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अमर उजाला, 14 अगस्त, 2018
प्रकृति के बिना जीवन सम्भव नहीं है। प्राकृतिक वातावरण हमारे तनाव को बढ़ा एवं घटा सकता है, जो कि हमारे शरीर पर भी असर डालता है। जो हम देख रहे हैं, सुन रहे हैं एवं महसूस कर रहे हैं, वह न केवल हमारे मानसिक अवस्था को बदलता है, बल्कि हमारे तंत्रिका तंत्र, ग्रन्थि तंत्र एवं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी अच्छा या बुरा प्रभाव डालता है। प्रकृति के करीब रहते हुए एवं प्राकृतिक दृश्यों को देखने से व्यक्ति का गुस्सा, डर एवं तनाव कम हो जाता है।
व्यक्ति को अपने मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिये प्रकृति प्रेमी होना चाहिए। उसे प्रकृति के नजदीक रहना चाहिए, क्योंकि मानव शरीर प्रकृति के पाँच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से मिलकर बना होता है। तन और मन को स्वस्थ रखने के लिये इन तत्वों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इनमें असंतुलन होने पर तन-मन का भी संतुलन गड़बड़ा जाता है और व्यक्ति अस्वस्थ रहने लगता है। पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध बनाते हैं एवं शुद्ध वायु भी प्रदान करते हैं। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) (पौधों को अपने लिये भोजन बनाने की प्रक्रिया) के दौरान वातावरण से कार्बन डाई अॉक्साइड लेकर अॉक्सीजन बाहर निकालते हैं, जो कि वातावरण को शुद्ध बनाती है। इससे हमें श्वास लेने के लिये शुद्ध वायु मिलती है।
हालांकि, ज्यादा मात्रा में खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये कृत्रिम उर्वरक और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। ये रासायनिक पदार्थ अनाज, फल, सब्जी आदि के अन्दर भी पहुँच जाते हैं, जो शरीर के लिये हानिकारक होते हैं। इससे बचने के लिये ऑर्गेनिक खेती का प्रचलन शुरू हुआ है, जिसमें शुद्ध खाद्य पदार्थ प्राप्त होता है। जिस क्षेत्र में पेड़-पौधे बहुतायत में होते हैं, वहाँ का वातावरण शुद्ध एवं संतुलित रहता है। शुद्ध जल भी हमें प्रकृति की ही देन है।
सूर्य की रोशनी न केवल हमें देखने में मदद करती है, बल्कि हमारे शरीर को विटामिन-डी भी प्रदान करती है, जो हड्डियों एवं दाँतों को मजबूत बनाए रखने के लिये जरूरी है। सूर्य की रोशनी मानसिक स्वास्थ्य के लिये भी आवश्यक होती है। ऐसा देखा गया है कि बारिश के दिनों में और सर्दियों के मौसम में जब घना कोहरा पड़ता है और सूर्य कई दिनों तक दर्शन नहीं देता है, तो अवसाद से पीड़ित व्यक्ति में अवसाद का स्तर बढ़ जाता है। यहाँ तक कि सामान्य व्यक्ति भी खुद को थोड़ा-बहुत अवसादग्रस्त पाता है।
मनुष्य को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिये मन को प्रसन्नचित रखना आवश्यक होता है। प्रकृति प्रेमी लोग अक्सर अपने मन एवं मस्तिष्क को प्रसन्नचित एवं प्रफुल्लित रखते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने आस-पास खूबसूरत फूलों के पौधे, फलदार एवं घने पत्तों वाले पौधों का रोपण करते हैं। इन्हें देखकर मनुष्य का मन-मस्तिष्क खुश हो जाता है। प्रकृति प्रेमी व्यक्ति अक्सर पहाड़ों में जहाँ खूबसूरत वादियाँ, नदी, झरने, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि पाए जाते हैं या दूरदराज के जंगलों में जहाँ प्रकृति के विहंगम नजारे देखने को मिलते हैं, में जाकर कुछ समय बिताते हैं। ऐसी जगहों पर व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को शांति मिलती है। नकारात्मक ऊर्जा शरीर से दूर होती है। व्यक्ति की सोच सकारात्मक होती है और सोचने-समझने की शक्ति भी बढ़ती है।
मन-मस्तिष्क को स्वस्थ बनाए रखने के लिये हरियाली आवश्यक होती है। कई अध्ययनों से पता चलता है एवं ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं कि प्रकृति से जुड़ाव व्यक्ति को स्वस्थ रखता है एवं खुशी देता है। जिन बच्चों में पेड़-पौधों से लगाव होता है और उनके बीच वो ज्यादा रहते हैं, उनमें आत्मसम्मान की भावना का स्तर और खतरों का मुकाबला करने की क्षमता ज्यादा होती है। जिन बच्चों में एकाग्रता की कमी पाई जाती है, पेड़-पौधों के करीब रहने से उनमें मस्तिष्क को एकाग्र करने की क्षमता बढ़ जाती है। विभिन्न शोद यह बताते हैं कि जो व्यक्ति पार्क एवं हरे-भरे स्थानों के पास रहते हैं, उनमें मानसिक तनाव कम पाया जाता है। वह शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय रहते हैं एवं उनका जीवन दीर्घायु होता है।