पूरे हिमाचल प्रदेश में कम्पनी के गुण्डों द्वारा साल घाटी बचाओ मोर्चा की बैठक में किए गए हमले का विरोध किया गया व धरना-प्रदर्शन भी हुए। इस के बाद कम्पनी इस मामले को उच्च न्यायलय शिमला में ले गई। जिसमें कोर्ट ने कोई स्पष्ट फैसला न लेकर जनता के शान्तिपूर्ण विरोध करने के अधिकार को माना तथा कम्पनी के निर्माण कार्य को पुलिस संरक्षण में जारी रखने का निर्देश दिया। हम साल घाटी निवासी 2003 से हुल-1 लघु जल विद्युत परियोजना के विरोध में संघर्ष करते रहे हैं। आप सब जानते हैं कि दिनांक 14.02.2010 को हमारी एक बैठक में कम्पनी के ठेकेदारों, गुण्डों व शरारती तत्वों द्वारा घातक हथियारों से हम पर हमला किया था। इस हमले में हमारे कई साथी घायल हुए। इस घटना के बाद प्रशासन ने एडीएम चम्बा की अध्यक्षता में जांच कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने हमलावर शरारती तत्वों को कम्पनी के इशारे पर स्थानीय लोगों की चल रही शान्तिपूर्ण विरोध बैठक पर घातक हथियारों से हमला करने के लिए जिम्मेवार ठहराया तथा परियोजना को जन विरोध व कानून व्यवस्था के कारण रद्द करने की सिफारिश की।इसी आधार पर जिलाधीश ने भी राज्य सरकार को परियोजना रद्द करने की सिफारिश की। राज्य सरकार ने दिनांक 25.08.2010 को इस पर कम्पनी को शो कॉज नोटिस जारी किया कि उक्त कारणों के आधार पर क्यों न यह परियोजना रद्द की जाए?
उक्त शरारती तत्वों द्वारा हमला करने पर उन के खिलाफ स्थानीय सेशन कोर्ट में मुकदमा चला। जिस में उन्हें 1,50,000 रुपये का जुर्माना किया गया। इस दौरान कम्पनी ने स्थानीय लोगों पर कई झुठे मुकदमें भी दायर किए, जिस पर इस कोर्ट ने उन्हें वापिस करने का भी निर्देश दिया। पूरे हिमाचल प्रदेश में कम्पनी के गुण्डों द्वारा साल घाटी बचाओ मोर्चा की बैठक में किए गए हमले का विरोध किया गया व धरना-प्रदर्शन भी हुए। इस के बाद कम्पनी इस मामले को उच्च न्यायलय शिमला में ले गई। जिसमें कोर्ट ने कोई स्पष्ट फैसला न लेकर जनता के शान्तिपूर्ण विरोध करने के अधिकार को माना तथा कम्पनी के निर्माण कार्य को पुलिस संरक्षण में जारी रखने का निर्देश दिया। हमने भी उच्च न्यायलय में पटीशन दायर की जिस पर कोर्ट ने जिलाधीश की एक बार हां और फिर दूसरी बार परियोजना रद्द करने की सिफारिश पर विरोधाभास जताते हुए पटीशन खारीज कर दी।
कोर्ट के इस फैसले से स्थानीय जनता को भारी निराशा हुई और उच्चतम न्यायलय दिल्ली में केस (SLP) दायर कर दिया गया। उच्चतम न्यायलय के दिनांक 03.09.2012 के आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि सरकार द्वारा जारी दिनांक 25.08.2010 के शो कॉज नोटिस के मुताबिक अगामी कार्यवाही व कानूनानुसार फैसले की प्रक्रिया पूरी की जाए तथा उच्च न्यायलय के निर्देश सरकार के इस फैसले पर वाध्यकारी नहीं होगा, परन्तु अन्तिम फैसला उच्चतम न्यायालय का ही होगा।
