गाँवों में साफ-सफाई को लेकर आई जागरूकता

Submitted by Hindi on Tue, 06/13/2017 - 15:47
Source
कुरुक्षेत्र, मई 2017

देश के गाँवों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता की एक नई लहर उठने लगी है। जो काम वहाँ अब तक नहीं हुए थे, वो अब हो रहे हैं। बड़ी तादाद में देश के लाखों गाँव शौचालयों से युक्त हो रहे हैं, सेनिटेशन की एक नई अवधारणा लोगों की समझ में आने लगी है- सबसे बड़ी बात जो दो-तीन वर्षों में हुई है, वो ये है कि लोगों की अच्छी तरह समझ में आ गया है कि खुले में शौच करना किसी भी लिहाज से उचित नहीं। इसी तरह पानी की स्वच्छता को लेकर नई समझ विकसित हो रही है।

सेनिटेशन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी कहते थे कि हमारे देश की आत्मा गाँवों में बसती है। अगर असल देश के दर्शन करने हों तो बस कहीं नहीं, गाँवों में घूम आइये। वैसे ये भी सही है कि भारत को छोड़ दुनिया में शायद कोई ऐसा देश होगा, जहाँ इतनी प्रचुर संख्या में गाँव होंगे और जो संस्कृति से लेकर कृषि और विविध संस्कृति की एक समृद्ध और रंगबिरंगी तस्वीर पेश करते होंगे। आज भी जब गाँवों की बात होती है तो वहाँ के हरे-भरे खेत, शुद्ध आबोहवा और प्रकृति के साथ तालमेल की अलग ही मनोरम तस्वीर उभरती है। ये तस्वीर अब और बेहतर हो रही है क्योंकि देश के गाँवों में स्वच्छता के प्रति एक नई लहर उठने लगी है। जो काम वहाँ अब तक नहीं हुए थे, वो अब हो रहे हैं। बड़ी तादाद में देश के लाखों गाँव शौचालय से युक्त हो रहे हैं, सेनिटेशन की एक नई अवधारणा लोगों की समझ में आने लगी है- सबसे बड़ी बात जो इन दो-तीन वर्षों में हुई है, वो ये है कि लोगों की अच्छी तरह समझ में आ गया है कि खुले में शौच करना किसी भी लिहाज से उचित नहीं। इसी तरह पानी की स्वच्छता को लेकर नई समझ विकसित हो रही है। अब गाँव जाने पर ये दिखने लगा है कि किस तरह ज्यादातर घरों में या तो पक्के शौचालय बन चुके हैं या फिर बन रहे हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार 68.84 प्रतिशत भारतीय देश के 6,40,867 गाँवों में ही निवास करते हैं। भारत में 2,36,004 गाँव ऐसे हैं, जहाँ की आबादी 500 व्यक्तियों से भी कम हैं, जबकि 3,676 गाँवों की आबादी 1000 व्यक्तियों से भी अधिक है। भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में पिछले दो सालों में 3.9 करोड़ घर शौचालय युक्त हो चुके हैं। करीब 1.9 लाख गाँव ऐसे हैं, जहाँ लोग अब खुले में शौच जाने से तौबा कर चुके हैं यानी वो हो चुके हैं स्वच्छता से चकाचक।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में बताया, “उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में गंगा किनारे स्थित 75 प्रतिशत गाँवों को खुले में शौचमुक्त घोषित कर दिया गया है।” आंकड़ों के अनुसार इन गाँवों की संख्या 3.735 है, जहाँ हर घर में शौचालय की सुविधा है। इस, सुविधा में सरकार भागीदार बनी है, जिसने गाँव के लोगों को इसके निर्माण के लिये आर्थिक मदद उपलब्ध कराई है। ये मदद बहुत आसान है। पंचायतों से लेकर जिलास्तर पर सम्बंधित कार्यालयों से लेकर जिले का सरकारी वेबसाइट पर इसकी सारी जानकारी उपलब्ध कराई गई है। आपको ये तक बताया गया है कि इसका डिजाइन कैसा होना चाहिये। इस तरह के शौचालयों में किस तरह की दूसरी व्यवस्थाएँ होनी चाहिये। सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए फॉर्म को भरिये और इसके लिये आर्थिक मदद हासिल कर लीजिए। पहले अगर इसके लिये आर्थिक मदद 10 हजार रुपये थी तो अब ये बढ़कर 12 हजार हो गई है। इसमें केंद्र सरकार 9000 रुपये देती है तो 3000 रुपये राज्य सरकार की ओर से मिलते हैं।

