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नवोत्थान, जुलाई 2016
देश का एक बड़ा भू-भाग सूखे की मार झेल रहा है। सरकार लगातार इससे निबटने के लिये कई कार्य योजना पर कार्य कर रही है, जिसमें राज्य भी सहयोग कर रहे हैं। कृषि के विकास के लिये सरकार ने कई योजनाओं को कार्यरूप भी दिया है। नई योजनाओं को कैसे और किस रूप में लागू किया जा रहा है, ऐसे तमाम सवालों के उत्तर जानने के लिये केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से नवोत्थान से खास बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश…
आपकी सरकार ने दो साल पूरे किये हैं। आपके मंत्रालय ने इन वर्षों में क्या उपलब्धि हासिल की है?
भारत एक कृषि प्रधान देश है, बावजूद इसके यहाँ किसानों की काफी उपेक्षा हुई। आजादी से पहले देश के जीडीपी में कृषि का बड़ा योगदान था, जो अब महज 18 फीसदी रह गया है। किसान को पता नहीं है कि खेत में क्या बीमारी है, दवा क्या देनी है। इनपुट लागत बढ़ रही है। यह सबसे बड़ी चुनौती थी। दूसरी चुनौती थी कि किसानों को अच्छा मूल्य मिले। तीसरी, आपदा से होने वाले नुकसान की पूरी भरपाई हो। चौथी चुनौती थी कि किसान को नई तकनीकी से अवगत कराया जाये। यानी कृषि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाये। इसमें किसान की आय को बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसी कड़ी में मृदा हेल्थ कार्ड जारी किये जा रहे हैं। आने वाले दो वर्षों के अन्तराल पर देश के सभी किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड उपलब्ध कराया जायेगा। हम आपको बता दें कि किसान को उसकी जमीन की उर्वरक क्षमता की जानकारी देने के लिये हमारी सरकार ने देश में पहली बार सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम शुरू की है। इससे पहले कुछ राज्य अपने स्तर पर यह स्कीम अलग-अलग तरीके से चला रहे थे।
क्या इस कार्य में राज्य सरकारों का पूरा सहयोग मिल रहा है?
बिना राज्य सरकारों के सहयोग के यह पूरा नहीं हो सकता। पहले नमूने एकत्रित-विश्लेषण करने और सॉयल हेल्थ कार्ड द्वारा उर्वरक सिफारिशों में कोई एकरूपता नहीं थी। यहाँ तक कि सॉयल हेल्थ कार्ड के लिये अलग से राज्यों को राशि भी नहीं दी जाती थी। इस स्कीम को वर्ष 2015-16 में 142 करोड़ रुपये की तुलना में वर्ष 2016-17 के लिये कुल 365.85 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, यह 155 प्रतिशत की वृद्धि है। राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि पंचायतों को 80 फीसदी सब्सिडी के तहत ‘किट’ दिया जाये। हमारी कोशिश है कि किसानों को हैंड हेल्थ डिवाइस दिया जाये, ताकि किसान को खुद पता चल जाये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट के पूर्व सिक्किम को पूर्ण जैविक राज्य घोषित किया, लेकिन क्या इसका प्रभाव अन्य राज्यों पर हुआ और कृषि मंत्रालय क्या कुछ कर रहा है इस दिशा में?
जैविक खेती का लक्ष्य हमने तय किया है कि तीन वर्ष के अन्दर दस हजार कलस्तर बनायेंगे। आठ हजार कलस्तर डेढ़ वर्ष के अन्दर बन चुके हैं। 2015-16 में शुरू किया था, इनपुट कॉस्ट कम हो, इसमें जैविक खेती की बड़ी भूमिका है। नीम कोटेड यूरिया ने लागत को बहुत कम किया है।
आज भी कृषि मानसून का जुआ है। कृषि सिंचाई की पूर्ण व्यवस्था आज भी नहीं हो पाई है?
कृषि में उत्पादन और बेहतर उत्पादकता के लिये सबसे प्रमुख भूमिका रही है सिंचाई की। हर खेत को पानी पहुँचाने और पानी के हर बूँद का उपयोग खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू हो गई है। तीन मंत्रालयों को साथ मिलाकर एक स्थायी योजना बनाई गई है। इस मिशन को समूचे देश में लागू किया जा रहा है। 2016-17 के लिये 5717 करोड़ रुपये आवंटन कर दिया गया है। 2016 में 235 जनपदों के लिये जिला सिंचाई योजना तैयार होगी। हम आपको बता दें कि वृहद एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ वर्षों से लम्बित थी, लेकिन इसमें से 23 परियोजनाओं को 2016-17 में ही पूरा किया जायेगा। इसके लिये 12.517 करोड़ खर्च किये जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त नाबार्ड के सहयोग से 20 हजार करोड़ सिंचाई फंड सृजित किया गया है। माइक्रो एरिगेशन में भी तेजी आई है। 2005 से शुरू हुआ यह माइक्रो एरिगेशन। आज तक 82 लाख हेक्टेयर सिंचित किया गया। 5 लाख हेक्टेयर सरकारी प्रयास से हुए हैं। दो वर्ष के अंदर दस लाख हेक्टेयर की सिंचाई विस्तार हुआ है। जबकि नौ वर्षों में 42 लाख हेक्टेयर सिंचाई का विस्तार हुआ था। बड़ी तेजी से गन्ने की खेती माइक्रो एरिगेशन से की जा रही है। गुजरात कर रहा है और महाराष्ट्र तेजी से इस कार्य को आगे बढ़ाया है।
देश के किसान अतिवृष्टि और असमय वर्षा के भी शिकार होते रहे हैं। क्या आपकी सरकार ने इस दिशा में कुछ कार्य किये हैं या आपने भी किसानों को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया?
