सत्तर के दशक के बाद जब टिहरी बाँध का सपना लोगों को दिखाया गया उस वक्त एक बारगी टिहरीवासी इस तरह से उत्साहित थे कि मानों अब प्रत्येक टिहरीवासी को रोजगार और सुख-सुविधा के लिये कहीं और नहीं जाना पड़ेगा। हालाँकि हुआ इसका उल्टा। लोगों को अपनी जान और जीविका टिहरी बाँध की भेंट चढ़ानी पड़ी। दुनियाँ में टिहरी बाँध के विरोध का समर्थन मिला, मगर टिहरी बाँध बनकर 2003 में तैयार हो गया। अपने वायदे के अनुरूप टिहरी बाँध अब तक उतनी बिजली का उत्पादन नहीं कर पाया। खैर! उससे भी बड़ा बाँध काली नदी पर ‘पंचेश्वर बाँध’ (पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना) भारत और नेपाल के बीच बनने जा रहा है। यह भी शुरुआती दौर से विवादों में चलता आ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक टिहरी बाँध से 125 गाँव पूर्ण रूप से प्रभावित हुए थे, अब पंचेश्वर बाँध से 60 गाँवों के 31023 परिवार पूर्ण प्रभावित हो रहे हैं। यानि भारत के 60 गाँव जलमग्न हो जाएँगे। टिहरी बाँध के बाद राज्य व केन्द्र सरकार के पास कोई व्यवस्थित पुनर्वास नीति नहीं है। जिस कारण लोगों और सरकार के बीच अविश्वास बना हुआ है। यही वजह है कि जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध जगजाहीर है।
उल्लेखनीय हो कि उत्तराखंड में बन रहे पंचेश्वर बहुउद्देशीय बाँध परियोजना में 60 गाँवों की जमीन ही नहीं एक बड़ी सभ्यता-संस्कृति भी समा जाएगी। बाँध के डूब क्षेत्र में पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा जनपद के 31023 परिवार आ रहे हैं। इसके अलावा इन तीन जनपदों के ही 29715 परिवारों की जमीनें भी डूब क्षेत्र में आ रही हैं। भारत के इस विशाल बाँध का पानी 60 गाँव के लगभग 31023 परिवारों के जीवन को प्रभावित करेगा। बता दें कि पंचेश्वर बाँध का निर्माण चंपावत जिले में महाकाली नदी पर प्रस्तावित है। यह भारत और नेपाल की संयुक्त परियोजना है। परियोजना को लेकर भारत और नेपाल के बीच 12 फरवरी, 1996 को महाकाली जल विकास संधि के नाम से समझौता हुआ था। नवंबर 1999 में एक संयुक्त परियोजना प्राधिकरण (जेपीओ) भी गठित की गई। बाद में पंचेश्वर विकास प्राधिकरण का गठन किया गया, जिसमें दोनों देशों के छह-छह अधिकारियों को शामिल किया गया। इसका कार्यालय भी नेपाल के कंचनपुर में खोला गया है। पंचेश्वर बाँध की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट वेप्कॉस कंपनी ने तैयार की है। और उत्तराखंड सरकार 2012 में इस परियोजना को मंजूरी दे चुकी है।
बताते चलें कि पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना के डूब क्षेत्र से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग को मिल सकती है। सिंचाई विभाग ने ही टिहरी बाँध से विस्थापित होने वाले लोगों के पुनर्वास का काम किया है। सरकारी सूत्रों के अनुसार पंचेश्वर बाँध के लिये बनने वाले पुनर्वास परिषद में सचिव राजस्व, सचिव सिंचाई, मुख्य अभियंता सिंचाई, तीन जनपदों के जिलाधिकारी सहित अन्य कई विभागों के अधिकारियों को शामिल किया जा सकता है। इस लिहाज से पंचेश्वर बाँध के डूब क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र के लोगों के पुनर्वास का काम सिंचाई विभाग को मिलने की सम्भावना दिखाई दे रही है। इधर मुख्य अभियंता, सिंचाई अजय वर्मा का कहना है कि सिंचाई विभाग ने ही टिहरी बाँध के विस्थापितों के पुनर्वास का काम बखूबी किया है। अगर पंचेश्वर बाँध से विस्थापित हो रहे परिवारों के विस्थापन/ पुनर्वास की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग को मिलती है तो उसे भी सिंचाई विभाग टिहरी बाँध के अनुसार बिना विवाद के सम्पन्न करेगा।