ये आसान प्रक्रिया है। पात्र परिवारों द्वारा शौचालयों के निर्माण हेतु ग्राम पंचायत में आवेदन करना होता है। सम्बंधित विकास अधिकारी की मंजूरी के बाद खुद की राशि से घर में निश्चित डिजाइन के आधार पर शौचालय का निर्माण कराना होता है। जब पंचायत इस निर्मित शौचालय का सत्यापन कर देती है तो लाभार्थी के खाते में सरकार की ओर से तय धनराशि पहुँच जाती है।

हो सकता है कि किसी गाँव में पारिवारिक शैचालयों के लिये जगह की कमी हो तो फिर उसके लिये सामुदायिक स्वच्छता परिसर की व्यवस्था की जाएगी। समुदाय या ग्राम पंचायत उनके परिचालन और रख-रखाव की जिम्मेदारी लेंगे। इसको बनाने के लिये अधिकतम दो लाख रुपये का प्रावधान है। इसमें ग्राम पंचायत को 10 प्रतिशत सहयोग राशि उपलब्ध करानी होती है।

जिस रफ्तार से ये योजनाएं चल रही हैं और गाँवों में लोग इन्हें हाथों-हाथ ले रहे हैं, उससे लगता है कि अगले दो सालों में वाकई देश की तस्वीर बदल जाएगी। तब ये कहना वाकई गर्व की बात होगी कि भारत के सभी गाँवों के करोड़ों घर अब शौचालयों से युक्त हैं। कहीं कोई भी गाँव या जिला ऐसा नहीं है, जहाँ लोग खुले में शौच कर रहे हों। केंद्र और सरकारी एजेंसियों ने इस प्रोग्राम को जिस तरह लागू किया और जिस तरह लोगों का सहयोग मिला, वो दिखाता है कि एक समझ और नजरिया विकसित करने की जरूरत है, फिर लोगों की समझ में आने लगता है कि उनके लिये गलत और सही क्या है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले में शौच करने की प्रवृत्ति को रोकने में प्रचार माध्यमों से भी खासी मदद मिल रही है। कई ऐसे गाँव भी हैं, जहाँ खुले में शौच करने वालों पर जुर्माना किया जाता है या फिर उनका बहिष्कार तक हो जाता है।

पिछले दिनों राज्यसभा में पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री ने बताया था कि पिछले वर्ष स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के बाद से शौचालय के निर्माण में 446 प्रतिशत की वृद्धि हुई है तथा 46 प्रतिशत ग्रामीण घरों में अपने शौचालय हैं। मंत्रालय की अॉनलाइन निगरानी प्रणाली पर राज्यों द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना के हिसाब से 46.01 प्रतिशत ग्रामीण घरों में शौचालय हैं।