हमले के दिन के बाद परियोजना का काम बन्द रहा। 12 अप्रैल से 12 अगस्त 2011 तक लोगों ने जडेरा में सड़क पर चार महीना परियोजना बन्द करने के लिए धरना जारी रखा। 15 अगस्त 2011 को फिर कम्पनी के लोग परियोजना स्थल पर झण्डा फहराने आए, जिन्हें लोगों ने खदेड़ दिया।
कुछ दिनों पहले तक निर्माण कार्य बन्द था परन्तु अब फिर से कम्पनी ने काम शुरू कर दिया है। जनता ने इस का तुरन्त विरोध किया और चम्बा शहर में प्रदर्शन करके जिलाधीश को काम बन्द करने का मांग पत्र दिया। मुख्यमंत्री से शिमला जाकर भी मिले परन्तु आश्वासन के बावजूद, इस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
बजाए काम बन्द करने के कम्पनी ने अपने करींदे से जडेरा पंचायत के उपप्रधान के खिलाफ झुठा केस दायर कर दिया कि उस ने मजदूरों को धमकाया। यह सब जानते हैं कि हम मजदूरों के खिलाफ नहीं हैं, हमारी लड़ाई तो कम्पनी व परियोजना के विरुद्ध है।
अभी जो काम कम्पनी करा रही है, वह उन्हीं लोगों के हाथों में है, जिन्होंने हम पर हमला किया था। कुछ महिलाओं के खेतों की खड़ी फसल काट दी है परन्तु पुलिस को सूचना देने के दस दिन बाद भी अभी तक दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
साल घाटी बचाओ मोर्चा का प्रतिनिधि मण्डल जिलाधीश व पुलिस अधिक्षक से 29.09.2012 को फिर से मिला तथा उच्चतम न्यायलय के फैसले तक काम बन्द करने का अनुरोध किया। हाल की इन सब घटनाओं को देख कर लगता है कि सरकार, प्रशासन व कम्पनी लोगों को जानबूझ कर उकसा रही है।
सरकार जन विरोध को देखते हुए परियोजना रद्द करने व उन्हीं द्वारा जारी शो कॉज नोटिस की प्रक्रिया को पूरा करने पर गंम्भीर नहीं लगती है। ऐसा लगता है कि प्रदेश सरकार व प्रशासन जन भावना का निरादर कर के कम्पनियों के हितों की पैरोकारी के लिए तत्पर है। यह आज हम सब के लिए चिन्तनीय मसला है कि हिमाचल में चुनाव सिर पर होने के बावजूद लोकतंत्र के ये अगुआ, खास कर राजनैतिक दल जन भावना से नहीं डरते।
इस लिए साल घाटी बचाओ संघर्ष मोर्चा के अह्वान पर 4 अक्टूबर 2012 को चम्बा शहर में जिलाधीश कार्यालय के बाहर प्रदर्शन व एक दिन की भूख हड़ताल, हुल-1 परियोजना बन्द करो, की मांग को लेकर किया जा रहा है।
उक्त शरारती तत्वों द्वारा हमला करने पर उन के खिलाफ स्थानीय सेशन कोर्ट में मुकदमा चला। जिस में उन्हें 1,50,000 रुपये का जुर्माना किया गया। इस दौरान कम्पनी ने स्थानीय लोगों पर कई झुठे मुकदमें भी दायर किए, जिस पर इस कोर्ट ने उन्हें वापिस करने का भी निर्देश दिया। पूरे हिमाचल प्रदेश में कम्पनी के गुण्डों द्वारा साल घाटी बचाओ मोर्चा की बैठक में किए गए हमले का विरोध किया गया व धरना-प्रदर्शन भी हुए। इस के बाद कम्पनी इस मामले को उच्च न्यायलय शिमला में ले गई। जिसमें कोर्ट ने कोई स्पष्ट फैसला न लेकर जनता के शान्तिपूर्ण विरोध करने के अधिकार को माना तथा कम्पनी के निर्माण कार्य को पुलिस संरक्षण में जारी रखने का निर्देश दिया। हमने भी उच्च न्यायलय में पटीशन दायर की जिस पर कोर्ट ने जिलाधीश की एक बार हां और फिर दूसरी बार परियोजना रद्द करने की सिफारिश पर विरोधाभास जताते हुए पटीशन खारीज कर दी।
