प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जल संरक्षण की मुहिम इस साल देवभूमि उत्तराखंड में भी तेजी पकड़ेगी। इसके लिए कार्ययोजना का खाका खींच लिया गया है। बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए खाल-चाल, खंत्ती ( छोटे बड़े तालाबनुमा गड्ढे) जैसे पारंपरिक तौर-तरीकों को धरातल पर तेजी से उतारा जाएगा। हर जिले में एक नदी को पुनर्जीवन मिलेगा तो जलस्रोतों के संरक्षण को भी ठोस कदम उठाए जाएंगे। यही नहीं, पानी का अपव्यय रोकने के मद्देनजर अब प्रत्येक घर के पेयजल कनेक्शन पर मीटर लगाने की तैयारी है।
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में हर साल औसतन 1529 मिमी बारिश होती है, जिसमें अकेले चौमासे यानी मानसून की भागीदारी 1221.9 मिमी है। बारिश का यह पानी हर साल यूं ही जाया हो जाता है। हालांकि, खाल-चाल, खंत्तियां, चेकडैम जैसे उपायों के जरिये इसे रोकने के प्रयास विभिन्न विभागों के स्तर पर हुए हैं, लेकिन इनमें तेजी की दरकार है। राज्य में निरंतर सूखते जलस्रोतों को बचाने के लिए यह जरूरी भी है। नीति आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि उत्तराखंड में 300 के करीब जलस्रोत सूख चुके हैं या सूखने के कगार पर हैं। इस सबको देखते हुए राज्य सरकार ने भी जल संरक्षण को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखा है।
बात सिर्फ वर्षा जल संरक्षण ही नहीं, बल्कि पानी के अपव्यय को रोकने की भी है। जल मिशन में संरक्षण के साथ ही पानी का अपव्यय रोकने पर जोर है। इसी के फलस्वरूप हर घर को नल से जोडऩे की मुहिम में प्रत्येक कनेक्शन पर मीटर लगाने की तैयारी है। प्रथम चरण में करीब 44 शहरी क्षेत्रों में ये योजना अमल में लाई जा रही है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल योजनाओं में प्रति कनेक्शन मीटर लगाने का प्रस्ताव है। मंतव्य यही है कि लोग जरूरत के हिसाब से पानी खर्च करें। इससे हैंडपंप, स्टैंडपोस्ट में होने वाले पानी के अपव्यय से निजात मिलेगी। सूखती नदियों को पुनर्जीवन देने की मुहिम भी सरकार ने की है। कोसी नदी के पुनर्जीवन की मुहिम में तेजी आई है, जबकि रिस्पना को नवजीवन देने की कवायद चल रही है। सरकार ने इस साल हर जिले में एक नदी को जीवन देने का खाका तैयार किया है। इसके लिए जिलों को आदेश जारी कर दिए गए हैंनदियों और जलस्रोतों को पुनर्जीवन देने के लिए कैचमेंट एरिया (जलसमेट क्षेत्र) पर खास फोकस किया गया है। कैचमेंट एरिया में जल संरक्षण में सहायक पौधों के रोपण के अलावा जलस्रोतों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जल संरक्षण की मुहिम इस साल देवभूमि उत्तराखंड में भी तेजी पकड़ेगी। इसके लिए कार्ययोजना का खाका खींच लिया गया है। बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए खाल-चाल, खंत्ती ( छोटे बड़े तालाबनुमा गड्ढे) जैसे पारंपरिक तौर-तरीकों को धरातल पर तेजी से उतारा जाएगा। हर जिले में एक नदी को पुनर्जीवन मिलेगा तो जलस्रोतों के संरक्षण को भी ठोस कदम उठाए जाएंगे। यही नहीं, पानी का अपव्यय रोकने के मद्देनजर अब प्रत्येक घर के पेयजल कनेक्शन पर मीटर लगाने की तैयारी है।
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में हर साल औसतन 1529 मिमी बारिश होती है, जिसमें अकेले चौमासे यानी मानसून की भागीदारी 1221.9 मिमी है। बारिश का यह पानी हर साल यूं ही जाया हो जाता है। हालांकि, खाल-चाल, खंत्तियां, चेकडैम जैसे उपायों के जरिये इसे रोकने के प्रयास विभिन्न विभागों के स्तर पर हुए हैं, लेकिन इनमें तेजी की दरकार है। राज्य में निरंतर सूखते जलस्रोतों को बचाने के लिए यह जरूरी भी है। नीति आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि उत्तराखंड में 300 के करीब जलस्रोत सूख चुके हैं या सूखने के कगार पर हैं। इस सबको देखते हुए राज्य सरकार ने भी जल संरक्षण को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखा है।
बात सिर्फ वर्षा जल संरक्षण ही नहीं, बल्कि पानी के अपव्यय को रोकने की भी है। जल मिशन में संरक्षण के साथ ही पानी का अपव्यय रोकने पर जोर है। इसी के फलस्वरूप हर घर को नल से जोडऩे की मुहिम में प्रत्येक कनेक्शन पर मीटर लगाने की तैयारी है। प्रथम चरण में करीब 44 शहरी क्षेत्रों में ये योजना अमल में लाई जा रही है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल योजनाओं में प्रति कनेक्शन मीटर लगाने का प्रस्ताव है। मंतव्य यही है कि लोग जरूरत के हिसाब से पानी खर्च करें। इससे हैंडपंप, स्टैंडपोस्ट में होने वाले पानी के अपव्यय से निजात मिलेगी। सूखती नदियों को पुनर्जीवन देने की मुहिम भी सरकार ने की है। कोसी नदी के पुनर्जीवन की मुहिम में तेजी आई है, जबकि रिस्पना को नवजीवन देने की कवायद चल रही है। सरकार ने इस साल हर जिले में एक नदी को जीवन देने का खाका तैयार किया है। इसके लिए जिलों को आदेश जारी कर दिए गए हैंनदियों और जलस्रोतों को पुनर्जीवन देने के लिए कैचमेंट एरिया (जलसमेट क्षेत्र) पर खास फोकस किया गया है। कैचमेंट एरिया में जल संरक्षण में सहायक पौधों के रोपण के अलावा जलस्रोतों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।