प्रधानमंत्री खुद कहते हैं कि उनकी सरकार ने इस काम को प्राथमिकता के आधार पर लिया है। उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2014 में सरकार की ओर से स्वच्छ भारत अभियान शुरू किए जाने के बाद 130 जिलों में 1.8 लाख से अधिक गाँवों को खुले में शौच-मुक्त घोषित कर दिया गया है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में शौचालय सुविधा वाले घरों का प्रतिशत 42 से बढ़कर 63 प्रतिशत हो गया है। ये भी बताया कि सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और केरल को खुले में शौचमुक्त घोषित कर दिया गया है जबकि गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड और कुछ अन्य राज्य उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। नि:संदेह हमारे नित्य जीवन में कचरे से हम मुक्ति तो नहीं पा सकते, लेकिन कितना अच्छा हो कि अगर इसका उपयोग ऊर्जा या खाद के उत्पादन में होने लगे, लिहाजा गाँवों में इस तरह की योजनाएँ भी साथ-साथ लागू की जा रही हैं। केंद्र सरकार ने अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम की योजना बनाई है ताकि गाँवों का कचरा नदी को प्रदूषित नहीं करे। प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि ये सब लागू होने के बाद वर्ष 2019 तक गंगा का तट जल्द ही खुले में शौच मुक्त बनेगा। हमारी ये पवित्र नदी वाकई तब पुण्यसलिला बन जाएगी। ये भी विकल्प तलाशा जाएगा कि किस तरह कचरे से बिजली पैदा कर उसे आजीविका का जरिया बनाया जाए या फिर कचरे को रिसाइकिल करके खाद के रूप में इसका उपयोग किया जाये।

 

ग्रामीण घरों में सबसे ज्यादा शौचालय (प्रतिशत में)

सिक्किम

98.2

केरल

97.6

मिजोरम

96.2

हिमाचल प्रदेश

90.4

नागालैंड

90.2

ग्रामीण घरों में सबसे कम शौचालय (प्रतिशत में)

झारखंड

18.8

छत्तीसगढ़

21.2

ओडिशा

26.3

मध्य प्रदेश

27.5

उत्तर प्रदेश

29.5

खुले में शौच की स्थिति

ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच के लिये जाने वाले लोग

52.1 प्रतिशत

शहरी क्षेत्रों में खुले में शौच के लिये जाने वाले लोग

7.5 प्रतिशत

ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय वाले घर

45.3 प्रतिशत

शहरी क्षेत्रों में शौचालय वाले घर

88.8 प्रतिशत

ग्रामीण क्षेत्रों मे शौचालय में पानी की उपलब्धता वाले घर

42.5 प्रतिशत

शहरी क्षेत्रों मे शौचालय में पानी की उपलब्धता वाले घर

87.9 प्रतिशत

 

 

बजट में लगातार बढ़ोतरी


स्वच्छता मिशन की शुरूआत के समय ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 2,850 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था, जोकि चालू वित्तवर्ष में बढ़ाकर 9000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसमें लगातार बढ़ोतरी की जा रही है। वर्ष 2014-2015 का बजट आवंटन 2,850 करोड़ था, जबकि इसके अगले वित्तवर्ष में 6,525 करोड़ रुपये। इसे 2016-17 में बढ़ाकर 9000 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसी से जाहिर है कि सरकार किस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता मिशन को प्राथमिकता दे रही है।

गाँधी जी का सपना


पता नहीं कितने लोगों को यह मालूम है कि नहीं गाँधी जी जब वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत आये, तब उन्होंने तय किया कि अब वह इस देश को जानेंगे, इसके लिये उन्होंने देश भर का भ्रमण शुरू किया। इसके जरिये वो अगर आजादी आंदोलन के लिये देश की जनता को समझबूझ रहे थे तो उनके मन में एक सामाजिक आंदोलन भी जन्म ले रहा था। वह देश में गंदगी का आलम और जात-पात की बाधाओं को देखकर विचलित थे। वह जहाँ कहीं भी जाते थे तो स्वच्छता की अपील जरूर करते थे। बल्कि यूँ कहिये कि खुद ही साफ-सफाई करके लोगों को अहसास दिलाते थे कि हमारे रोजाना के जीवन में सफाई का कितना महत्व है। वह दिल से चाहते थे कि हमारे गाँव व शहर स्वच्छ हों। उन्होंने इस पर काफी कुछ लिखा भी। गाँधी जी ने देश को आजाद करा दिया लेकिन उनके मन में ये कसक जरूर थी कि वह स्वच्छता को लेकर कोई बड़ा आंदोलन क्यों न छेड़ सके। जो काम गाँधी जी छोड़ गये थे, उसे पूरा करने का दायित्व श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बखूबी समझ रही है। इसलिए वह महात्मा गाँधी द्वारा परिकल्पित स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करना चाहती है। जिस दिन भारत के गाँव स्वच्छ हो गये, यकीन मानिए कि अपना देश उसी दिन असली स्वच्छ भारत हो जायेगा। यही गाँधी जी को सच्ची श्रद्धांजली भी होगी। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, “गाँधी जी ने ब्रिटिश शासन से देश को आजाद कराने के लिये सत्याग्रह किया तो गंदगी के खिलाफ एक युद्ध शुरू करने के लिये एक स्वच्छाग्रह शुरू करने का समय आ गया है।”

