इस बार हीटवेव या यूं कहें कि अत्यधिक गर्मी की लहर काफी चर्चा में है। हालांकि भारत में ग्रीष्मकाल गर्म ही होता है‚ और मई में अधिकतम तापमान का 35 डि़ग्री सेल्सियस से अधिक होना असामान्य नहीं है‚ लेकिन पिछले कुछ सालों से बहुत गर्म दिनों की लगातार बिगड़ती प्रवृत्ति चिंताजनक है। रिपोर्ट बताती हैं कि भारत के लिए सबसे गर्म दिन 1950 के दशक में प्रति वर्ष 40 दिनों से बढ़कर 2020 में 100 दिन हो गए हैं। इस तेज वृद्धि और 35 डिग्री से अधिक के ताप सूचकांक का स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है जो भारत के कई हिस्सों में आम लोग पहले से ही अनुभव कर रहे हैं। लेकिन अधिक चिंता की बात यह है कि कई जलवायु मॉडल ने अनुमान लगाया है कि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन के दोगुना होने के साथ यह परिदृश्य और भी खराब हो जाएगा। ऐसी स्थिति में‚ सदी के अंत तक तापमान में औसतन 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी‚ जिसका अर्थ है अभूतपूर्व और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी‚ अत्यधिक मौसम‚ अस्पताल में भर्ती होने से लेकर मृत्यु तक का खतरा। इसका कृषि और वन्यजीवों पर भी अधिक विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। हमारे खाद्य और पोषण सुरक्षा को यह स्थिति खतरे में डाल सकती है।
इसमें भी गौर करने वाली बात है कि हमेशा की तरह सबसे कमजोर वर्ग के लोगों को इस संकट का अधिक सामना करना पड़ेगा। शहरी गरीबों‚ श्रमिकों‚ महिलाओं‚ बच्चों‚ वरिष्ठ नागरिकों‚ सहित सबसे कमजोर आबादी काफी अधिक जोखिम में पहले से ही है‚ क्योंकि उनके पास सुरक्षात्मक उपायों तक पर्याप्त पहुंच नहीं है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारों को उचित और न्यायसंगत तरीके से तुरंत सहायता प्रदान करके ऐसी कमजोर आबादी को तत्काल मजबूत करना चाहिए। राज्य और शहर के अधिकारियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना चाहिए‚ और नागरिकों को समय पर चेतावनी और सलाह देने के लिए मौसम विज्ञान एजेंसियों के साथ समन्वय करना चाहिए।
चरम मौसमी घटनाएं हुईं आम
यहां यह याद रखने की जरूरत है कि इस तरह अत्यधिक गर्मी कोई एक घटना नहीं है। इस तरह की चरम मौसम की घटनाएं आम होती जा रही हैं। हाल में आई आईपीसीसी की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि इन चरम मौसम की घटनाओं के पीछे मानव जनित जलवायु परिवर्तन का हाथ है‚ और इससे निपटने के लिए जरूरी है कि हम जीवाश्म ईंधन को जलाना बंद करें। यह पहली बार हुआ कि जलवायु परिवर्तन पर बनी विशेषज्ञों की सुप्रीम समिति ने कोयला‚ तेल और गैस जलाने से बचने की बात कही है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि दुनिया भर की सरकारें‚ इंडस्ट्री और समाज जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऊर्जा‚ परिवहन‚ कृषि और अन्य क्षेत्रों में उचित बदलाव लेकर आए।
कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में स्थानांतरण और जीवाश्म ईंधन पर आधारित परिवहन व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना बेहद जरूरी हो जाता है। लंबे समय में यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में योगदान देगा। विशेष रूप से ऊर्जा और परिवहन प्रणालियों में हो रहे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को समाप्त करना‚ जलवायु परिवर्तन से निपटने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने का सबसे व्यावहारिक और तत्कालिक समाधान है। यदि हम अभी कार्रवाई नहीं करते हैं‚ तो आने वाले समय में यह खतरा और भी बढ़ता जाएगा।
लाखों रोजगार सृजन की संभावना
भारत जैसे देश के पास सुनहरा मौका है कि अक्षय ऊर्जा क्रांति में मजबूत नेता बने। स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में लाखों नई नौकरियां पैदा की जा सकती हैं–कोयला आधारित ऊर्जा सेक्टर में काम कर रहे श्रमिकों के हितों की रक्षा करते हुए भी स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में नौकरियों के बेहतर अवसर बनाए जा सकते हैं। भारत कोयला आधारित ईंधन स्रोतों की बजाय नई तकनीकों पर भरोसा करके ऊर्जा की कमी से जूझ रहे लाखों लोगों को बहुत तेजी से ऊर्जा की गरीबी से बाहर निकाल सकता है। भारत की केंद्र सहित कई राज्य सरकारें पहले से ही अक्षय ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिये कई तरह की योजनाओं को बनाने का काम कर रही हैं। भारत आज एक सौ गीगावाट से कहीं अधिक ऊर्जा अक्षय स्रोतों से प्राप्त करता है।
अक्षय ऊर्जा का योगदान बढ़ाना होगा
हालांकि इसमें रूफटॉप या विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा का योगदान लक्ष्य से काफी कम है। भारत का लक्ष्य 2022 तक 40 गिगावाट की क्षमता रूफटॉप या विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा से हासिल करना है। लेकिन हाल तक यह सिर्फ 6 गिगावाट की क्षमता को ही हासिल कर पाया‚ जो बताता है कि हम अपने वास्तविक लक्ष्य को हासिल करने में काफी पीछे हैं जबकि भारत सरकार और ज्यादातर राज्य सरकारें रूफटॉप सोलर को प्रोत्साहित करने के लिए कई तरह की सब्सिडी भी देती हैं। रूफटॉप सोलर के कई फायदे हैं। बड़े प्रोजेक्ट की तुलना में इसमें अत्यधिक पर्यावरण संबंधी जोखिम नहीं है। स्थानीय समुदाय से जमीन विवाद के होने और प्रोजेक्ट के लेट हो जाने का भी खतरा नहीं है। इससे ग्रिड में होने वाले ऊर्जा की बर्बादी को भी रोका जा सकता है‚ और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि ऊर्जा के मामले में स्थानीय समुदाय को सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर बनाता है। अक्षय ऊर्जा के विकेंद्रीकृत मॉडल को बढ़ावा देने के लिए इसके फायदे के बारे में आम लोगों को बताने की जरूरत है। वहीं स्थानीय सरकार और अधिकारी मिलकर शहर में रूफटॉप स्पेस की पहचान कर खाली जगहों पर सोलर लगाने की योजना को प्रोत्साहित करें। इस तरह अक्षय ऊर्जा की मदद से हम न सिर्फ चरम मौसम की घटनाओं से बचेंगे‚ बल्कि वायु प्रदूषण जैसी जन स्वास्थ्य खतरे से भी हमें निपटने में आसानी होगी। लेकिन यहां यह बात दर्ज करना जरूरी है कि यह बदलाव सिर्फ सरकारी स्तर पर नहीं हो सकता। समाज के विभिन्न वर्गों को भी साथ में जोड़ने की जरूरत है। ऐसा करके ही हम एक सुरक्षित भारत का निर्माण कर सकते हैं‚ जहां पर आने वाली पीढ़ियों की सेहत और धरती‚ दोनों को बचाया जा सके।
लेखक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं।