बुरहानपुर में पानी बचाने, पानी कमाने का जतन कर रहे लोग

Submitted by RuralWater on Fri, 06/03/2016 - 10:37

महाराष्ट्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। लातूर और जलगाँव में पानी के लिये लोग कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले रहे हैं। हालात काबू में रखने के लिये प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ रही है। लेकिन बुरहानपुर के लोगों ने पानी की समस्या को सावधानी और सतर्कता के साथ सुलझाने की कोशिश की है। सोच और संकल्प यह है कि न तो पानी की रेलगाड़ी बुलाने की नौबत आये और न ही पानी की छीना-झपटी रोकने के लिये पुलिस को धारा 144 लगानी पड़े। गाँव के लोग पानी के लिये लड़ नहीं रहे, पानी बचाने का प्रयास कर रहे हैं। किसान को याद हो चला है कि वे पानी बना तो नहीं सकते, हाँ! पानी को बचा जरूर सकते हैं।

 

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जसौंदी की सरपंच शोभाबाई रमेश प्रचंड गर्मी और पानी की किल्लत से दो-दो हांथ करने के लिये तैयार हैं। शोभाबाई कहती हैं- हमारी क्षेत्र की जनप्रतिनिधि अर्चना दीदी हमारे साथ हैं, हम पानी की किल्लत और सूखे से पार पा लेंगे। साथ खड़े महिला-पुरुष बोल पड़ते हैं- ले फावड़े चल पड़े हैं लोग अपने गाँव के, अब सूखा जीत लेंगे लोग अपने गाँव के! बुरहानपुर और नेपानगर में तापमान 49 डिग्री दर्ज किया गया है। सामान्यत: 45 डिग्री से अधिक तापमान को मानव शरीर सहन तो कर लेता है, किन्तु दिमाग संतुलित तरीके से काम करने में आना-कानी करता है। हवा में बढ़ी हुई उष्णता सांस लेने में असहजता पैदा कर रही है। बढी हुई गर्मी अपने साथ अनेक समस्याएं लेकर आई है। पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या है। बुरहानपुर जिला एशिया महाद्वीप के उन क्षेत्रों में से है जहाँ सबसे तेज गति से भूजल स्तर गिर रहा है। गिरता जल स्तर व केला, गन्ना, कपास जैसी अत्यधिक पानी की लागत वाली फसलें इस क्षेत्र की विरोधाभासी परिस्थिति को दर्शाती है। पिछले कुछ समय से जनप्रतिनिधि अर्चना चिटनीस की अगुआई में स्थानीय लोगों ने जल-जागरण अभियान चला रखा है। इस अभियान का असर साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। खामनी गाँव के किशोर पाटिल कहते हैं - 'दीदी की सक्रियता से हम स्वयं तो जागरुक हुए ही हैं, अब गाँव-गाँव को जागरुक करने का प्रयास कर रहे हैं। पाटिल भरोसे से कहते हैं- जैसे हमारे सहयोग से अर्चना दीदी चुनाव जीती, वैसे ही उनके सहयोग से हम पानी की लड़ाई जीत लेंगे।'  

 

मध्यप्रदेश का बुरहानपुर अपेक्षाकृत नया जिला है। यहाँ का तापमान सामान्य से कुछ अधिक ही रहता है। गर्मी के दिनों में निमाड़ का सबसे ज्यादा तपने वाला क्षेत्र बुरहानपुर ही है। यह मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का सीमावर्ती क्षेत्र है। बुरहानपुर जिला 15 अगस्त, 2003 को पूर्व निमाड़ खण्डवा से अलग करके बना है। यह ताप्ती नदी के किनारे स्थित है। जिले में 2 जनपद पंचायत के अंतर्गत 167 ग्राम पंचायतें हैं।

 

सतपुड़ा के जंगल व ताप्ती एवं ताप्ती की पूरक नदियों वाला क्षेत्र जहाँ एक ज़माने में सतही जल व भूजल की प्रचुरता थी, आज जल संकट से ग्रस्त है। इलाके में बड़ी संख्या में कुएँ और बावड़ियाँ आज भी दिखती हैं। जल संरचनायें तो बचीं हैं, लेकिन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में, और वो भी बिन पानी के। जल संरचानायें कुड़े-कचरे का स्थान बन गई हैं। गर्मी के शुरुआती दिनों में ही हैण्डपम्प सूखने लगे हैं, भूजल स्तर 600 फीट से नीचे चला गया है। लेकिन बुरहानपुर के लोगों ने ठान लिया है, वे पानी के लिये त्राहि-त्राहि नहीं करेंगे। वे पानी को रोकने-टोकने, घेरने-मोड़ने और थामने का हर सम्भव जतन करेंगे।

