गुना। स्थानीय क्षेत्र चंबल संभाग के अंतर्गत आता है, यहां की पथरीली जगह के कारण ज्यादातर बरसात का पानी बर्बाद होकर बह जाता है। इस कारण क्षेत्र के लोगों को बारिश के पानी को बचाना होगा और स्थानीय जलस्तर को वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के माध्यम से बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। ये विचार समाजसेवी और वस्तुविद् ऋषि अजयदास ने कार्यशाला में मुख्य वक्ता के तौर पर व्यक्त किए।
नगर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को लेकर विशेषज्ञों ने छात्रों और स्थानीय लोगों को जागरूक बनाने के लिए कार्यशाला आयोजित की। जिसके आयोजक विपाक्षा बहुउद्देशीय सेवा समिति भोपाल थी। कार्यक्रम की शुरूआत वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के समन्वयक संजय सिंह ने की। उन्होंने बताया कि वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से बारिश के बर्बाद होने वाले पानी को एक जगह एकत्रित करके रखा जाता है, जो स्थानीय जल स्तर को बनाए रखता है। पेयजल और जलापूर्ति के लिए पिछले वषोंü में नलकूप खनन का काम तेजी से हुआ है।
जिससे क्षेत्र का भू-जलस्तर काफी नीचे चला गया है। जानकारी के मुताबिक वर्तमान में क्षेत्र का जलस्तर 400 से 500 फीट तक जा पहुंचा है। जो करीब एक दशक में पहले की अपेक्षा दस गुना हो गया है। सिंह ने देवास जिले का उदाहरण देते हुए बताया कि यहां पर यह तकनीक लागू करके पानी की बचत को एक सामाजिक मुहिम बनाया गया, जिससे यहां पर पानी की समस्या काफी कम हो गई है। कार्यक्रम में कॉलेज प्राचार्य वी पी श्रीवास्तव, प्रो. निरंजन श्रोत्रिय सहित शिक्षक और सैकड़ों छात्र मौजूद थे। कार्यशाला के बाद वर्षा जल संग्रहण विषय पर निबंध एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित कर छात्रों को पुरस्कृत किया गया।
होगी पानी की बचत
समाजसेवी ऋषि अजयदास के अनुसार शहर में औसत वर्षा 100 सेमी. होती है। ऎसी स्थिति में 1000 वर्गफुट की छत से वर्षाकाल में लगभग 1 लाख लीटर पानी बहकर बर्बाद हो जाता है। वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से एक लाख लीटर पानी भू- जलस्तर बढ़ाया जा सकता है।
साथ ही इसे लगाने में ज्यादा राशि भी खर्च नहीं होती है। एक मंजिल मकान में चार हजार रूपए और दो मंजिला मकान में इसे लगाने का खर्च करीब छह हजार रूपए आता है।
नगर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को लेकर विशेषज्ञों ने छात्रों और स्थानीय लोगों को जागरूक बनाने के लिए कार्यशाला आयोजित की। जिसके आयोजक विपाक्षा बहुउद्देशीय सेवा समिति भोपाल थी। कार्यक्रम की शुरूआत वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के समन्वयक संजय सिंह ने की। उन्होंने बताया कि वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से बारिश के बर्बाद होने वाले पानी को एक जगह एकत्रित करके रखा जाता है, जो स्थानीय जल स्तर को बनाए रखता है। पेयजल और जलापूर्ति के लिए पिछले वषोंü में नलकूप खनन का काम तेजी से हुआ है।
जिससे क्षेत्र का भू-जलस्तर काफी नीचे चला गया है। जानकारी के मुताबिक वर्तमान में क्षेत्र का जलस्तर 400 से 500 फीट तक जा पहुंचा है। जो करीब एक दशक में पहले की अपेक्षा दस गुना हो गया है। सिंह ने देवास जिले का उदाहरण देते हुए बताया कि यहां पर यह तकनीक लागू करके पानी की बचत को एक सामाजिक मुहिम बनाया गया, जिससे यहां पर पानी की समस्या काफी कम हो गई है। कार्यक्रम में कॉलेज प्राचार्य वी पी श्रीवास्तव, प्रो. निरंजन श्रोत्रिय सहित शिक्षक और सैकड़ों छात्र मौजूद थे। कार्यशाला के बाद वर्षा जल संग्रहण विषय पर निबंध एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित कर छात्रों को पुरस्कृत किया गया।
होगी पानी की बचत
समाजसेवी ऋषि अजयदास के अनुसार शहर में औसत वर्षा 100 सेमी. होती है। ऎसी स्थिति में 1000 वर्गफुट की छत से वर्षाकाल में लगभग 1 लाख लीटर पानी बहकर बर्बाद हो जाता है। वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से एक लाख लीटर पानी भू- जलस्तर बढ़ाया जा सकता है।
साथ ही इसे लगाने में ज्यादा राशि भी खर्च नहीं होती है। एक मंजिल मकान में चार हजार रूपए और दो मंजिला मकान में इसे लगाने का खर्च करीब छह हजार रूपए आता है।