी बता रहे है जहाँ लोगो को कई किलोमीटर दूर तक पैदल जाकर पानी ढोना होता है और ये देख एक शख्स ने कुछ ऐसा किया जो आज अखबारों की सुर्खियों में है और लोग उसे दुआएं दे रहे है
बुंदेलखंड हमेशा पानी की किल्लत को लेकर चर्चा में रहता है. यहां के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी लोग बूंद-बूंद के लिए जद्दोजहद करते नजर आए हैं. इसी बीच एक ऐसी तस्वीर सामने आयी है, जिसकी हर जगह चर्चा है. एक युवक ने जब आदिवासियों को घाटी से चढ़कर दो किलोमीटर दूर से पानी लाते देखा तो उसका दिल पसीज गया. उसने इस समस्या को खत्म करने की ठानी और बीते चार साल से वो उन आदिवासियों को हर हाल में पानी उपलब्ध करा रहा है. ये मामला दमोह जिले के बटियागढ़ ब्लॉक के गीदन गांव का है.
पिछले चार साल से हर दिन शाहजादपुरा निवासी नरेंद्र कटारे उस गांव में पानी का टैंकर लेकर पहुंचा रहा है, जहां प्रशासन हार मान चुका है. गौर करने वाली बात ये है कि पानी के परिवहन पर युवक अब तक 10 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर चुका है. गीदन में पानी की विकराल समस्या है. जलस्तर हजार फीट से भी ज्यादा नीचे है और गांव में एक भी कुआं नहीं है, कुछ बोर किए गए थे, लेकिन उनमें पानी नहीं निकला. गांव में एक हैंडपंप चालू है, जो पूरे दिन में बमुश्किल 30 लीटर ही पानी दे पाता है
गांव वालों की समस्या देखकर नरेंद्र कटारे ने पानी पहुंचाने के लिए रोज दो टेंकर भेजना शुरू किया. ये सिललिसा पिछले चार साल से लगातार जारी है. नरेंद्र कटारे ने बताया कि गांव के प्रत्येक परिवार को टेंकर से पानी दिया जाता है, ताकि कोई प्यासा न रहे और उन्हें परेशान न होना पड़े.
नरेंद्र कटारे खुद 45 एकड़ के किसान हैं. उनका कहना है कि वे अपने इस काम को सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं. इससे लोगों के मन में गलत संदेश जाता है. उनका मानना है कि समाज सेवा की जाती है, बताई नहीं जाती. नरेंद्र कटारे ने बताया कि गांव में जब किसी के घर शादी-विवाह या फिर दूसरा कार्यक्रम होता है तो अलग से दो टेंकर पानी भेजा जाता है. नरेंद्र के घर बोर है और इसी बोर से पूरे गांव की प्यास बुझ रही है. इसका न पंचायत और न ही आदिवासियों से कोई पैसा नहीं लिया जाता.