कोर्ट के इस फैसले से स्थानीय जनता को भारी निराशा हुई और उच्चतम न्यायलय दिल्ली में केस (SLP) दायर कर दिया गया। उच्चतम न्यायलय के दिनांक 03.09.2012 के आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि सरकार द्वारा जारी दिनांक 25.08.2010 के शो कॉज नोटिस के मुताबिक अगामी कार्यवाही व कानूनानुसार फैसले की प्रक्रिया पूरी की जाए तथा उच्च न्यायलय के निर्देश सरकार के इस फैसले पर वाध्यकारी नहीं होगा, परन्तु अन्तिम फैसला उच्चतम न्यायालय का ही होगा।
हमले के दिन के बाद परियोजना का काम बन्द रहा। 12 अप्रैल से 12 अगस्त 2011 तक लोगों ने जडेरा में सड़क पर चार महीना परियोजना बन्द करने के लिए धरना जारी रखा। 15 अगस्त 2011 को फिर कम्पनी के लोग परियोजना स्थल पर झण्डा फहराने आए, जिन्हें लोगों ने खदेड़ दिया।
कुछ दिनों पहले तक निर्माण कार्य बन्द था परन्तु अब फिर से कम्पनी ने काम शुरू कर दिया है। जनता ने इस का तुरन्त विरोध किया और चम्बा शहर में प्रदर्शन करके जिलाधीश को काम बन्द करने का मांग पत्र दिया। मुख्यमंत्री से शिमला जाकर भी मिले परन्तु आश्वासन के बावजूद, इस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
बजाए काम बन्द करने के कम्पनी ने अपने करींदे से जडेरा पंचायत के उपप्रधान के खिलाफ झुठा केस दायर कर दिया कि उस ने मजदूरों को धमकाया। यह सब जानते हैं कि हम मजदूरों के खिलाफ नहीं हैं, हमारी लड़ाई तो कम्पनी व परियोजना के विरुद्ध है।
अभी जो काम कम्पनी करा रही है, वह उन्हीं लोगों के हाथों में है, जिन्होंने हम पर हमला किया था। कुछ महिलाओं के खेतों की खड़ी फसल काट दी है परन्तु पुलिस को सूचना देने के दस दिन बाद भी अभी तक दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
साल घाटी बचाओ मोर्चा का प्रतिनिधि मण्डल जिलाधीश व पुलिस अधिक्षक से 29.09.2012 को फिर से मिला तथा उच्चतम न्यायलय के फैसले तक काम बन्द करने का अनुरोध किया। हाल की इन सब घटनाओं को देख कर लगता है कि सरकार, प्रशासन व कम्पनी लोगों को जानबूझ कर उकसा रही है।
सरकार जन विरोध को देखते हुए परियोजना रद्द करने व उन्हीं द्वारा जारी शो कॉज नोटिस की प्रक्रिया को पूरा करने पर गंम्भीर नहीं लगती है। ऐसा लगता है कि प्रदेश सरकार व प्रशासन जन भावना का निरादर कर के कम्पनियों के हितों की पैरोकारी के लिए तत्पर है। यह आज हम सब के लिए चिन्तनीय मसला है कि हिमाचल में चुनाव सिर पर होने के बावजूद लोकतंत्र के ये अगुआ, खास कर राजनैतिक दल जन भावना से नहीं डरते।
इस लिए साल घाटी बचाओ संघर्ष मोर्चा के अह्वान पर 4 अक्टूबर 2012 को चम्बा शहर में जिलाधीश कार्यालय के बाहर प्रदर्शन व एक दिन की भूख हड़ताल, हुल-1 परियोजना बन्द करो, की मांग को लेकर किया जा रहा है।