अगर पानी बहना बंद हो जाए, तो नीदकट्टी (पारंपरिक जल प्रबंधक) भी नहीं रह पाएंगे। चिट्टू जिले के पंगनूर चेरूवु गांव की एक 60 वर्षीय महिला एन आर पेद्दमइयाह अपनी रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यूँ तो उनके काम को तलाशना काफी मुश्किल है, परन्तु उसे इसका कोई मेहनताना नहीं मिलता है। उनका कहना है कि, “जब तक कि मैं जिन्दा हूँ तब तक यह परम्परा जारी रहेगी, लेकिन मेरे बाद क्या होगा, इसका संदेह है।“
उसके पति ने आजीविका के संकट के कारण नीरकट्टी के रूप में काम करना बंद कर दिया था, लेकिन फिर पेद्दमइयाह ने इसका कार्यभार अपने हाथों में लिया। यहां उनके काम की काफी चर्चा है। इतनी ज्यादा की गांववाले झगड़े के निपटारे के लिए कभी भी गांव के मुखिया से सलाह नहीं करते हैं और सिंचाई विभाग वाले अपने अधीन इस स्थानीय टैंक के मामले में कभी दखल नहीं देते हैं। यद्यपि हर साल दो और नीरकटि्टयों का चुनाव किया जाता है, लेकिन वही इस टैंक की देवी है।
फिर भी यहां कभी-कभार बारिश के कारण उसकी हालत काफी खराब हो गई है। क्योंकि बारिश की कमी और जल ग्रहण क्षेत्र की बर्बादी के कारण उनकी भूमिका सिमटती जा रही हैं। वह कहती हैं कि “पहले किसान टैंक और नीरकट्टी में रुचि लेते थे, क्योंकि उस समय टैंक में पानी हुआ करता था। परन्तु पर्याप्त पानी न होने से उनकी रुचि कम होती जा रही है।“
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : एन आर पेद्दमइयाह, गांव पंगनूर चेरुवु जिला चिट्टू, आंध्र प्रदेश
उसके पति ने आजीविका के संकट के कारण नीरकट्टी के रूप में काम करना बंद कर दिया था, लेकिन फिर पेद्दमइयाह ने इसका कार्यभार अपने हाथों में लिया। यहां उनके काम की काफी चर्चा है। इतनी ज्यादा की गांववाले झगड़े के निपटारे के लिए कभी भी गांव के मुखिया से सलाह नहीं करते हैं और सिंचाई विभाग वाले अपने अधीन इस स्थानीय टैंक के मामले में कभी दखल नहीं देते हैं। यद्यपि हर साल दो और नीरकटि्टयों का चुनाव किया जाता है, लेकिन वही इस टैंक की देवी है।
फिर भी यहां कभी-कभार बारिश के कारण उसकी हालत काफी खराब हो गई है। क्योंकि बारिश की कमी और जल ग्रहण क्षेत्र की बर्बादी के कारण उनकी भूमिका सिमटती जा रही हैं। वह कहती हैं कि “पहले किसान टैंक और नीरकट्टी में रुचि लेते थे, क्योंकि उस समय टैंक में पानी हुआ करता था। परन्तु पर्याप्त पानी न होने से उनकी रुचि कम होती जा रही है।“
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