 

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पानी के एक-एक बूँद को बचा लेने के भगीरथ प्रयास में यहाँ की विधायक और पूर्वमंत्री अर्चना चिटनीस भी लगी हैं। बुरहानपुर में पानी के लिये हिंसक संघर्ष ना हो, किसान आत्महत्या ना करे, बच्चे-बूढे जलानुशासन का पालन करें, सरकारी अमला पानी बचाने में लोगों का सहयोग करे इस प्रयास में विधायक चिटनीस लगी हैं। स्थानीय लोग 43 से 46 डिग्री तापमान वाली चिलचिलाती धूप में लू के थपेड़ों से बेपरवाह बुरहानपुर की सडकों, गलियों और मोहल्लों में पानी को बचा लेने की मुहिम में जुटे हैं। बुरहानपुर के लोग अपने विधायक के साथ गाँव-गाँव, मुहल्ले-मुहल्ले जल जागरण फेरी कर रहे हैं। लोग एक-दूसरे से पानी ज्यादा कमाने और कम खर्च करने की गुहार करते हैं। स्कूली बच्चों को पानी का महत्त्व समझा रहे हैं। यहाँ पानी की बातें मीडिया में कम, लोगों के बीच ज्यादा हैं। सच तो ये है कि लोगों को पानी के बारे में ज्ञान बहुत है, लेकिन पानी के प्रति चेतना, संवेदना और अनुशासन कम है।

 

वर्षों की मुहिम का असर साफ दिखाई देने लगा है। पानी के साथ किफायत का व्यवहार हो रहा है। पानी की बर्बादी कम हो गई है। किसान पानी के साथ-साथ मिट्टी के संरक्षण के लिये भी चिंतित हैं। वे अपने खेत के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवा रहे हैं। विधायक चिटनीस ने भी किसानों को चिट्ठी लिखकर आने वाले समय में मौसम के मिजाज और पानी की दिक्कत के बारे में सचेत किया है। किसान पानी, बिजली, खाद और कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग के कारण महंगी और हानि की खेती से उबरने के लिये मिल-बैठकर रास्ता निकालने का प्रयास कर रहे हैं। जो जहाँ है, जिस हाल में है - पानी बचाने, पानी कमाने की कवायद में जुट गया है। बहरहाल,किसानों ने 33 से अधिक गाँवों में हजार से अधिक खेत कुंड बनाये हैं। सरकारी अमला ग्रामीणों की मदद से छोटे-बड़े तालाब बनवा रहा है। किसान आगे बढ़कर खेत-तालाब योजना का लाभ ले रहा है। जो तालाब नहीं बना रहे, वे जंगल बचा रहे हैं, पेड़ लगा रहे हैं। किसान स्वयं के खर्च पर भी तालाब बना रहे हैं बलड़ी, जसौंदी, तारापाटी, चिल्लारा, दापोरा, नाचनखेड़ा, धमनगाँव, चापोरा, बहादरपुर, बंभाड़ा, इच्छापुर, शाहपुर, फोफनार, संग्रामपुर, बादखेड़ा, बिरोदा, ठाठर, खामला, भावसा, मगरूल, लोनी, अड़गाँव, बड़सिंगी, बख्खारी, बोरगांवखुर्द, हतनूर, खामनी, पातोंडा, मोहद, वारोली, नागुलखेड़ा, मैथा, रायगाँव, बड़सिंगी, तुरकगुराड़ा, चांगढ़, चिड़ियापानी, करोली, कालमाटी, हतनूर, भोटा आदि गाँवों में विशेषज्ञों द्वारा संध्याकालीन किसान संगोष्ठी में कम पानी से खेती और अधिक उपज के लिये न सिर्फ तरकीब बताई जा रही है, बल्कि उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है। पहली बार 600 हेक्टेयर भूमि पर धारवाड़ पद्धति से अरहर की खेती के लिये बुआई की पहल की गई है। बुरहानपुर के किसान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संदेश से भी वाकिफ हैं। मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि किसान भाई भी अच्छे उद्यमी की तरह कार्य करें- किसानों की कृषि ऐसी हो जो पर्यावरण और बाजार की चुनौतियों का सामना कर सके।

 