मुख्य तौर पर कहा जा सकता है कि स्वच्छ भारत का लक्ष्य शहरों से कहीं ज्यादा गाँवों के लिये है। ग्रामीण भारत के लिये केंद्र सरकार ने निर्मल भारत अभियान चलाया हुआ है, ये पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र की मांग-आधारित एवं जनकेंद्रित अभियान है, जिसमें लोगों की स्वच्छता संबंधी आदतों को बेहतर बनाना, स्व-सुविधाओं की मांग उत्पन्न करना और स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध कराने के साथ ग्रामीणों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लक्ष्य शामिल हैं। इसमें अगर वर्ष 2017 तक संपूर्ण स्वच्छता पर्यावरण का सृजन करने की बात है तो वर्ष 2020 तक उन्नत स्वच्छता प्रथा अपनाने की लक्ष्य, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोगों को, खासतौर पर बच्चों और उनकी देखभाल करने वालों का सुरक्षित स्वच्छता पर पूरा जोर होगा। फिर 2022 तक गाँवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन पूरी तरह होने लगेगा। यानी ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन इस प्रकार होगा कि गाँव का परिवेश हर समय स्वच्छ बना रहे। बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण भारत में कचरे का इस्तेमाल उसे पूँजी का रूप देते हुए जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करने के लिये किया जाएगा। इस अभियान को बड़े पैमाने पर करके गाँवों में रहने वाले लोगों के साथ ही स्कूल के शिक्षकों और वहाँ पढ़ रहे बच्चों को भी इससे जोड़ा जाएगा। स्कूल-स्तर पर ही बच्चे अगर खुद सफाई से जुड़ें और खुद वहाँ सफाई के कामों में हाथ बटाएँ तो उनमें स्वच्छता को लेकर एक प्रवृत्ति शुरू से विकसित होगी। इससे देश भर की ग्रामीण पंचायत, समिति और जिला परिषद भी जोड़े जाएँगे। साथ ही, गाँवों में पेयजल की शुद्धता की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है और उसके लिये योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

गाँव जो बने मिसाल


ऐसा भी नहीं है कि ये मान लिया जाए कि सरकार को हाथों में जादू की छड़ी है। उससे वो सब कुछ बदल देगी। इसमें गाँवों की स्वैच्छिक भागीदारी भी उतनी ही जरूरी है। कुछ गाँव तो वाकई उदाहरण पेश कर रहे हैं जहाँ का हर नागरिक स्वच्छता को लेकर खुद जागरूक है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के गाँव रक्षम के लोग सफाई को लेकर काफी जागरूक हैं। गाँव को जरा भी गंदा नहीं होने देते। इस गाँव के निवासियों में युवा अत्यधिक हैं जिनकी औसत आयु 20 वर्ष है, जो गाँव में स्वच्छता बनाए रखने के लिये पूर सहयोग करते हैं। पंचायत की ओर से 150 परिवारों को मुफ्त डस्टबिन और झाड़ू बाँटी गई हैं। गाँव की आबादी 2000 के करीब है। सफाई ढंग से हो सके इसके लिये वार्ड-स्तर पर कई कमेटियाँ बनाई गई हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में लोग स्वच्छता के प्रति इतने जागरूक हो गये हैं कि आपको गाँव में ढूंढने से भी गंदगी नहीं मिलेगी।

