स्वच्छता अभियान में एक तथ्य की ओर बहुत ही कम ध्यान दिया जाता है, जबकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। किशोरावस्था में स्वच्छता एवं सफाई का व्यक्तित्व पर व्यापक असर पड़ता है। किशोरावस्था में बच्चों के व्यक्तित्व विकास एवं उनके जीवन में हो रहे बदलावों के बीच स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छता एवं सफाई का व्यापक महत्व है। यदि किसी समूह में या खासतौर से किसी कक्षा में किशोर-किशोरियों या बच्चों से इस बात की चर्चा की जाए कि किनके घरों में शौचालय है एवं किनके परिवार के लोग शौच के लिए बाहर जाते हैं, तो बच्चों या किशोर-किशोरियों के व्यक्तित्व में साफ अंतर दिखाई पड़ेगा।
भारत सरकार हो या फिर राज्यों की सरकारें, पिछले कुछ सालों सभी का जोर स्वच्छता अभियान पर है। हजारों करोड़ रुपए के बजट के साथ ‘निर्मल भारत’, ‘मर्यादा अभियान’ एवं अन्य योजनाएं चलाई जा रही हैं। एक ओर बॉलीवुड की मशहूर नायिका विद्या बालन तो दूसरी ओर शौचालय के अभाव में ससुराल से पहले दिन वापस मायके लौट आने वाली मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की अनिता ब्रांड अंबेसडर के रूप में समाज को इस बात के लिए प्रेरित कर रही हैं कि वे शौचालय बनवाएं एवं मर्यादापूर्ण तरीके से जिएं।भारत में न केवल ग्रामीण बल्कि शहरी क्षेत्र में शौचालयों का अभाव है। व्यक्तिगत शौचालय की बात तो दूर है, सार्वजनिक शौचालय भी उतनी संख्या में नहीं है, जिससे कि लोग उसका उपयोग कर सकें। रेल की पटरियों के किनारे, सड़क के किनारे और नदी या तालाब के किनारे शौच की गंदगी ऐसी स्थिति है, जो शर्मींदगी का कारण बना हुआ है। निर्मल भारत से पहले संपूर्ण स्वच्छता अभियान के माध्यम से निर्मल ग्राम की परिकल्पना की गई, जिसमें गांव में स्वच्छ पानी की उपलब्धता, कचरे का प्रबंधन एवं स्वच्छता सुविधाओं की उपलब्धता पर जोर दिया गया। सभी घरों में शौचालय बन जाने एवं अन्य व्यवस्थाएं हो जाने पर उस पंचायत को निर्मल पंचायत घोषित किया जाने लगा। पर देखने में यह आया कि एक-दो साल बाद निर्मल ग्राम की स्थिति फिर से खराब हो जा रही है एवं वहां खुले में शौच की प्रथा पुनः चलने लगती है।
मर्यादा अभियान नाम देकर मध्य प्रदेश सरकार ने स्वच्छता अभियान को महिलाओं की इज्जत के साथ जोड़कर प्रचारित किया, जिसका असर लोगों पर पड़ा है एवं लोग इस बात से सहमत दिख रहे हैं कि महिलाओं का खुले में शौच जाना उनकी मर्यादा के खिलाफ है। मर्यादा अभियान की सफलता इस बात पर निर्भर है कि गाँवों में पानी की उपलब्धता किस हद तक है।
बच्चों की दृष्टि से देखा जाए, तो खुले में शौच बीमारियों का सीधा निमंत्रण देना है। साफ पानी की अनुपलब्धता, खुले में शौच एवं सफाई के अभाव के कारण डायरिया, निमोनिया एवं अन्य जल जनित बीमारियाँ होती हैं। डायरिया से हर साल लाखों बच्चे की मौत हो जाती है, जिन्हें बचाया जा सकता है। यह स्थिति इस बात की ओर इंगित करती है कि बच्चों के जीवन के लिए स्वच्छता एवं सफाई का व्यापक महत्व है।
स्वच्छता अभियान में एक तथ्य की ओर बहुत ही कम ध्यान दिया जाता है, जबकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। किशोरावस्था में स्वच्छता एवं सफाई का व्यक्तित्व पर व्यापक असर पड़ता है। किशोरावस्था में बच्चों के व्यक्तित्व विकास एवं उनके जीवन में हो रहे बदलावों के बीच स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छता एवं सफाई का व्यापक महत्व है। यदि किसी समूह में या खासतौर से किसी कक्षा में किशोर-किशोरियों या बच्चों से इस बात की चर्चा की जाए कि किनके घरों में शौचालय है एवं किनके परिवार के लोग शौच के लिए बाहर जाते हैं, तो बच्चों या किशोर-किशोरियों के व्यक्तित्व में साफ अंतर दिखाई पड़ेगा। जिनके परिवार शौच के लिए बाहर जाते हैं, वे शर्मिंदगी महसूस करते हैं एवं समूह में असहज महसूस करते है। यह स्थिति उनके गांव में भी अपने दोस्तों के बीच झेलनी पड़ती है। शौचालय विहीन एवं शौचालय युक्त परिवारों के बीच एक विभाजनकारी रेखा खिंच जाती है, जिसमें दोनों तरफ के बच्चे अलगाव महसूस करते हैं। इसका असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ता है। यदि शाला में शौचालय नहीं हो एवं मिडिल स्कूल में बालिकाओं के लिए अलग शौचालय (जिसमें सेनेटरी ब्लॉक हो तो ज्यादा बेहतर है) नहीं हो, तो वहां के बच्चों के शिक्षा पर असर पड़ता है एवं वे धीरे-धीरे पिछड़ने लगते हैं और सोचने लगते हैं कि उन्हें बेहतर शिक्षा एवं बेहतर वातावरण मिल ही नहीं सकता। उनके व्यक्तित्व पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। इसी तरह सेनेटरी ब्लॉक के अभाव में किशोरियों को माहवारी के समय शाला से वंचित होना पड़ता है। यदि घर में शौचालय नहीं हो, तो किशोरियों को किशोरों की तुलना में अलग तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है एवं उनका व्यक्तित्व दब जाता है, उनकी क्षमता एवं कौशल पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन का व्यक्तित्व विकास के साथ सीधा संबंध है। इसके लिए गाँवों में किशोर-किशोरियों को परामर्श देने एवं उन्हें स्वच्छता एवं साफ-सफाई के तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। व्यक्तिगत शारीरिक साफ-सफाई के जो तरीके किशोरियों द्वारा अपनाए जाते हैं, उससे जुड़े मिथकों की पहचान करवाने एवं मिथकों के कारण व्यक्तित्व विकास पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कर शारीरिक साफ-सफाई के सही तौर-तरीकों के बारे में बताने की जरूरत है। स्वच्छता के संसाधनों की कमी न रहे, इसके लिए किशोर-किशोरी परिवार एवं उचित मंच पर उसकी मांग उठा सकते हैं, जिसका प्रभाव सकारात्मक दिखाई पड़ेगा। किशोर-किशोरियों को स्थानीय एवं कम लागत वाले कौशल विकसित करने का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। इससे उनमें आत्मनिर्भरता आएगी, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। इससे होने वाली छोटी आमदनी से वे अपने व्यक्तिगत साफ-सफाई के लिए एवं अन्य छोटी जरूरतों के लिए राशि जुटा सकेंगी।