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शाहपुर क्षेत्र के 6-7 किसानों ने अपने खेत में स्वयं के खर्च पर तालाब बनाये हैं। सन्तोष सागर, शेख शब्बीर, रमेश महाजन, सन्तोष धाने और गोकुल बारी सहित कई किसानों ने खेत में तालाब बनाकर मिसाल कायम की है। ग्राम बहादरपुर के सरपंच प्रवीण शहाणे स्थानीय विधायक अर्चना दीदी का हवाला देकर कहते हैं कि गाँव के लोगों की सजगता पानी की किल्लत से बचाया है। सरपंच दिलीप तायड़े ने बताया खेतों में सूखे की नौबत आ गई थी, पीने के पानी का भी संकट खड़ा हो गया है। लेकिन हमने गाँव में पानी को बचाने के लिये जनजागरण किया है।

 

 लोग एक-दूसरे को पाइप से गाड़ियाँ न धोने, नल खुले न छोड़ने और महिलाओं को खुले नल में कपडे न धोने की हिदायत देते नजर आते हैं। यहाँ की महिलायें पुरुषों से दाढी बनाते समय नल की बजाये कप में पानी का उपयोग करने का आग्रह करती हैं। खुले नलों से बहते-रिसते पानी को रोकने के लिये विधायक निधि से बड़े पैमाने पर टोटियाँ वितरित की गई हैं। विधायक चिटनीस कहती हैं - हमने महाराष्ट्र के लातूर से सबक लिया है। हम बुरहानपुर को पानी के मामले में लातूर नहीं बनने देंगे।

 

अमरावती और मोहना नदी में रिचार्जिंग के लिये शाहपुर-बुरहानपुर में किया गया प्रयोग प्रदेश के अन्य जिलों के लिये उदाहरण बन गया है। शाहपुर नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रामभाऊ सोनवणे ने शाहपुर के सार्वजनिक कुएँ का उपसा कराकर 10 हार्सपावर का मोटर पम्प लगाकर पानी प्रदाय किया। इसी तरह बुरहानपुर के लालबाग, गुलाबगंज, चिंचाला के कुओं की भी सफाई कराकर बंद पड़े कुओं को जनोपयोगी बनाने की हमारी पहल आज जनआंदोलन का रूप ले चुकी है।

 

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वैसे तो समूचा बुरहानपुर ही सूखे और पानी की कमी से जूझ रहा है। लेकिन करोनिया फाल्या में जल संकट कुछ ज्यादा ही है। यहाँ लोग सूखी उतावली नदी में झीर खोदकर पानी ले रहे हैं। जितना पानी मिलता है, वह जरूरत के मुताबिक नहीं है। महिलायें और बच्चे अपना ज्यादातर वक्त पानी खोजने, निकालने और लाने में ही लगाते हैं। स्थानीय लोग ही ऐसे पानी की किल्लत झेल रहे क्षेत्रों की पहचान करते हैं, वहाँ के दौरे करते हैं और वहीं के लोगों के साथ समाधान के रास्ते भी ढूँढते हैं। लोगों की चाहत है कि जैसे पानी-पर्यावरण को लेकर अनेक व्यक्ति और संस्थाएं काम कर रही हैं वैसे ही राजनेता भी आगे आयें।

 

विधायक अर्चना चिटनीस से अनिल सौमित्र की बातचीत -

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जल जागरण में किसानों को क्या बता रही हैं ?

मैं ये कहती हूँ कि “धरती कहती है हमसे पानी लेते हो मुझसे, पानी डालो भी मुझमें’’, लोग दोहराते हैं । फिर हम कहते हैं – “रुपया, पैसा, धन-दौलत कुछ भी काम न आएगा यदि किसान इसी तरह खेतों से पानी बहायेगा” लोग दोहराते हैं और मन पर असर होता है जिसका परिणाम आपके सामने है।

 

किसान निराश और हताश है। वह मनोबल युक्त और खुशहाल कैसे हो?

किसान देश का गौरव ही नहीं, पोषक भी है। वह महंगी और हानि की खेती के कारण हताश और निराश है। खुशहाल किसान ही प्रदेश के विकास, उन्नति और समृद्धि की गारंटी है। हम विशेषज्ञों के साथ गाँव-गाँव जाकर किसान संगोष्टियाँ कर किसान भाईयों और बहनों के दिल-दिमाग में यह डालने का प्रयास कर रहे है की कम लागत मैं भरपूर और सुनिश्चित कमाई कैसे हो सकती है। पानी, बिजली, खाद व कीटनाशकों के खर्च को संभालते हुए भी अपनी आमदनी बनाये रखने की तरकीबें हम मिल बैठकर निकालते हैं। विज्ञान और परम्परा की युति करने की युक्ति बुद्धि हमारे देश में परम्परा से है ।

 

इस प्रकार का प्रयास कब से चल रहा है?