ज्ञात हो कि पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना भारत-नेपाल की संयुक्त परियोजना है जो भारत और नेपाल के बीच बहने वाली महाकाली नदी पर निर्माण के लिये प्रस्तावित है। वेप्कॉस कंपनी द्वारा तैयार डीपीआर के अनुसार उत्तराखंड के चंपावत और नेपाल के बैतडी जिले में इस परियोजना का सर्वाधिक निर्माण होना तय है। इस बाँध परियोजना पर 34,971 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इस परियोजना से लगभग 10,861 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य बताया जा रहा है। और इस परियोजना को आठ साल में पूर्ण निर्माण करने का लक्ष्य भी रखा गया है। इस परियोजना की डीपीआर को पढने से ऐसा मालूम होता है कि जब इस बाँध के पानी का अधिकतम स्तर (एफआरएल) 420 मीटर होगा तो निश्चित तौर पर भारत के एक बड़े भू-भाग को सिंचाई की सुविधा मिल जायेगी। यानि 0.24 मिलियन हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा मुहैया होगी। जबकि दूसरी तरफ पड़ोसी देश नेपाल का 0.013 मिलियन हेक्टेयर भू-भाग इस बाँध परियोजना से सिंचाई की सुविधाओं से लैस होगा। यह भी कह सकते हैं कि उत्तराखंड और यूपी के कई जिलों की असिंचित भूमि सिंचित में बदल जायेगी। और तो और परियोजना से उत्पादित बिजली का 13 फीसदी हिस्सा भी उत्तराखंड को मिलेगा।
कुल मिलाकर एक सुहाना सपना पहले टिहरी बाँध ने दिखाया कि यदि टिहरी बाँध बनकर तैयार हो जायेगा तो राज्य में स्वरोजगार की बयार आ जायेगी। टिहरी बाँध से 2000 से 2200 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा वगैरह। मगर आज तक ना तो टिहरी वासियों में सम्पूर्ण खुशहाली का इजहार हुआ और ना ही टिहरी बाँध से 2000 मेगावाट बिजली उत्पादित हुई। बजाय मौजूदा समय में टिहरी बाँध 1000 मेगावाट बिजली का उत्पादन तक पूरा नहीं कर पा रहा है। इस तरह सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या महाकाली पर बनने वाला पंचेश्वर बाँध 10 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन कर पायेगा? क्या पंचेश्वर बाँध से विस्थापित हो रहे परिवारों की जीविका दूसरी जगह पर सुरक्षित होगी? क्या विस्थापित परिवारों को मूल गाँव की तरह का पर्यावरण मिल पायेगा? क्या सम्मान विस्थापन की व्यवस्था होगी?
इसके अलावा पर्यावरणविदों का सवाल खड़ा है कि जितना नुकसान प्राकृतिक संसाधनों का इस पंचेश्वर बाँध से होगा उसकी भरपाई कैसी होगी? प्रहसन यह है कि पंचेश्वर बाँध से दो लाख से अधिक लोग विस्थपित होने की कगार पर हैं। इसी तरह इस बाँध से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की प्रबल संभावना है। निर्माण के दौरान क्षेत्र में तरह-तरह के केमिकल और मशीनें एवं ब्लास्ट उपयोग में लाये जायेंगे जिसका प्रतिकूल प्रभाव निर्माण स्थल और आस-पास की बसासत पर भारी मात्रा में होगा। इसके समाधान व संतुलन की पंचेश्वर बाँध की सम्पूर्ण परियोजना रिपोर्ट में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। ये तमाम सवाल टिहरी बाँध के दौरान से ही कौतुहल का विषय बने हुए है।
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