हमारी सरकार ने आपदा से पीड़ित किसानों को राहत पहुँचाने के लिये मानकों में परिवर्तन किया है। पहले पचास फीसदी से अधिक फसल का आपदा से नुकसान होने पर जो मुआवजा मिलता था, अब वह 33 प्रतिशत पर प्राप्त होगा। भुगतान की राशि को भी डेढ़ गुना कर दिया गया है। अतिवृष्टि से खराब हुए टूटे और कम गुणवत्ता वाले अनाज का भी पूरा समर्थन मूल्य देने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया। प्राकृतिक आपदाओं में मृतकों को पहले जहाँ मात्र 1.50 लाख रुपये देने का प्रावधान था, हमने इसे बढ़ाकर 4 लाख रुपये कर दिया।
फसल बीमा योजना में सरकार काफी तब्दीली लाई है?
देश के किसानों के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है। फसल बीमा सरकार की अब तक की सबसे बड़ी मदद है। हमें यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि पंजाब को छोड़ दें तो सभी बड़े राज्यों ने इस बीमा को तेजी से लागू कर दिया, जिसमें बीस राज्यों ने तो बहुत तेजी से कार्य किया, यहाँ तक कि पूर्वोत्तर राज्य भी इस दिशा में आगे बढ़े हैं।
किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात प्रधानमंत्री कह रहे हैं, यह असम्भव सा प्रतीत होता है?
इस दिशा में आज तक कोई जतन ही नहीं किया गया है, इसलिये ऐसा लग रहा है। इस दिशा में अब कार्य शुरू हुआ है। गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसानों की आमदनी बढ़ी है। आमदनी बढ़ाने के लिये कई योजनायें लागू की गई हैं। जिसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं। खेती के साथ बाड़ी होती थी, जिसे आज छोड़ दिया गया, जिससे आमदनी घट गई। खेती के साथ पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन जैसे को बढ़ाना हमारा लक्ष्य है।
कृषि शोध पर आज बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है?
कृषि विकास के लिये शोध पर खर्च करना ही पड़ेगा। इस दिशा में हमने कई कदम उठाये हैं। जिसके तहत पूसा और झाँसी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। पूर्वोत्तर में केंद्रीय विश्वविद्यालय पर कार्य हो रहा है, साथ ही 14 नये कॉलेज खोलने का भी प्रस्ताव है। जिसमें आठ स्थापित हो चुके हैं। मेघालय में केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहते हैं। देश में 643 कृषि विज्ञान केंद्र हैं। छह और खोले जा चुके हैं और 49 नये केवीके खोलने का प्रस्ताव है।
देश का बड़ा भाग सूखे की चपेट में है, जिससे आपका मंत्रालय निशाने पर भी रहा है। क्या सूखे पर कोई विशेष कार्य योजना है?
हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री खुद सूखे से प्रभावित राज्यों के लिये चिन्तित हैं और इसके लिये ग्यारह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक भी की। जिसमें एक-एक मुख्यमंत्री से दो से तीन घंटे तक बैठक की गई। जिसमें कई कार्यक्रम जो राज्यों में चल रहे हैं उस पर जोर दिया जा रहा है। जैसे महाराष्ट्र में जल योग शिविर। मध्य प्रदेश में कपिल धारा योजना। राजस्थान में जल संवर्द्धन योजना। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री जल बचाओ अभियान। आंध्र प्रदेश में न्यू टेक्नोलॉजी के साथ जल संचयन। तेलंगाना में मिशन भागीरथ। हम जल के संरक्षण, सुरक्षा और प्रबंधन तीनों पर ध्यान दे रहे हैं।
दाल के दाम लगातार बढ़े हैं और सरकार कुछ कर नहीं पा रही है
ऐसा नहीं है। हमारा देश दलहन और तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। इस पर पहले से कार्य किये जाने की आवश्यकता थी। इसके बफर स्टॉक होने चाहिये थे। अब जाकर सरकार खाद्य मंत्रालय के साथ बफर स्टॉक पर कार्य कर रही है। धीरे-धीरे इस समस्या से भी निजात मिल जायेगी।
किसानों को कीमत मिलना भी एक बड़ी समस्या है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में किसान प्याज को फेंक रहे हैं?
हमारी कोशिश है कि किसानों को ऐसी व्यवस्था दें। सुगम और पारदर्शी व्यवस्था हो और किसान सीधे बाजार से जुड़ सके। इसी कड़ी में देशभर की 585 कृषि मंडियों को ई-मार्केटिंग से जोड़ा जा रहा है। 2018 तक इस कार्य को पूरा कर लिया जायेगा।
किसान आज भी आत्महत्या कर रहे हैं। विशेषकर मराठवाड़ा और विदर्भ में। ऐसी घटनाएँ भविष्य में न हों, इसके लिये सरकार क्या कर रही है?
देश के अन्नदाता आत्महत्या कर रहे हैं, इससे तकलीफदेह बात और क्या हो सकती है। मराठवाड़ा, विदर्भ और तेलंगाना में ऐसी घटनायें अधिक होती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह किसानों को नगदी फसल से होने वाला नुकसान है। सरकार ने इसके लिये कई कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसके बारे में हम आपको बता चुके हैं। निश्चिततौर पर अब अन्नदाता को राहत मिलेगी।