गत 7-8 सालों से पानी के लिये प्रयास कर रहे हैं, एक ही संदेश है- हम चेतेंगे नहीं तो बचेंगे नहीं। पानी, हवा की तरह ही मनुष्य के अस्तित्व के लिये अनिवार्य है। हमें हर हाल में पानी बचाना ही होगा, पानी कमाना ही होगा। हवा, पानी, मिट्टी जीवन का आधार है। भूख मिटाना हो या प्यास बुझानी हो, खेती हो या उद्योग हो या सभ्य मानव जीवन सब पानी से ही संभव है। शासकीय स्तर पिछले 05 वर्ष में पर सरकार के माध्यम सिंचाई 10 गुना बढ़ी है साथ ही साथ हम लोगों से लगातार कहते रहे “नदी में पानी होगा तभी तो नदी से पानी लोगे, बाँध से नदी में पानी नहीं जाता, नदी से बाँध भरते हैं और नदियाँ जीवित होती है जंगलों से। गत 8 वर्षों से वन संस्कार अभियान के माध्यम से व्यक्ति, गाँव व समाज अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा है। कुओं को उपसा करने की परम्परा को किसान को स्मरण कराया।

 

आपके प्रयासों का क्या परिणाम दिख रहा है?

वर्षा-जल के संचय के लिये विभिन्न क्षेत्रों में नदी-नालों छोटे-छोटे बंधान और खेत-कुण्ड बनाये गये हैं। किसान कम पानी, कम लागत और छोटी अवधि वाली फसलों की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। अरहर की धारवाड़ पद्धति प्रचलित हो रही है। जहाँ किसान एक वर्ग इंच की भूमि बुवाई से नहीं छोड़ता था वहाँ इस वर्ष लगभग 800 खेत कुंड अर्थात 96 हजार वर्गमीटर सतही क्षेत्रफल के खेत कुंड तो बना चुके हैं। पानी के प्रति समझदारी व जिम्मेदारी को सब जान गए हैं व मान भी रहे हैं। हम अखबार, टीवी और रेडियो के सहारे नहीं, चर्चा, पत्र और रैली के द्वारा सीधे लोगों के बीच जा रहे हैं। 'मेरे प्रयास और आग्रह पर अमरावती नदी में अस्थाई कुएँ और रिचार्जिंग शाफ़्ट जनभागीदारी से खुदवाए गए। इससे जलस्तर बढ़ा। इसका फायदा शाहपुर के किसानों को मिला। शासन ने भी विभिन्न योजनाओं में बुरहानपुर की ताप्ती नदी, मोहना, अमरावती, सूखी सहित अन्य नदियों पर पानी रोकने के करोड़ों रुपए के कामों को स्वीकृति दी। लोग प्यार से पानी वाली दीदी कहने लगे हैं।

 

पानी, खेती और वृक्षारोपण जैसे मुद्दों पर कैसे करती हैं लोगों को जागरुक ?

कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के साथ जागरुकता के लिये स्थान, दिन और समय निर्धारित किया जाता है। स्थानीय लोगों से चर्चा कर जागरण फेरी, रैली, नुक्क्ड सभा, चौपाल आदि का स्वरूप तय किया जाता है। सुबह 7.30 बजे के आस-पास साथी कार्यकर्ताओं के साथ निश्चित गाँव में पहुँचते हैं। यहाँ पर ग्रामीणों को एकत्रित करने के साथ ही स्कूली छात्र-छात्राएँ,युवा, किसान, समाजसेवी और अन्य वर्गों के लोगों को साथ लेकर गाँवों में रैली निकाली जाती है। रैली में लोगों को, विशेषकर महिलाओं को जल संरक्षण की जानकारी दी जाती है। हम लोगों की बातें ध्यानपूर्वक सुनते हैं। गाँव में उपलब्ध संसाधन और किसानों की स्थिति के अनुसार हरेक व्यक्ति को कोई न कोई जिम्मेदारी भी देते हैं। किसानों से खेती की पद्धति के बारे में भी चर्चा करते हैं।

 

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