इसी तरह उत्तर प्रदेश के बलिया का गाँव छिलौनी एक उदाहरण बन गया है। इस गाँव के लोग हर रविवार को सफाई दिवस के तौर पर मनाते हैं। मिलकर पूरे गाँव की सफाई करते हैं। इस गाँव के 60 प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी करते हैं। रविवार को फ़ुरसत मिलने पर मिलकर सफाई में जुट जाते हैं। गाँव के तालाब, सड़कें, गलियों को हर रविवार साफ किया जाता है।

इसी तरह हरियाणा के गाँव झट्टीपुर में कदम रखते ही इस गाँव के कुछ खास होने का अहसास हो जायेगा। दिल्ली से 92 किमी दूर पानीपत जिले के इस गाँव की सड़कों पर कहीं कूड़ा नहीं दिखता। हर गली के लिये एक अलग सफाई कर्मचारी। हर घर में पक्का शौचालय। हर व्यक्ति में सफाई का जज्बा। महज तीन महीने में इस गाँव ने अपनी शक्ल बदल ली। इसके सरपंच हैं अशोक, जिन्होंने झट्टीपुर का सरपंच चुने जाते ही तय कर लिया कि वो गाँव को बदल डालेंगे। उन्होंने पहला काम किया लोगों की सोच को बदलने का। शौचालय बनाने के लिये मिलने वाली सरकारी मदद की जानकारी तो दी, लेकिन पैसे के मिलने का इंतजार नहीं किया। आपसी मदद से उन घरों में शौचालय बना डाले जहाँ इनकी कमी थी। सड़कों की सफाई के लिये एक खास तरीका अपनाया गया। हर गली के सफाई कर्मी का नाम, फोन नंबर और सफाई का समय उस लगी की दीवार पर लिखा है। इसके बावजूद अगर सड़क पर गंदी दिखे तो इसकी शिकायत सरपंच के मोबाइल नंबर पर की जा सकती है। सफाई से जुड़ी किसी भी शिकायत की सुनवाई पंचायत 24 घंटे के भीतर करती है। अब पंचायत जल्द ही यहाँ ई-टाॅयलेट लगाने जा रही है। हालाँकि ऐसे साफ-सुथरे गाँवों की कमी नहीं है। पिछले दो-ढाई वर्षों में उनकी तादाद बढ़ी है। अगर इन गाँवों की तरह लोग सफाई के प्रति जागरूक हो जाएँ तो देश की नई तस्वीर बन जाएगी।

ग्रामीण घरों में शौचालय


ग्रामीण घरों में शौचालयों की संख्या के मामले में देश के श्रेष्ठ पाँच राज्यों में सिक्किम सबसे आगे है, यहाँ 98.2 प्रतिशत ग्रामीण घरों में शौचालय है, जबकि सबसे कम शौचालयों वाले पाँच राज्यों में झारखंड सबसे आखिरी पायदान पर है। इस राज्य में केवल 18.8 प्रतिशत ग्रामीण घरों में ही शौचालय हैं।

 

हर घर जल का सपना वर्ष 2030 तक होगा साकार

 

सरकार ने 25000 हजार करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ मार्च 2021 तक देश में लगभग 28000 प्रभावित बस्तियों को सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने के लिये आर्सेनिक और फ्लोराइड पर राष्ट्रीय जलगुणवत्ता उपमिशन शुरू किया है। राज्यों के सहयोग से मिशन का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता और पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि जहाँ एक ओर पश्चिम बंगाल आर्सेनिक की समस्या से बुरी तरह प्रभावित है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान पेयजल में फ्लोराइड की मौजूदगी से जूझ रहा है, जिससे स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 17 लाख 14 हजार ग्रामीण बस्तियाँ हैं, जिनमें से लगभग 77 फीसदी बस्तियों को प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 40 लीटर से भी ज्यादा सुरक्षित पेयजल मुहैया कराया जा रहा है। उधर, इनमें से लगभग 4 फीसदी बस्तियाँ जल गुणवत्ता की समस्या से जूझ रही हैं। मंत्री महोदय ने यह आश्वासन दिया कि पेयजल एवं स्वच्छता की दोहरी चुनौतियों से निपटने के दौरान धनराशि मुहैया कराने के मामले में किसी भी राज्य के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। 12 राज्यों के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रियों ने ‘सभी के लिये जल एवं स्वच्छ भारत’ पर आयोजित की गई राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लिया।

 

श्री तोमर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप वर्ष 2030 तक प्रत्येक घर को निरंतर नल को पानी उपलब्ध कराने के लिये सरकार प्रतिबद्ध है, जिसके लिये लक्ष्य पूरा होने तक हर वर्ष 23000 करोड़ रुपये के केंद्रीय कोष की जरूरत पड़ेगी। मंत्री महोदय ने कहा कि देश के नागरिकों की भागीदारी के बगैर ‘हर घर जल’ के सपने को साकार नहीं किया जा सकता  है। उन्होंने कहा कि देश में लगभग 2000 ब्लाॅक ऐसे हैं जहाँ सतह एवं भूमिगत जलस्रोतों की भारी किल्लत है। उन्होंने ‘मनरेगा’ जैसी योजनाओं के बीच समुचित सामंजस्य बैठाते हुये युद्धस्तर पर जल संरक्षण के लिये आह्वान किया।

 

श्री तोमर ने बताया कि अक्टूबर 2014 में स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के शुभारंभ के बाद से लेकर अब तक स्वच्छता कवरेज 42 फीसदी से बढ़कर 62 फीसदी के स्तर पर पहुँच गई है। उन्होंने कहा कि सिक्किम, हिमाचल प्रदेश एवं केरल, जो ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) राज्य हैं, के अलावा 4-5 और राज्य भी अगले 6 महीनों में ओडीएफ हो सकते हैं। अब तक 119 जिले और 1.75 लाख गाँव ओडीएफ हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र ने इस दिशा में समय पर प्रगति के लिये राज्यों को प्रोत्साहन देने की घोषणा की है। मंत्री महोदय ने यह बताया कि एसबीएम के शुभारंभ से लेकर अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में 3.6 करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है। ‘मनरेगा’ के तहत 16.41 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है।

 

 

 

वे साधारण लोग, जिन्होंने दिया ‘स्वच्छ भारत’ में महत्त्वपू्र्ण योगदान

 

कुंवर बाई : छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के एक गाँव में रहने वाली इन 105 साल की बुजुर्ग महिला ने अपने घर में शौचालय बनवाने के लिये अपनी बकरियाँ बेच दी। इस तरह उन्होंने एक मिसाल कायम कर गाँव के अन्य लोगों को भी अपने घरों में शौचालय बनवाने के लिये प्रेरित किया और गाँव को खुले में शौच से मुक्त बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं, वे स्वच्छ भारत मिशन की प्रतीक हैं।

 

राजेश थापा : पश्चिम सिक्किम में एक माध्यमिक स्कूल के प्राधानाचार्य राजेश थापा ने छात्रों को प्लास्टिक की बोतलों और डिब्बों से गुलदस्ते और अन्य उपयोगी सामग्री बनाने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग और अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक किया।

 

सुशीला कंवर : राजस्थान के उदयपुर जिले में एक गाँव की सरपंच सुशीला कंवर ने गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिये अभियान चलाया, उन्होंने खुले में शौच जाने वाले लोगों को शर्मिंदा करने और रोकने तथा घरों में शौचालय बनवाने के लिये छात्रों को भी अपने अभियान में शामिल किया। उन्होंने खुले में शौच जाने और अपने घरों में शौचालय न बनवाने वाले ग्रामीणों पर जुर्माना भी लगाया।

    

 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।), ई-मेल: sanjayratan@gmail.com